राष्ट्रभाषा, राजभाषा तथा संपर्क भाषा की अवधारणाएँ एक-दूसरे में ओतप्रोत हैं। फिर भी,
इनमें थोड़ा अंतर भी पाया जाता है।
प्रचलित अर्थ में ‘राष्ट्रभाषा’ शब्द
किसी राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना और गौरव को अभिव्यक्त करता है। किसी राष्ट्र की
राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक होती है। उसमें राष्ट्र की एकसूत्रता और
स्वतंत्र अस्मिता का बोध निहित होता है।
ऐसे ही ‘राजभाषा’ की पहचान प्रशासन और
व्यवसाय की भाषा के रूप में बनती है। उसकी शैली मूलतः औपचारिक होती है और वह लिखित
रूप में विकसित होती है। राजभाषा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि उसे
संवैधानिक स्वीकृति प्राप्त होती है।
इसी तरह तकनीकी अर्थ में ‘संपर्क भाषा’
उस भाषा या भाषारूप को कहते हैं, जो दो या दो से अधिक
भाषा-समुदायों के बीच संपर्क बनाने का काम करती है। दो भाषा-समुदायों को जोड़ती
है। ‘संपर्क भाषा’ उन्हीं भाषा-समुदायों में से कोई एक हो सकती है; अथवा उनके बाहर की भी हो सकती है। जैसे – मराठी तथा हिन्दी क्षेत्र के
लोगों को जोड़ने का काम हिन्दी करती है। अथवा तमिल और मलयाली लोगों को जोड़ने का
काम हिन्दी अथवा अंग्रेजी करती है। हिन्दी और अंग्रेजी तमिल तथा मलयाली से भिन्न
तीसरी भाषाएँ हैं।
राष्ट्रभाषा, राजभाषा तथा संपर्क भाषा का यह भेद तकनीकी दृष्टि से है तो सही, परंतु यह भेद परिस्थिति सापेक्ष है। अमेरिका, जापान,
इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी
जैसे विकसित देशों में एक ही भाषा राष्ट्रभाषा, राजभाषा तथा
संपर्क भाषा की भूमिका निभाती है। ऐसे में राष्ट्रभाषा, राजभाषा
तथा संपर्क भाषा का तकनीकी भेद मिट जाता है। परंतु अविकसित तथा विकासमान देशों में
यह स्थिति नहीं होती। वहाँ राष्ट्रभाषा, राजभाषा तथा संपर्क
भाषा का भेद बहुत मुखर होता है। कारण कि वहाँ स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा के ऊपर
किसी प्रभावशाली या उपनिवेशी भाषा का प्रभुत्व होता है।
अब भारत की बात करते हैं। भारत एक
बहुभाषा भाषी देश है। यहाँ दर्जन भर से अधिक प्रमुख और समृद्ध भाषाएँ हैं। सैकड़ों
क्षेत्रीय भाषाएँ तथा बोलियाँ हैं। हिन्दी भी उन्हीं में से एक भाषा है। अन्य
भाषाओं की तुलना में हिन्दी की स्थिति थोड़ी भिन्न इस अर्थ में है कि हिन्दी अन्य
भाषाओं की तुलना में अधिक व्यापक भूभाग में बोली जाती है। हिन्दी बोलने वालों की
संख्या अन्य भाषाओं की तुलना में बहुत अधिक है। कुछ ऐतिहासिक तथा राजनीतिक कारणों
से, जिनकी भाषा हिन्दी नहीं है, वे भी थोड़ी बहुत हिन्दी जानते-समझते हैं।
स्वतंत्रता के पहले हिन्दी के साथ
राजभाषा तथा संपर्क भाषा जैसी अवधारणाएँ नहीं जुड़ी थीं। केवल राष्ट्रभाषा शब्द से
सभी का बोध होता था। इसी लिए जब यह कहा जाता था कि ‘हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा
है’ अथवा ‘हिन्दी राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है’, तो उसमें यह आशय अंतर्निहित रहता था कि हिन्दी समूचे राष्ट्र के कामकाज की
भाषा है। समूचे राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाली भाषा है। राष्ट्र के गौरव की
भाषा है।
परंतु स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद
संविधान में केन्द्र सरकार के कामकाज की भाषा के रूप में हिन्दी को ‘राजभाषा’ नाम
दिया गया। साथ तकनीकी दृष्टि से देश की सभी क्षेत्रीय भाषाएँ राष्ट्रीय भाषाएँ मान
ली गईं। ऐसे में हिन्दी तकनीकी दृष्टि से उन सभी राष्ट्रीय भाषाओं में से एक
राष्ट्रीय भाषा है। परंतु गैर-तकनीकी दृष्टि से या सामान्य प्रयोग में आज भी
हिन्दी राष्ट्रभाषा कही जाती है, जैसे
स्वतंत्रता-प्राप्ति के पहले कही जाती थी।
आज भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है। अनेक
भाषाएँ बोलने वाले सभी भारतवासी एक ही राष्ट्र के नागरिक हैं। ऐसे में राष्ट्रीय
एकता को मजबूत बनाने के लिए, आपसी संवाद को कायम
रखने के लिए आज भी हिन्दी ही एकमात्र समर्थ भाषा है। यही कारण है कि भारत सरकार
हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अपने स्तर से अनेक प्रकार से प्रयत्न करती रहती
है।
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
भाषाचिन्तक
40, साईं पार्क सोसाइटी
बाकरोल – 388315
जिला आणंद (गुजरात)
राष्ट्रभाषा,राजभाषा एवम सम्पर्क भाषा को सहज ढंग से स्पष्ट करता हुआ उपयोगी आलेख।डॉ०योगेन्द्रनाथ मिश्र जी को साधुवाद।
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