सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

भारतीय कविता में अंकित वसंत शोभा

 


भारतीय कविता में अंकित वसंत शोभा

(संस्कृत, हिन्दी, गुजराती और मराठी से चयनित काव्यांश)

संस्कृत

1.    

आदीप्त-वह्नि-सदृशैरपयात-पत्रैः

सर्वत्र किंशुकवनैः कुसुमावकीर्णः ।

सद्यो वसन्तसमयेन समागतेयं

रक्तांशुका नववधूरिव भाति भूमिः ।। (ऋतुसंहारसं. 19, पृ. 496)

भावार्थ - किंशुकवृक्षों के वन पत्तों के झड़ जाने और फूल से लद जाने पर प्रज्वलित वह्नि जैसे दिखाई दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि वसन्त (रूपी प्रिय) से हुए ताजे-ताजे मिलन में भूमि ने नववधू के समान लाल साड़ी ओढ़ रखी है।

2.    

किं किंशुकैः शुकमुखच्छविभिर्न भिन्न

किं कर्णिकारकुसुमैर्न कृतं च दग्धम्

यत् कोकिल: पुनरयं मधुरैर्वचोभिर्

यूनां मनः सुवदनानिहितं निहन्ति ।। (ऋतुसंहारसं. 20, पृ. 496)

भावार्थ - तोते की चोच जैसे किशुकों ने किसे विदीर्ण नहीं किया और कर्णिकार के पुष्पों ने किसे नहीं जलाया कि यह कोकिल मधुर कूक के द्वारा युवकों के सुन्दर मुखवाली गोरियों में अटके चित्तों पर प्रहार कर रही है।

3.    

पुंस्कोकिलैः कलवचोभिरुपात्तहर्षैः

कूजद्भिरु्मदकलानि वचासि भृङ्गेः ।

लज्जान्वितं सविनयं हृदयं क्षणेन

पर्याकुलं कुलगृहेऽपि कृतं वधूनाम् ।। (ऋतुसंहारसं. 21, पृ. 496)

भावार्थ - कुलवधुओं का मन लजीला होता हैउसमें विनय भी रहता हैकिन्तु मीठी बोली में फुदक-फुदक कर इन पुंस्कोकिलों ने जो खुशी मनाई और भौंरों ने भी जो उन्मद और मधुर गुंजार किया उससे उन कुलाङ्गनाओं का मन कुलगृह मे भी पर्याकुल हो उठा है।

(महाकवि कालिदास रचित 'ऋतुसंहार' से )


हिन्दी

    1.     

माघ मास सिरि पंचमी गँजाइलि  नवम मास पंचम हरुआरु ।

सुभ खन बेरा सुकुल पक्ख हे दिनकर उदित समाई।

सोरह संपुन बतिस लखन सह जनल लेल रितुराई ॥

2.     

नाचए जुवति जना हरखित मना जनमल बाल मधाई हे ।

मधुर महारस मंगल गावए मानिनि मान उड़ाई हे ।

3.     

मधु लए मधुकर बालक दएहलु कमल-पंखरी लाई ।

पओनार तोरि सूत बाँधल कटि केसर कएलि बघनाई।

नव नव पल्लव ज ओछाओल सिर दल कदम्बक माला।

वैसल भमरी हरबउ गाएव चक्का चन्द निहारा ।

कनअ केसुअ सुति पत्र लिखिए हलु रासि नछत कए लोला ।

कोकिल गनित-गुनित चल जानए रितु वसन्त नाम थोला।

4.     

नव आसन नव पीठल पात । काँचन कुसुम छत्र धरु माथ

मौलिक रसाल-मुकुल भेल ताय । समुख हि कोकिल पंचम गाय ।

सिखिकुल नाचत अलिकुल यंत्र । द्विजकुल आन पढ़ आसिख मन्त्र ।

(विद्यापति पदावली से)

गुजराती    

रूडो जुओ आ ऋतुराज आव्यो

मुकाम तेण्ये वनमां जमाव्यो;

तरूवरोऐ शणगार कीधो,

जाणे वसंते शिरपाव दीधो.....

जुनां जुनां पत्र गयां खरीने,

शोभे तरु पत्र नवां धरीने;

जाणे नवां वस्त्र धर्या उजाळी,

समीपमां लग्नसरा निहाळी.....

