सोमवार, 8 मार्च 2021

आलेख

 


नारी केन्द्रित चयनित हिंदी चलचित्र

यह तो सर्वविदित है कि पुरुष के साथ-साथ स्त्री की भी उपस्थिति के बगैर न तो साहित्य की निर्मिती संभव है और न ही फिल्म की । चलचित्रों में पुरुष की तरह स्त्री की भूमिकाएँ बराबर देखी जा सकती है । स्त्री जीवन की विभिन्न स्थितियों तथा स्त्री के विविध रूपों को इन फिल्मों में प्रस्तुत किया जाता रहा है । प्रेमिका, पत्नी, बहू, माँ जैसे रूपों के साथ-साथ विविध व्यवसायिक क्षेत्रों से संबद्ध स्त्री चरित्रों को फिल्मों में बखूबी देखा जा सकता है । इस तरह के हिन्दी चलचित्रों का अभाव नहीं है जिसमें स्त्री की केन्द्रीय भूमिका रही है । इन चलचित्रों के माध्यम से हम स्त्री के बहुआयामी एवं बहुरूपी जीवन से परिचित होते हैं ।

जब फिल्मों में स्त्री की भूमिका की बात करते हैं तो ज्यादातर हम देखते हैं कि फिल्म चाहे सामाजिक हो, ऐतिहासिक हो या आंचलिक जिसमें हम स्त्री जीवन से जुड़ी विविध समस्याएँ, स्त्री पुरुष सबंध को लेकर सुखद एवं दुखद स्थितियाँ, स्त्री के रूप सौन्दर्य की विविध तरह से प्रस्तुतियाँ जैसे विषय केंद्र में रहे हैं अपितु इसके साथ-साथ हम यह भी देखते हैं कि नारी चेतना, नारी विमर्श, स्त्री सशक्तिकरण, स्त्री संघर्ष, स्त्री मुक्ति जैसे सन्दर्भों में भी नारी चरित्रों को फिल्मों में बड़ी गंभीरता से प्रस्तुत किया है । हिन्दी सिनेमा में ऐसे नारी चरित्रों का अभाव नहीं है जो पुरुष से बराबरी करती है, कहीं-कहीं पुरुष से भी ज्यादा साहसी दिखती हैं, घर गृहस्थी की जिम्मेदारियों को उठाने में सक्षम और सामाजिक व व्यवसायिक क्षेत्रों में भी सफल, विविध चुनौतियों से टूटती भी है तो साहस-हिम्मत से लड़ती जुझारू रूप लिए हुए भी है, अन्याय अत्याचार से लड़ती है, न्याय के लिए बुलंद आवाज़ भी उठाती है ।

“भारत में पुरुष प्रधान व्यवस्था के बावजूद नायिका प्रधान फिल्मों ने समाज का अपनी ओर ध्यानाकर्षित किया । शोषण की अति से विद्रोही बनी, विवाह चौखट लांघकर निज अस्तित्व खोजने वाली, कलम से लेकर बन्दूक, घर से लेकर बार, आँगन से लेकर रैंप, प्रेम से लेकर प्रतिशोध, न्याय से लेकर प्रतिकार, सुख खोजती, राजनीति के फलक पर चमकती नारी का चित्रण सिनेमा में हुआ है ।”(Hindi chetan Bharti: हिंदी सिनेमा में नारी चेतना (shwetashindi.blogspot.com)

नारी केन्द्रित कतिपय हिन्दी चलचित्रों की मूल संवेदना को हम यहाँ रेखांकित कर रहे   हैं –

हिंदी  फिल्म जगत में महबूब खान ने १९४० में ‘औरत’ नामक फिल्म का निर्माण किया, जिसको फिर से ‘मदर इंडिया’ के नाम से १९५७ में नए कलाकारों के साथ भारतीय जनता के समक्ष प्रस्तुत किया और यह फ़िल्म लोकप्रियता में ‘औरत’ से बहुत आगे निकल गई. फिल्म की नायिका राधा का पात्र १९४० की फ़िल्म में सरदार अख्तर ने और १९५७ की फ़िल्म में नर्गिस ने निभाया था. फ़िल्म की कहानी है –

राधा एक ग़रीब, नेक और अदम्य महिला है,जो एक लालची साहूकार सुखीलाला से लड़ते हुए अपने बच्चों की परवरिश के लिए संघर्ष करती है, कई बाधाओं के बावजूद वह अपनी पवित्रता का बलिदान देने से मना करती है । सुखीलाला उधार दिए गए रुपयों के बदले राधा की अस्मत का सौदा करना चाहता है, कालान्तर में राधा के दो बेटे डाकू बन जाते हैं और सुखीलाला से अपनी माँ के अपमान का बदला लेने के लिए उसको मार कर उसके प्रिय बेटे का अपहरण कर लेते है । गाँव की इज्ज़त के सवाल पर राधा अपने बेटे बिरजू को उसका कहना न मानने पर गोली मार देती है । मदर इंडिया में आदर्श माँ के रूप में एक ऐसा भारतीय नारी चरित्र प्रस्तुत किया गया है जो अपने कर्तव्य और देश दोनों के लिए प्रतिबद्ध रहती है ।  

