सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

दोहे

 





नैनों से नैना मिले , मुसकाया मधुमास।

सजनी के अधरों सजा , मदिर-मदिर मृदु हास।।

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उमग-उमगकर देखती , बड़ी बेशरम घास।

द्वारे पर गोरी खड़ी , आओ तो  प्रिय पास।।

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वासन्ती मनवा हुआ , टेसू हुए कपोल।

नयन-भृंग गुनगुन करें , पिय से करें किलोल।।

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धानी धारे ओढ़नी, धरा बसन्ती फूल।

आएँगे प्रिय पाहुने, पवन बुहारे शूल।।

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बौराया मौसम , अहो ! मगन हुआ है गाँव।

धूप खेत में सो रही , मस्त पसारे पाँव।।

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सुमन हृदय  गौरव भरा, हम अनंग के तीर।

सौरभ चले बिखेरता , अजब-गजब यह वीर।।

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केसरिया पगड़ी पहन, हुआ तुरत तैयार।

देखो जी ! तनकर खड़ा, गेंदा पहरेदार।।

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सुबह सलोनी- सी सजी,  पाया रूप- अनूप।

यौवन पाकर खिल गई , यह दोपहरी धूप।।

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तुलसी-सी अम्मा , खिले , बालक , वृद्ध , जवान।

कारज सकल समेटता,  बढ़ा हुआ दिनमान।।

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दोहे , गीतों पर चढ़ा, लो वासन्ती रंग।

केसरिया बाना ,कहीं , करता वार अनंग।।


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

एच - 604 , प्रमुख हिल्स,

छरवाडा रोड,

वापी - 396191

जिला- वलसाड (गुजरात)



5 टिप्‍पणियां:

  1. दोहों को यहाँ स्थान देने के लिए हृदय से आभार पूर्वा जी 🙏

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  2. बहुत सुंदर दोहे । आनंद आ गया,वासंती एहसास के साथ ।

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  3. वाह, वसन्त के अनुरूप ही सरस भावों से परिपूर्ण आनन्द की सृष्टि करते सुंदर दोहे।बधाई डॉक्टर ज्योत्स्ना जी।

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