सोमवार, 8 मार्च 2021

शब्द संज्ञान

 


नारी विमर्श – समाज में स्त्री की भूमिका व महत्व पर चर्चा, यही नारी विमर्श का प्रस्थान बिन्दु है।

v नारी विमर्श पुरुषों के समकक्ष स्त्रियों की राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षणिक समानता का वह आंदोलन है, जिसे पहले ‘नारीवाद’ (अंग्रेजी में फेमिनिज्म) कहा जाता था। यह पितृसत्तात्मक और लिंगभेद पर आधारित मूल्यों और मान्यताओं के प्रति विद्रोह है। - डॉ. सरजूप्रसाद मिश्र

v स्त्री विमर्श  का जन्म लिंग के आधार पर की जाने वाली असमानता के विरोध में हुआ था। इसके अंतर्गत स्त्री की नियति, उसकी स्थिति व समस्याएँ, अपने अधिकारों के लिए किए जाने वाले आंदोलन, हाशिए के जीवन से उबरकर समाज की मुख्य धाऱा से जुड़ने के संघर्ष आदि पर विचार किया जाता है।

v स्त्री को अपने अस्तित्व के बोध ने विमर्श की प्रेरणा दी। आत्मसमर्पण के और पुरुष के एकाधिकारशाही के माहौल से स्त्री को बाहर लाने का श्रेय स्त्री विमर्श को ही देना होगा। स्त्री विमर्श और कुछ नहीं अपनी अस्मिता की पहचान, ‘स्व’ की चिन्ता, अस्तित्वबोध और अधिकार को जतलाने और बतलाने का विचार-चिन्तन है।        

- स्त्री की दुनिया, सं. के. अजिता

v स्त्री विमर्श लिंग केन्द्रित है। सुधीश पचौरी ने स्त्रीवादी विमर्श का अर्थ देह विमर्श माना परंतु उनके लिए देह का अर्थ तन और मन दोनों से है।

नारी चेतना – नारी का अपनी शक्ति को खुद ही पहचानना, नारी चेतना के केन्द्र में है।

v स्त्री को अपने अस्तित्व का बोध होने पर उसे पुरुष की एकाधिकारशाही माहौल एवं दमनात्मक व्यवहार से घृणा होती है। इन सब शोषणात्मक व्यवहार से मुक्त होने के लिये उसका चित्त चिन्तन में जुट जाता है। जब वह स्वाभिमान, स्वप्रतिष्ठादायक स्वतंत्र जीवन यापन की इच्छा से शोषण का विरोध करती है तो नारी मुक्ति के संघर्ष में निरत होकर

अनेक समस्याओं का सामना करते हुए जय पाने का आत्मविश्वास उसमें जाग्रत होता है यही जागरण नारी चेतना है।                

- मृणाल पांडे के कथा साहित्य में नारी चेतना, डॉ. यशोदा करनिंग

स्त्री मुक्तिपुरुष के आधिपत्य तथा इन पर लादे गए बंधनों से स्त्री का मुक्त होना स्त्री मुक्ति है।

v ‘‘शोषण एवं असमानता से स्त्री जीवन के मुक्त होने का विचार’’

v ‘‘स्त्री मुक्ति का मूल प्रश्न उसके मनुष्य के रूप में अस्वीकारे जाने का प्रश्न है।’’

v ‘‘स्त्री को मुक्ति व्यक्ति  से नहीं उस व्यवस्था से चाहिए जो उसे पितृसत्तात्मक के नियमों में जकड़कर व्यक्ति से वस्तु में परिवर्तित करती है तथा उसके निज के व्यक्तित्व को नकारकर उसके मनुष्य होने पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है।’’

नारीवाद – नारी के हक की बात करने वाली विचारधारा नारीवाद है।

v महिलाओं को जीवन के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार दिलाने के प्रयास और उनको स्वस्थ और खुशहाल जीवन के प्रयासों इत्यादि को नारीवाद के रूप में जाना जाता है।

- नारीवादी सिद्धांत और व्यवहार, शुभ्रा परमार

v नारीवाद एक विचारधारा या चिंतनमात्र है, जो स्त्रियों को उसकी परंपरागत भूमिका के विषय में पुनः सोचकर उसके स्वतंत्र अस्तित्व की पहचान स्थापित करने के लिए उसे नयी दिशा प्रदान करता है।