संक्षेप में प्रस्तुत फिल्म में राधा के रूप में एक ऐसे नारी चरित्र से  हम परिचित होते हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी एकल प्रयत्नी बनकर घर-गृहस्थी को संभालती है । किसी से दया की भीख न माँगते स्वाभिमान के साथ संघर्षमय जीवन को जीती है । अपने आत्मगौरव एवं मूल्यों की रक्षा हेतु अपने बेटे को भी गोली मारने से पीछे नहीं हटती । “हमारे देश के सामने औरतों के दृढ़ मूल्यों का साधारणीकरण एवं निर्धारक तत्त्व रखती है । दर्शक के सामने छोटे मूल्य गिर जाते हैं, बड़े मूल्य रह जाते हैं इसलिए अपने गुनहगार बेटे को गोली मार देती हैं क्योंकि माँ के लिए मूल्य बेटे से बड़े हैं । सिनेमा आदर्श पात्रों के माध्यम से दर्शकों के लिए मूल्य संधान एवं निर्धारण करता है ।” (सामाजिक मूल्य निर्धारण में सिनेमा का योगदान, डॉ. चंद्रकांत मिसाल, पृ. 55)

‘खून भरी माँग’ (१९८८) में विधवा आरती (रेखा)  संजय से शादी करके उसकी शातिर योजना का शिकार बनती है, वह आरती की दोस्त नंदिनी की मदद से उसे डूबा कर मारता है और उसकी संपत्ति हांसिल करता है लेकिन आरती बच जाती है और बदला लेने लौटती है । स्त्री सशक्तिकरण को हम आरती के चरित्र में देख सकते हैं ।

‘दामिनी’ (१९९३) दामिनी (मीनाक्षी शेषाद्री ) अपने देवर और उसके दोस्तों को घर की नौकरानी से बलात्कार करते हुए देखती है, कई बाधाओं का सामना करते हुए वकील गोविन्द की मदद से उसे न्याय दिलाने का प्रयास करती है, दामिनी का वकील गोविन्द जो वर्तमान न्याय व्यवस्था से दुखी है और वकील होने के बावजूद अपनी पत्नी जिसका एक दुर्घटना में निधन हो जाता है को इंसाफ दिलाने में असफल होने पर वकालत छोड़ देता है और शराबी हो जाता है, उसे वापस वकालत करने और नौकरानी को इंसाफ दिलाने के लिए तैयार भी करती  है । वकील  गोविन्द कहता है- “भूल जाओ दामिनी ये कोर्ट कचहरी सब भूल जाओ । इंसाफ-कानून का नंगापन मैंने देखा है, झेला है, सच्चाई, आत्मा की आवाज़ ये सब बकवास है जो इनके सहारे जीते है उन्हें सिर्फ दर्द मिलता है । कौड़ियों के दाम ईमान बेचते है लोग, कोर्ट से मिलती है सिर्फ तारीख पे तारीख ।” तब दामिनी कहती है – “अगर आप ही निराश हो जाएँगे तो इंसाफ कौन दिलाएगा, एक लड़की की जिंदगी और उसकी इज्जत क्या कोई मायने नहीं रखती ।” बेशक यह फिल्म एक नारी की संघर्ष कथा है जो न्याय हेतु अपने रिश्तेदारों के खिलाफ़ खड़ी होने वाली एक साहसी औरत पर केन्द्रित है ।

‘रुदाली’ (१९९३) – रुदाली याने भाड़े पर रोने वाली स्त्री । राजस्थान के कई इलाकों में राजे-रजवाड़े और अब अमीरों के घरों में जब किसी पुरुष की मौत होती थी तो विलाप के लिए रुदालियों को बुलाया जाता था जब भी रुदाली की बात आती है तो महाश्वेता देवी के कथानक पर १९९३ में कल्पना लाजमी के निर्देशन में बनी फिल्म रुदाली याद आती है, फिल्म का प्रमुख नारी किरदार शनिचरी ( डिंपल कापडिया) काले कपड़ों में औरतों के बीच बैठकर जोर-जोर से छाती पीटकर मातम मानती है यह नाटकीय मातम 12 दिन या उसके बाद भी चलता है । भूपेन हजारिका ने इस फिल्म का संगीत दिया था, इस फिल्म का गुलज़ार लिखित गीत – ‘दिल हुम हुम करे’ बहुत ही मार्मिक और हृदय स्पर्शी है । स्त्री की मनः स्थिति को अच्छी तरह से इसमें  व्यक्त किया गया है ।

