नैनों
से नैना मिले , मुसकाया मधुमास।
सजनी
के अधरों सजा , मदिर-मदिर मृदु हास।।
उमग-उमगकर
देखती ,
बड़ी बेशरम घास।
द्वारे
पर गोरी खड़ी , आओ तो
प्रिय पास।।
वासन्ती
मनवा हुआ , टेसू हुए कपोल।
नयन-भृंग
गुनगुन करें , पिय से करें किलोल।।
धानी
धारे ओढ़नी, धरा बसन्ती फूल।
आएँगे
प्रिय पाहुने, पवन बुहारे शूल।।
बौराया
मौसम ,
अहो ! मगन हुआ है गाँव।
धूप खेत में सो रही , मस्त पसारे पाँव।।
सुमन
हृदय गौरव भरा,
हम अनंग के तीर।
सौरभ
चले बिखेरता , अजब-गजब यह वीर।।
केसरिया
पगड़ी पहन,
हुआ तुरत तैयार।
देखो
जी ! तनकर खड़ा, गेंदा पहरेदार।।
सुबह
सलोनी- सी सजी, पाया रूप- अनूप।
यौवन
पाकर खिल गई , यह दोपहरी धूप।।
तुलसी-सी
अम्मा ,
खिले , बालक , वृद्ध ,
जवान।
कारज
सकल समेटता, बढ़ा हुआ दिनमान।।
दोहे
,
गीतों पर चढ़ा, लो वासन्ती रंग।
केसरिया
बाना ,कहीं , करता वार अनंग।।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
एच
- 604
, प्रमुख हिल्स,
छरवाडा
रोड,
वापी
- 396191
जिला-
वलसाड (गुजरात)
दोहों को यहाँ स्थान देने के लिए हृदय से आभार पूर्वा जी 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे । आनंद आ गया,वासंती एहसास के साथ ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद 🙏
हटाएंवाह, वसन्त के अनुरूप ही सरस भावों से परिपूर्ण आनन्द की सृष्टि करते सुंदर दोहे।बधाई डॉक्टर ज्योत्स्ना जी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद 🙏
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