चौथा
बंदर
शरद
जोशी
उसे जब पता
चला कि आश्रम में पत्रकार आए थे, फोटोग्राफर आए
थे तो वह बड़ा दुःखी हुआ और धड़धड़ाता हुआ गाँधी के पास पहुँचा।
“सुना बापू,
यहाँ पत्रकार और फोटोग्राफर आए थे। बड़ी तस्वीरें ली गई। आपने मुझे
खबर भी न की । यह मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है बापू !” गाँधी ने चरखा चलाते हुए,
“जरा देश आज़ाद होने दें बेटे ! फिर तेरी ही खबरें छपेंगी, तेरी ही फोटो छपेगी। इन तीनों बंदरों के जीवन में तो यह अवसर एक ही बार
आया है। तेरे जीवन में तो यह रोज-रोज आएगा।”
धरती
का काव्य
श्यामनंदन
शास्त्री
कंधे पर हल धर
किसान ने बैलों की रास संभाली। खेतों की ओर
पैर उठने ही वाले थे कि एक कवि आ पहुँचा ।
“किसान भैया !” कवि ने रुकने के स्वर में पुकारा। “आओ कुछ क्षण बैठो। एक कविता सुनाऊँ।”
“कविता!” किसान अचकचाया, जैसे उसने कुछ समझा नहीं।
“अरे काव्य!” कवि ने झुंझलाहट भरे स्वर में बोला, “तुमने काव्य का नाम नहीं सुना?
अरे, यह वही काव्य है, जिसमें
गुलाब के पौधे झूमते हैं। चंदन की सुगंध वायुमंडल को तरोताज़ा बनाती है, चाँदनी गाती है, कल्पना की परियों नाचती हैं,
नए लोक बनते हैं मिलते हैं। और जानते हो, इसमें हंसनेवाले खेतों
पर कभी पाला नहीं पड़ता।”
कवि ने चमक-भरी
नज़रों से किसान की ओर देखा। सुनकर वह विस्मय में डूब गया। आश्चर्य में गोते लगाते
बोला,
“तो क्या इससे पेट भरता है?”
“अरे ! पेट
कैसे भरेगा ?” कवि के कपोलों का ऊपरी भाग सिकुड़कर मुंदती आँखों के नीचे चला आया,
“यह तो कल्पना का काव्य है।”
सुनकर किसान
मुस्कुराया, बैलों की पूंछ हिलाई, किलकारी दी और आगे बढ़ गया ।
“अरे !”
सुनते तो जाओ, कवि ने चिल्लाकर पूछा, “कहाँ चले ?”
“धरती का
काव्य लिखने।” किसान का उत्तर था।
सशक्त व्यंग्य कथाओं को प्रकाशित करने के लिये डॉ. पूर्वा जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंदोनों लघुकथाओं में यथार्थ का सटीक चित्रण. आप दोनों को बधाई.
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