वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर नामक छ ऋतुओं के चक्र में प्रत्येक ऋतु का अपना एक वैशिष्ट्य है, अपनी एक अलग पहचान है अपितु सौन्दर्य तथा मनुष्य-मनुष्येतर जीव पर विशेष प्रभाव के मामले में वसंत का स्थान व महत्त्व कुछ ज्यादा ही रहा है। इसलिए इसे ऋतुओं में श्रेष्ठ ‘ऋतुराज’ की संज्ञा दी गई है। माघ शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। वसंत पंचमी का उत्सव बड़े आनंद उल्लास से मनाया जाता है। हिन्दी फ़िल्मी गीतों में भी इस मधुमास की मौजूदगी को हम स्पष्टतः देखते हैं।
अनेक कलाओं से मिश्रित ‘फिल्म’ माध्यम की लोकप्रियता आज जग जाहिर है। “भारत में सिनेमा सबके मन को छूने की क्षमता रखता है वह इसलिए कि सिनेमा हमारे अंदर दबी भावनाओं, इच्छाओं व आशाओं से मेल खाता है। सिनेमा के परदे पर जनमानस अपने आप को, अपनी ज़िंदगी को, अपनी ख़ुशी व गम को देखते हैं और उसमें डूब जाते हैं।” (उद्धृत - सामाजिक मूल्य निर्धारण में सिनेमा का योगदान, डॉ. चंद्रकांत मिसाल, पृ. 29) हिन्दी फिल्मों ने तो अपना महत्त्व राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर भी दर्ज करवाया है। जहाँ तक हिन्दी फ़िल्मी गीतों की बात है तो इन गीतों में निरूपित विषयों में साहित्यिक विषयों के समान पर्याप्त वैविध्य मिलता है। प्रकृति के रूप-रंग एवं प्रभाव का अंकन अनेकों फ़िल्मी गीतों में बखूबी देखा जा सकता है। इन गीतों के रचयिता, गायक व इसे संगीत के साँचे में ढालने वाले संगीत मर्मज्ञों के सराहनीय कार्य के चलते इन गीतों ने हमारे दिलों दिमाग पर अपनी गहरी छाप अंकित की है। अनेक गीतकारों ने अपने गीतों में वसंत की शोभा का वर्णन बेहतरीन अंदाज़ में किया है। ‘प्रेम’ के सन्दर्भ में इस ऋतु विशेष की प्राकृतिक खूबसूरती तथा इस समयावधि के वातावरण के मिजाज़ को बताने वाले इन गीतों को सुनकर मानव हृदय प्रफुल्लित हुए बिना नहीं रहता।
इसमें कोई संदेह नहीं कि वसंत ऋतु प्रेम की ऋतु है। वसंत पंचमी, वसंतोत्सव, मदनोत्सव जैसी अवधारणाओं के मूल में प्रेम भाव का विशेष महत्त्व रहा है। अतः वसंत संबंधी फ़िल्मी गीतों को ज़्यादातर नायक-नायिका के प्रेम के अंतर्गत रखा गया है। ‘सिन्दूर’ फिल्म के गीत की एक पंक्ति यहाँ याद आती है – “पतझड़ सावन बसंत बहार, एक बरस के मौसम चार....पाँचवां मौसम प्यार...” इसमें चार मौसम के बाद पाँचवें मौसम के रूप में प्रेम को लिया है। यहाँ सन्दर्भ तो अलग है पर हम कह सकते हैं कि वसंत से बड़ा प्रेम का मौसम और कोई नहीं हो सकता।
फ़िल्मों के अनेक गीतों में बसंत की छटा की दिखाई देती ही है लेकिन ‘बसंत बहार’ नामक एक फ़िल्म भी बनी है जो बसंत ऋतु पर ही आधारित है | शंकर जयकिशन जी के द्वारा संगीतबद्ध किए इसके गीत ‘केतकी, गुलाब जूही / चंपकबन फूले / ऋतु बसंत अपनों कंत...’ को दर्शकों ने बहुत पसंद किया । वसंत केन्द्रित हिन्दी फ़िल्मी गीत के कुछ और कतिपय उदहारण दृष्टव्य है।
कोयल की मीठी वाणी, कलियों पर मोहित भौरों का मीठा गुंजन, कलियों के स्पर्श हेतु तितलियों का इसके इर्द-गिर्द उड़ना, कलियों का पुष्प रूप में विकसित होना – यही तो वसंत की पहचान है। सज-धज कर रसीली नारी के समान वसंत की सुन्दर झाँकी की सोहनी राग में गीतात्मक प्रस्तुति देखें –
1. कुहू-कुहू बोले कोयलियाँ / कुंज-कुंज में भँवरें डोले / गुनगुन बोले..../ सज शृंगार ऋतु आई बसंती / जैसे नार कोई हो रसवंती / डाली-डाली कलियों को तितलियाँ चूमें / फूल-फूल पंखुड़ियाँ खोले / अमृत घोले ।
लता मंगेशकर और रफ़ी के सुरों से सजे इस गीत के बोल पंडित भरत व्यास के है और इसके संगीतकार आदि नारायण राव है । वसंत की छटा बिखेरता यह गीत आज भी नया-सा ही लगता है।
2.
