वासंती
छटा से बौराया फागुन
बुला
लाता है संग अपने
होली
के रंग-गुलाल का मौसम
इसे
देख पलाश भी दहकने लगा और
आम्र
मंजरियों से कोयल कूकने लगी,
टपकते
महुआ की मादकता सिर चढ़ने लगी
तभी
नगाड़ों ने किया ये ऐलान-
होली
है भाई-होली है
बुरा
ना मानो - होली है ।
छिपने-छिपाने
का खेला मचा
गोपियाँ
ढूँढने लगी कृष्ण को और
कृष्ण
ढूँढने लगे अपनी राधा रानी को,
सजने
लगी पिचकारियाँ
जमने
लगी हुलियारों की बैठकें
गीत
होली के गूँजने लगे
रंग
से सराबोर बृज धाम
श्याम
रंग की चाहत से
मुखौटे
में ढूँढने लगी उस हरजाई को ।
वहीं
कोई घूँघट ये चाहती है कि-
कोई
उसे रंग ना लगाए लेकिन
वो
ये भी चाहतीं हैं कि-
कोई
ऐसा रंग लगे जो ना उतरे;
कहीं
रंगों में छिपी है- लाज और हया
तो
कहीं खुली है-मन की गाँठें
गुलाल
का टीका माथे पे सोहे और
गुझिया-पेड़े
संग मीठी वाणी से झरे-
खुश
रहिए,कल्याण हो...।
फागुन
की मस्ती को पसंद नहीं होता-
रंग
में भंग मिलाना;
नशा, जुआ, गुब्बारा, पेंट और
पहचान
कौन के मुखौटे इसे डराते हैं ,
फागुन
के संग दौड़ी आती है-
बुराई
के नाश का मंत्र,
भाईचारे
का संदेश और
इन्हीं
सब मस्तियों के बीच
आखिर
कोई क्यों मानेगा बुरा
इसलिए
ही तो चिल्ला पड़े हैं
लोग-लुगाई,
बच्चे-बूढ़े
बुरा
ना मानो - होली है
होली
है भाई-होली है ।
हाइकु
1
पिया
जी ताके
लजा
के लाल होती
संग
हो ली है ।
2
होली
नशीली
महुआ
भी शर्माता
फागुन
रंग ।
3
होली
हर्षाती
रंगों
का मेला लगा
आँसू
छिपाती ।
4
रंगों से लिखा
पिया
दिल में नाम
होली
बहाना ।
5
रंग-गुलाल
बगल
झाँक भागे
डर
कोरोना ।
कबीर नगर
रायपुर (छत्तीसगढ़)
होली के रंग में रँगे सुन्दर हाइकु
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत आदरणीय भाईसाहब!
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