श्रद्धा से भीगा
तुलसी का दालान
वो
भोर प्यारी ,
तितलियों की क्यारी ,
गौरैया-भरा
प्यारा रौशनदान ।
माँ ने बोले जो
वे राम रक्षा स्तोत्र
व्रत त्योहार
पिता
के अग्निहोत्र
सब धुँधले !
हींग छुँकी चूल्हे की
सौंधी-सी दाल,
कहाँ गए वो स्वाद ?
दीदी का स्नेह
भाइयों के वे नेह
रंग-रंगोली
मौसीजी का आँगन
वो चाची भोली !
रँभाती श्यामा गाय
दादाजी के वे
आयुर्वैदिक-उपाय
नीम-निम्बोली
कट्टी व मेल
रस्सी कूद के खेल
सखी का साथ
जुगनू भरे हाथ
कहाँ
बसे हैं ?
पलकों में छुपे हैं !
जब
भी गम
दिल में जमते हैं
मीठी धूप-से
ये पल छा जाते हैं ।
ग़म पिघलाते हैं !
ज्योत्स्ना प्रदीप
जालंधर
पंजाब 14403
सुंदर
जवाब देंहटाएंयादें
बहुत सुन्दर चोका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीया।
भावपूर्ण,अतीत की स्मृतियों को रेखांकित करता सुंदर चोका।
जवाब देंहटाएंगौरैया भरा प्यारा रौशनदान...!. बहुत सुंदर ज्योत्सना जी!
जवाब देंहटाएं