पीली-पीली
सरसों फूली / पीली उड़े पतंग / अरे पीली-पीली उड़े चुनरियाँ / पीली-पीली पगड़ी के
संग.../ आई झूम के बसंत झूमों संग संग में /आज रंग लो दिलों को इक रंग में।
'उपकार' फिल्म के गीत की यह पंक्तियाँ जिसे लिखा है श्री प्रेम धवन जी, स्वर दिया आशा जी, महेंद्र जी, मन्नाडे जी, शमशाद बेगम जी ने और संगीत बद्ध किया कल्याणजी आनंद जी ने। इसमें वसंत के नैसर्गिक रूप सौन्दर्य-पीली सरसों की चादर से शोभित धरती, साथ ही पीली पतंग तथा पीले वस्त्रों का उल्लेख है। वसंत ऋतु में वैसे भी पीले रंग का विशेष महत्त्व होता है । ये मौसम ही ऐसा है जिसमें सारे शिकवे-गिले भूलकर दुशमन को भी गले लगाकर यार बना लिया जाता है – ये बात भी इस गीत में कही गई है।
3.
राजा
और रंक फिल्म का वो मशहूर गीत हम यहाँ कैसे भूल सकते हैं । गीतकार आनंद बक्षी के
वे शब्द जिसे मोहम्मद रफ़ी जी और लता जी के स्वर ने और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी के
संगीत ने सैकड़ों लोगों के हृदय और जुबान पर अपना स्थान कायम किया।
संग बसंती अंग
बसंती / रंग बसंती छा गया / मस्ताना
मौसम आ गया / धरती का है आँचल पीला / झूमे
अम्बर नीला नीला / सब रंगों में है रंगीला रंग बसंती।
अत्यधिक
लोकप्रिय इस गाने में वसंती माहौल में नायक- नायिका के प्रेम,
इनके साथ- संयोग, वसंत प्रभाव से दिलों में उत्पन्न हर्ष- उल्लास- उमंग,
वसंतकालीन प्रकृति की एक विशेष रंगत,
मौसम की मस्ती- मादकता,
नायिका के सौंदर्य को वासंतिक प्रकृति सौंदर्य से और
प्रकृति के सौंदर्य को नायिका के सौंदर्य से जोड़कर देखना---तेरा लहराया आंचल सावन
के झूलों जैसा...तेरा रूप सरसों के फूलों जैसा। साथ ही यह गीत समानता का भी बोध
कराता है--- सुन लो देशवासियों.. आज से इस देश में छोटा बड़ा कोई नहीं होगा ..सारे
सब एक समान होंगे।
वसंत सुषमा तथा
तन-मन पर इसके असर की सुन्दर प्रस्तुति देखिए -
4.
ओ
बसंती पवन पागल / ना जा रे ना जा...
5.
मोहे
रंग दे बसंती / मेरा रंग दे बसंती चोला माय...
6. ये
दिन क्या आये लगे फूल हँसने / देखो बसंती..
बसंती / होने लगे मेरे सपने...
7.
रूत
आ गई रे / रुत छा गई रे / पीली-पीली सरसों फूले..... पीहू-पीहू पपीहा बोले चल बाग में....
8.
बसंत
है आया रंगीला / झूम रहा है रोम-रोम क्यों तन मन है लहराया…..
9.
आई
आई बसंती बेला / लगा फूलों का बन बन मेला / मगन मैं झूम रहा ……..
होली गीत –
हमारे राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात त्यौहारों में होली का महत्त्व ज्यादा है जो इसी ऋतु में मनाया जाता है। इस त्यौहार के मूल में भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका की कथा है। इसी कथा को याद करते हुए मानाये जाने वाले इस पर्व में नाच-गान तथा रंगों का भी विशेष महत्त्व रहा है। हिन्दी फिल्मों में होली विषयक बहु-संख्यक गीत प्राप्त होते हैं – जिनमें फ़ाग की फुहार है, रंगों की ख़ुशी है, वसंत की हरियाली से स्त्री-पुरुष के हृदय में उत्पन्न आनन्द उत्साह है । कतिपय उदहारण देखें –
1. आया
होली का त्यौहार ले के रंगों की बहार चला खेतों को एक मतवाली ,रस्ते में किसी ने
रंग डाली (डाकू मंगलसिंह)
2.
होली
के दिन दिल खिल जाते है,रंगों में रंग मिल जाते है (शोले)
3. होली
आई रे कन्हाई / होली आई रे / रंग छलके सुना दे ज़रा बांसुरी(मदर ऑफ इंडिया )
4.
रंग
बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे (सिलसिला)
5.
पिया
संग खेलो होली फागुन आयो रे ( फागुन)
6.
होली
खेले रघुबीरा अवध में होली खेरे रघुवीरा (बागबान )
7.
रंग
दे गुलाल मोहे आई होली आई रे (कामचोर)
8.
बिरज
में होली खेलत नंदलाल (गोदान )
9.
होली
आई रे,अंग अंग में अगन लगाती (फिल्म होली आई रे)
इस प्रकार वसंत हमारे जीवन को खुशियों और रंगों से भर देने
वाली ऋतु है और इस ऋतु पर आधारित गीत सुन लो तो मन बाग़ बाग हो जाता है ।
6/B स्कीम नं. 71-C
इंदौर -452009 (म.प्र.)
क्या बात है , मजा आ गया रवि
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, दुबे जी
हटाएंफिल्मों में वसन्त वर्णन को संक्षिप्त आलेख में बहुत सुंदर ढंग से चित्रित करने हेतु रवि शर्मा जी को बधाई।बेहतरीन आलेख।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आलेख!
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