हम पक्षी हैं प्यार के
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
नभ को भी छू लेने वाले,
हम पक्षी हैं प्यार के ।
हमें न विचलित कर पाएँगे
संकट
इस संसार के ।।
हम हैं अटल इरादे वाले,
बढ़ते जाते शान से ।
जब मिल गाते गूँजे यह जग
अपनेपन के गान से ।
हमने सीखे मंत्र जीत के,
शब्द
न भाये हार के ।
हमें न विचलित कर पाएँगे
संकट इस
संसार के ।।
हमें न मन में थोड़ा भी भय ,
मन में अति उल्लास है ।
बाधाएँ आए तो आए ,
अपनी
मंजिल पास है ।।
हम न यहीं रूक जाने वाले,
हम उत्सुक उस पार के ।
हमें न विचलित कर पाएँगे
संकट इस संसार के ।।
तेरा- मेरा ,
निजी-पराया
हुआ न हमसे भूल से ।
भेद मिटाकर प्यार लुटाया
उपवन के हर फूल से ।
हम
प्रेमी जूही,
चम्पा,
गेंदा, गुड़हल, कचनार के ।
हमें न विचलित कर पाएँगे
संकट इस संसार के ।।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बंगला संख्या-99,
रेलवे चिकित्सालय के सामने,
आबू रोड-307026,
जिला- सिरोही (राजस्थान )
सहज प्रवाह का सुंदर,प्रेरक गीत।बधाई ठकुरेला जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता। बधाई
जवाब देंहटाएं"हमें न विचलित कर पाएँगे संकट इस संसार के
जवाब देंहटाएंहम पक्षी हैं प्यार के"
वाह.....बहुत ही सहज एवं सुन्दर रचना... 🙏
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय भाईसाहब।