गुरुवार, 19 अगस्त 2021

लोकगीत

 


(1) रक्षाबन्धन का निमन्त्रण

मालवी लोकगीत

राखी दिवसो आवियो, वेगा आव म्हारा वीर ।

हूँ कैसे अऊं म्हारी बेनोळी, आडी सिपरा पूर ॥

सिपरा चढ़ाऊँ कापड़ो, उतरी आव म्हारा वीर ।

चकरी भँवरा दई भेजूं, खेलता आव म्हारा वीर ॥

लाडू ने पेड़ा दई भेजूं, जीमता आवो म्हारा वीर ॥

 

(2) देशप्रेम संबंधी

(क) राजस्थानी लोकगीत

भारत देश गुलाम भयौ

गयो गौरव को डूब सितारो।

वीर अनेक शहीद भये

जब रोपी है दार लंगोटिया वारो।

देश स्वतंत्र कराय दियो।

जाको सत्य अहिंसा को मंत्र करारो।

को नहीं जानत है जग में

श्री गाँधी है मोहन नाम तिहारो।

 (ख) अवधी लोकगीत

गोरी! यह झंडा में जदुवा भरा रे ।

मोहक मुरतिया रे, तिरंगी सुरतिया |

भुलै न दिन रतिया

मोरे हिया पै धरा रै।

गोरी ! यह झंडा में जदुवा भरा रे ॥

देखि यहि जोगु भूले बडे बडे जोगी,

कितने निरोगिन क बनाय दिहिसि रोगी,

मोरे मन फहरा रे ।

गोरी ! यही झंडा में जदुवा भरा रे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...