सोमवार, 8 मार्च 2021

कविता

 


सिर्फ जीत लिखूँगी

मैं सिर्फ जीत लिखूँगी ,

हरगिज नहीं हार लिखूँगी l

परम्पराओं की बेड़ियों के नाम ,

अब नहीं स्वीकार लिखूँगी l

नहीं सहूँगी अब किसी अन्याय को,

बिलकुल साफ़ मैं अपना गुनाहगार लिखूँगी l

तुम सोचो या न सोचो मेरे बारे में ,

बस मैं खुद अपने सरोकार लिखूँगी l

मेरा होना बहुत मायने रखता है ,

मैं अपने अस्तित्व की हुंकार लिखूँगी l

अग्नि परीक्षा के सवाल पर ,

मैं अब साफ़ इन्कार लिखूँगी l

मैं अपने कागज़ पर अपनी कलम से ,

खुद अपना किरदार लिखूँगी l

(काव्य संग्रह- मेरी ज़मीं मेरा आसमां से )

डॉ अनु मेहता

 प्रभारी प्राचार्या

आंणद इन्स्टीट्यूट ऑफ पी.जी. स्टडीज इन आर्ट्स

आणंद

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