‘बैंडिट क्वीन’ (१९९४) सीमा बिस्वास अभिनीत और शेखर कपूर निर्देशित फिल्म फूलन देवी के जीवन पर बनी इस फिल्म में निम्न वर्ग की महिला फूलन देवी अपने पर हुए अत्याचार का प्रतिशोध लेने के लिए दस्यु बन जाती है । इस फिल्म को नेशनल फिल्म अवार्ड भी प्राप्त हुआ था । निम्न जाति की स्त्रियों का यौन शोषण, बलात्कार, पुलिस का असहयोग, प्रतिशोध की आग, समर्पण जैसे विषय बिन्दुओं को लेकर बनी यह फिल्म हिन्दी सिनेमा जगत में अपनी एक विशेष पहचान रखती है ।

‘रज़िया सुल्तान’ (१९८३) दिल्ली सल्तनत की सुल्तान थी उसने १२३६ से १२४० तक दिल्ली पर राज किया था, रजिया सुल्तान (हेमा मालिनी)  परदा प्रथा त्याग कर पुरुषों की तरह खुले मुँह राज दरबार में जाती थी.वह जमालुद्दीन याकुत (हब्सी) के प्यार में सत्ता खो देती है और अल्तुनिया से युद्ध  में मारी  जाती है  याकुत रजिया सुल्तान का गुलाम ( अबीसीनियाई गुलाम ) था । यह फिल्म कमाल अमरोही ने कमाल की बनायी, धर्मेन्द्र और हेमा मालिनी के अभिनय, ख़य्याम के संगीत ने खूब धूम मचाई थी ।

‘लज्जा’ (२००१) राजकुमार संतोषी निर्देशित इस फिल्म में पुरुषों के अत्याचार के विरुद्ध चार साहसी महिलाएँ समाज से लडती है । माधुरी दीक्षित(जानकी), मनीषा कोईराला (वैदेही), रेखा(राम दुलारी) एवं महिमा चौधरी(मैथिलि) इन चारों पात्रों पर केन्द्रित इस फ़िल्म में चारों नायिकाओं ने ज़बरदस्त अभिनय किया था । भारतीय समाज में स्त्रियों की दयनीय स्थिति को प्रस्तुत करने वाली इस फिल्म में चारों नायिकाओं के नाम रामायण का आदर्श नारी पात्र ‘सीता’ नाम के पर्याय है ।

झाँसी की रानी (१९५३) सोहराब मोदी निर्माता और निर्देशक (राजगुरु) मेहताब (रानी लक्ष्मीबाई ) ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लड़ने वाली पहली भारतीय महिला थी । इसी कथानक पर २०१९ में कंगना रनौत अभिनीत ‘मणिकर्णिका’ फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई थी । झाँसी के राजा की पत्नी मणिकर्णिका ईस्ट इंडिया कम्पनी के सामने झुकने से इंकार करती है, जब वे राज्य पर कब्ज़ा करने की कोशिश करते है, कम्पनी के खिलाफ़ उनका विद्रोह जल्द ही एक उग्र क्रांति में बदल जाता है । “लक्ष्मी विधवा हुई है, झाँसी अभी भी सुहागन है ।” छबीली मणिकर्णिका का साहस और वीरता दिखाने के लिए फिल्म की शुरुआत में उसे एक खतरनाक चीते से लड़ते हुए दिखाया जाता है । घुड़सवारी में भी इसे बहुत होशियार दिखाया गया है । रानी का सन्देश है – “हम लड़ेंगे ताकि आने वाली पीढियाँ अपनी आज़ादी का उत्सव मनाएँ ।”

“महिलाएँ बलिदान देने की खातिर ही पैदा होती है” यह संवाद १९९५ में आई “दिल वाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे” फिल्म का है, फिल्म की नायिका सिमरन प्रेम किसी और से करती है और उसकी शादी किसी और से तय कर दी जाती है, तब उसकी माँ कहती है - “पिता की इच्छा के लिए प्यार बलिदान कर देना चाहिये” । वर्तमान में भी महिलाओं पर केन्द्रित फिल्म – त्रिभंग, मृत्यु दंड, चाँदनी बार, कहानी, फैशन, मॉम, डॉली किट्टी, वो चमकते सितारें, लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का और थप्पड़ आदि उल्लेखनीय है । कुछ प्रसिद्ध नारियों के जीवन पर बनी फ़िल्में – मैरी कॉम, नीरजा, शकुंतला देवी, गुंजन सक्सेना आदि ने भी बॉक्स ऑफिस पर धूम मचायी है ।  

रवि शर्मा

6/B स्कीम नं. 71-C

इंदौर - 452009 (म.प्र.)

 

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