आँखे जुओ मोर अपार आव्यो,

जाणे खजानो भरिम्होर लाव्यो

जो कोकिला गान रूडुं करे छे

वसंतना शुं जश उच्चरे छे.....

बोले कोकिल मीठुं एक ज्यारे,

वादे बीजा ऐथि मीठुं उचारे

विवाद जाणे कवियो करे छे;

वखाण लेवा स्परधा धरे छे.....

चोपनियां पुस्तक जो प्रकासे

तो कम आम्बा नहीं पुष्प तारे.....

सुशोभितो था हरिने प्रतापे,

प्रभु तने उत्तम पुष्प आपे;

भलुं ज तेथी नृपराज्य भासे

तथा तरु शोभित पुष्प भारे

स्तुति करी माग्य प्रभु समीपे,

सुपुष्प थी सुंदर देह दीपे....

      (कवि दलपतराम रचित ‘रूडो जुओ आ ऋतुराज आव्यो’ से)

भावार्थ - देखो यह सुन्दर ऋतुराज आया है / उसने वन में अपना पड़ाव डाला है /  वृक्षों ने शृंगार किया है / मानो वसंत ने उनका सम्मान किया है / पुराने पत्ते झड़ गये हैं / नये पत्तों में वृक्ष शोभित हो रहे हैं / मानो विवाह के मौसम को नजदीक देखकर उन्होंने नये रंग-बिरंगे वस्त्र धारण किए हैं / देखो आम के वृक्षों पर असंख्य बौरे आ गई है / मानो वसंत मोहरों का ख़जाना लेकर आया है / देखो कोयल अपनी वाणी में यशगान कर रही है / एक कोयल जब मीठी वाणी बोलती है तो दूसरी उसकी स्पर्धा में उससे भी मीठा स्वर निकालती है / मानो दो कवि प्रशंसा लेने के लिए आपस में स्पर्धा कर रहे हो |

मराठी

ऋतुराज वसंत आला

आला नवतेज घेऊनि।

वसुंधरा करिते साज

साज नवतीचा लेऊनि।।

 

केशरी उधळीत उभा

उभा पलाश छानदार

मोहरला आम्रतरु तो

तो दिमाखात डौलदार।।

 

अंगणी फुलला मोगरा

मोगरा सुवासिक शुभ्र

पवन खेळतो आकाशी

आकाशी निवांत ते अभ्र।।

 

बागही सजली फुलांनी

फुलांनी आगळ्या रंगीत

प्रसन्न वाटते ऐकता

ऐकता निसर्ग संगीत।।

 

गुलमोहर निष्पर्ण तो

तो लाल फुलांनी सजला

आला ऋतुराज वसंत

वसंत आल्याचे वदला।।

 

झटकुन आळस सारा

सारा निसर्ग बागडतो

सृष्टीचा साजन वसंत

वसंत मज आवडतो।।

(शीला अंभोरे कृत ‘वसंत ऋतु’ से)

भावार्थ -  वसंत ऋतु का आगमन हमें बड़ा हर्षोल्लासित कर रहा है। वह सब कुछ नया लेकर आया हैप्रकृति उमंग से भरी है।धरती नई नवेली दुल्हन की तरह सजी हुई हैं। उसने वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही नया श्रृंगार किया हुआ है।

निष्पर्ण पलाश के पेड़ केशरी रंगो से सजे-धजे दिखाई पड़ रहे हैं। आम के पेड़ को बौर आया हुआ है और बड़े शान से खडे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को आतुर हैं।

आँगन में सफेद मोगरा-फूल अपनी सुगंध बिखेर रहा है। पवन यानी हवा आकाश के साथ आँख-मिचौली का खेल खेल रही है। आकाश शांत हैं और निरभ्र भी।

गुलमोहर के पेड़ पर पत्ते कहीं दिखाई नहीं दे रहें हैंवह सिर्फ लाल रंगों के फूलों से सजा हुआ दिखाई दे रहा है। नयी चेतनानयी उमंग लेकर वसंत आगमन हुआ है और वह धरा को सुशोभित कर रहा है।

हे मानव तू वसंत ऋतु से कुछ नया ग्रहण करअपना आलस छोड़ के वसंत के जैसे अपने जीवन में बहार ला।

वसंत सृष्टि में नवचेतना लाने वाली ऋतु है साजन या यह कहें प्रियतम के समान। इसलिए मुझे वसंत बहुत प्रिय है।

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