सिर्फ जीत लिखूँगी
मैं सिर्फ जीत लिखूँगी ,
हरगिज नहीं हार लिखूँगी l
परम्पराओं की बेड़ियों के नाम ,
अब नहीं स्वीकार लिखूँगी l
नहीं सहूँगी अब किसी अन्याय को,
बिलकुल साफ़ मैं अपना गुनाहगार लिखूँगी l
तुम सोचो या न सोचो मेरे बारे में ,
बस मैं खुद अपने सरोकार लिखूँगी l
मेरा होना बहुत मायने रखता है ,
मैं अपने अस्तित्व की हुंकार लिखूँगी l
अग्नि परीक्षा के सवाल पर ,
मैं अब साफ़ इन्कार लिखूँगी l
मैं अपने कागज़ पर अपनी कलम से ,
खुद अपना किरदार लिखूँगी l
(काव्य संग्रह- मेरी ज़मीं मेरा आसमां से )
डॉ अनु मेहता
प्रभारी प्राचार्या
आंणद इन्स्टीट्यूट ऑफ पी.जी. स्टडीज इन आर्ट्स,
आणंद
बढ़िया
जवाब देंहटाएं