सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

गीत

 




निकल आया बाहर ऋतुराज


निकल आया बाहर ऋतुराज

खोल कर मदिरालय के द्वार।

साथ मे लेकर मलय समीर

लुटाता मादक गंध अपार।।

 

देख कर मृदुल मद भरा रूप

शिशिर ने स्वयं मान ली हार।

छुप गया जाकर वह चुपचाप

भाग कर हिम शिखरों के पार।।

 

देख सपनों का राजकुमार,

धरा ने किया नवल शृंगार।

धार कर धानी नवल दुकूल

चली करने पिय से अभिसार।।

 

हुए किंशुक लज्जा से लाल

उठा सत्त्वानुराग का ज्वार।

लुटाया पुष्पों ने मकरंद

भ्रमर उमड़े करने सत्कार।।

 

शिखी नर्तन मन मोद उमंग

छेड़ते पिक मृदु पंचम तान

आम में आये नूतन बौर

मदन फिर चला रहा है बाण।

 

प्रकृति ने खोल दिया है आज

सरसता का संचित भंडार

दशादिक नील व्योम के नयन

मधुर मादक विस्मय विस्फार।

 

अरे गेंदा सरसों के पुष्प,

खड़े क्यो तुम पीताम्बर धार

हुए क्या तप को कृत संकल्प

लग रहा जीवन क्यों निस्सार।

 

नहीं है यह विराग का पर्व

न बैठो ऐसे मन को मार।

यही अवसर है छोड़ो दम्भ

पियो छक कर मादक मधु सार

 

चला जायेगा जब ऋतुराज

बनेगी धरा पुनः अनुदार।

चुभेंगे तीक्ष्ण ग्रीष्म के शूल,

करेगी प्रकृति विषम व्यवहार।।

 

रहेगा यौवन न अक्षुण्ण

जरा आएगा इक दिन द्वार।

बनेगा तब  जीवन अवलम्ब

यही अंतर संचित रस सार।

डॉ. शिवजी श्रीवास्तव 
2, विवेक विहार 
मैनपुरी

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