गुरुवार, 7 जनवरी 2021

कविता



हिंदी अक्षय वट बनी

हिन्द की भाषा नहीं बस

हिंदी अक्षय वट बनी

विश्व भर में फैलकर

होती नित शाखें घनी।

शब्दों की नम है मृदा

भावों को यह पोसती

अंक इसके खेलकर

गैरों से हो दोस्ती।

राह में जो भी मिले

यह उसे करती धनी।

नेह की भाषा है यह

गन्ध यह मधुमालती

क्या करें अर्पण इसे

यह हमें है पालती।

इसके आँचल में पनप

कितनी कथा अद्भुत बनीं

घर मे अपने फिर भी तो

धूप आँधी से खेलती

अपनों के हाथों ही देखो

दंश कितने झेलती।

हर परीक्षा में मगर

हो सफल ऊँची तनी।

है ये दर्पण जो कि

हर टुकड़े में भी पूर्ण है

सखियाँ इसकी सैकड़ों

जिनसे यह सम्पूर्ण है।

इसकी गोदी खेलकर

बोलियाँ कितनी बनी।

नागरी, सरहिंदी भी यह

कौरवी भी है यही

नाम कितने ही हैं इसके

गीत छंद चौपाई भी

बाँधती एक सूत्र सबको

है मधुर इसकी ध्वनि।

सरनाम में सहतू है यह

फिजी में सुब्रमणि

मॉरिशस में है अनत

यू.के बन उषा खिली

कनाडा में स्नेह की

बहती यह सरिता बनी।

हिन्द की भाषा नहीं बस

हिंदी अक्षय वट बनी

विश्व भर में फैलकर

होती नित शाखें घनी।

भावना सक्सैना

गृह मंत्रालय के राजाभाषा विभाग में कार्यरत


2 टिप्‍पणियां:

  1. 'नेह की भाषा है यह
    गन्ध यह मधुमालती
    क्या करें अर्पण इसे
    यह हमें है पालती।'....बहुत सुंदर भावपूर्ण अभव्यक्ति,हिंदी सचमुच अक्षयवट ही है।बधाई भावना जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. हिंदी अक्षय वट बनी... अति सुन्दर!
    इतने सुन्दर सृजन के लिए हृदय -तल से बधाई भावना जी!

    जवाब देंहटाएं

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