सोमवार, 8 मार्च 2021

नारी केन्द्रित प्रसिद्ध सहित्योक्तियाँ

 


नारी केन्द्रित प्रसिद्ध सहित्योक्तियाँ

1

यस्यां भूतै  समभवयस्यां विश्वमिदं जगत् ।

तामद्य गाथा गास्यामि या स्त्रीणामुत्तम  यश: ।।

(महाभारत)

यद् गृहे रमते नारी, लक्ष्मीस्तद् गृह वासिनी ।

देवता कोटिशो वत्स न त्यजन्ति गृहं हितत् ॥

(स्कन्दपुराण)

धिक धाये तुम यों अनाहूत,

धो दिया श्रेष्ठ कुल-धर्म धूत

राम के नहीं, काम के सूत कहलाये !

हो बिके जहाँ तुम बिना दाम,

वह नहीं  और कुछ हाड़ चाम !

कैसी शिक्षा कैसे विराम पर आये ।

 (तुलसीदास – निराला)

 4

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,

आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।

(मैथिलीशरण गुप्त)

 5

नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में;

पीयूष स्त्रोत-सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में ।

*     *     *       *    *     *     *     *      *    *     *     *     *

आँसू से भीगे अंचल पर मन का सबकुछ रखना होगा,

तुमको अपनी स्मिति- रेखा से यह संधि-पत्र लिखना होगा ।

(लज्जा सर्ग कामायनी से – जयशंकर प्रसाद)

 6

साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में इस दौरान (1857-1947)भारतीयों ने जो महत्त्वपूर्ण  कार्य किए, उनमें स्त्रियों का योगदान भी कम महत्वपूर्ण नहीं था | उनका मूल स्वर साम्राज्यवादी ताकतों से लोहा लेने वाला ही था । स्वदेशी आंदोलन को शक्ति प्रदान करने में वे कभी पीछे नहीं रहीं । संयम और मर्यादा का उनका साहित्य विविध विधाओं में पूरे वेग के साथ सामने आया, किन्तु हिन्दी के आलोचकों और इतिहासकारों की दृष्टि में भारतीय नारियों का  यह प्रयास ओझल ही रह गया ।

(हिन्दी साहित्य का ओझल नारी इतिहास,1857-1947, नीरजा माधव)

 7

भविष्य में भारतीय समाज की क्या रूपरेखा हो, उसमें नारी की कैसी स्थिति हो, उसके अधिकारों की क्या सीमा हो, आदि समस्याओं का समाधान आज की  जाग्रत और शिक्षित  नारी पर निर्भर है । यदि वह अपनी दुरवस्था के कारणों को स्मरण रख सके और पुरुष की स्वार्थपरता को विस्मरण कर सके तो भावी समाज का स्वप्न सुन्दर और सत्य हो सकता है, परन्तु यदि वह अपने विरोध को ही चरम लक्ष्य मान ले और पुरुष से समझौते के प्रश्न को ही पराजय का पर्याय समझ ले  तो जीवन की व्यवस्था अनिश्चित और विकास का क्रम शिथिल होता जायेगा |

(महादेवी वर्मा के आधुनिक नारी निबंध से)

 8

मैं आज़ाद होना चाहती हूँ

इसका अर्थ यह तो नहीं कि मैं तुमसे मुक्त

होना चाहती हूँ

न ही आजाद होने का मतलब है

तुम्हारे प्यार से मुक्त होना

(रमणिका गुप्ता)

 9

क्या तुम जानते हो

पुरुष से भिन्न/ एक स्त्री का एकांत

यदि नहीं तो फिर

रसोई और बिस्तर के गणित से परे

तुम जानते क्या हो ?

एक स्त्री के बारे में!

(निर्मला पुतुल)

10

औरत कहाँ नहीं रोती और कब नहीं रोती ? वह जितना भी रोती है, उतनी ही औरत होती है।...... दुनिया में ऐसा कोई कोना बताओ जहाँ औरत के आँसू  नहीं गिरे ।

(प्रभा खेतान के ‘आओ पेपे घर चले’ उपन्यास से)

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