-        स्त्रीवाद और हिन्दी महिला उपन्यासकार, वैशाली देशपांडे

स्त्री अस्मिता – समाज में स्त्री की अपनी पहचान एवं महत्व।

v पुरुष वर्चस्व वाले समाज में स्त्री की अपनी खुद की पहचान बनाने और बताने की बात।

महिला सशक्तिकरण – अनुचित सामाजिक बंधनों तथा आर्थिक परवशता से स्त्री को मुक्त करके सशक्त बनाना।

v ‘‘महिला सशक्तिकरण का अर्थ है – महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सके यह वह तरीका है जिसके द्वारा महिलाएँ भी पुरुषों की तरह अपनी हर आकाक्षाओं को पूरा कर सके।’’

v ‘‘स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है अर्थातॆ स्त्री से ही मानवजाति का अस्तित्व माना गया है। इस सृजन की शक्ति को विकसित, परिस्कृत कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, न्याय, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समानता का सु-अवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है।’’

राष्ट्रीय महिला आयोग

          महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 (भारत सरकार की 1990 की धारा सं. 20) के अंतर्गत जनवरी 1992 में संवैधानिक और कानूनी संरक्षण की समीक्षा, सुधारात्मक वैधानिक उपायों की अनुशंसा, शिकायतों के सुधार की सुविधा प्रदान करना तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत तथ्यों पर सरकार को सलाह देने के उद्श्यों से स्थापना की गई। आयोग ने महिलाओं की स्थिति के उत्थान के लिए अनेक कदम उठाए हैं, उनके आर्थिक सशक्तिकरण के लिए काम किए हैं।

स्रोत – राष्ट्रीय महिला आयोग, भारत सरकार

महिला प्रकोष्ठ –

महिला प्रकोष्ठ महिला कर्मचारियों की देख-रेख, उनकी शिकायतों के निवारण की सुविधा प्रदान करेगी और महिला कर्मचारियों से संबंधित मुद्दों। शिकायतों की जरूरतों को पूरा करेगी। यह प्रकोष्ठ संगठन से संबंधित मुद्दों पर महिलाओं से सुझाव / सिफारिश लेने के लिए एक सर्वेक्षण भी करेगी ताकि उन्हें मदद देने की दृष्टि से उचित कार्यवाही की जा सके।

महिला प्रकोष्ठ, संस्थान की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों की समीक्षा करेगी और यह सुनिश्चित करेगी। जहाँ भी संभव हो इन योजनाओं और कार्यक्रमों द्वारा महिलाओं के विकास को ब़ढावा दिया जाए और उपयुक्त ढंग से योजना को संशोधित कराते हुए इन क्रियाकलापों में महिला विकास का एक घटक को शामिल करेगी।

महिला प्रकोष्ठ न केवल संस्थान के महिला कर्मचारियों के सर्वांगीण विकास को बढावा देगा परंतु अनौपचारिक / प्रौढ शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, परिवार की देखभाल, कौशल सुधार प्रशिक्षण इत्यादि द्वारा पुरुष एवं महिला कर्मचारियों के आश्रित बालिकाओं की मदद भी करेगा।

http://www.cpri,in/hindi/about-us/departmeutsanits/womens-cell.html

विभिन्न विद्वानों की पुस्तकों तथा इंटरनेट साइट से सामग्री संकलन


सोनल परमार

वल्लभ विद्यानगर (जि. आणंद)

 

 

 

 


9 टिप्‍पणियां:

  1. This article is showing a way to strengthen women empowerment from all aspects.
    Appreciation for the beautiful writing.
    From: kalpataru Swain

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. नारी अपनी सामाजिक, परिवारिक जिम्मेवारियों को पूरी करने के बाद भी पुरुष के समकक्ष जिन जिम्मेवारियों को पूरी करने की दृढ़ इच्छाएं एवम कामना रखती है वहीं से नारी चेतना का उद्भव होता है।

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  2. Very Nice writing of Woman Empowerment!!
    #feminism #fairytales

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  3. नारी विमर्श पर लिखी गई ये बातें अत्यंत चरितार्थ हैं।

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