गुरुवार, 7 जनवरी 2021

आलेख


हिन्दी के विविध रूप

किसी भाषा के प्रयोगक्षेत्र में वैविध्य के चलते उस भाषा के एकाधिक रूप विकसित होते हैं। यह तो सर्वविदित है कि हिन्दी भाषा का प्रयोगक्षेत्र विस्तृत व वैविध्यपूर्ण है। यह भाषा अनेक विषयों व सन्दर्भों में व्यवहृत होती रही है। साहित्यिक भाषा, बोल-चाल की भाषा, सम्पर्क भाषा, राष्ट्रभाषा, राजभाषा, संचार भाषा, माध्यम भाषा जैसे हिन्दी के विविध रूपों की उपलब्धि इस भाषा के प्रयोगक्षेत्र की व्यापकता व विविधता का प्रमाण है। प्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक डॉ. भोलानाथ तिवारी के मतानुसार कोई भाषा जितने विषयों में प्रयुक्त होती है, उसके उतने ही अलग-अलग रूप भी विकसित होते जाते हैं। हिन्दी के साथ भी यही हुआ है। पहले यह केवल बोलचाल की भाषा थी, तो उसका एक बोलचाल का ही रूप था, फिर वह साहित्य की भाषा बनी तो उसका अलग एक साहित्यिक रूप भी विकसित हो गया। ऐसे ही समाचार पत्रों में उसके प्रयोग ने ‘पत्रकारिता की हिन्दी’ को जन्म दिया, तो खेलकूद में हिन्दी प्रयोग ने ‘खेलकुद की हिन्दी’ को और बाजारभाव में उसके प्रयोग ने ‘बाजारभाव की हिन्दी’ को। ऐसे ही स्वतंत्रता के बाद हिन्दी भारत की राजभाषा घोषित की गई तथा उसका प्रयोग न्यूनाधिक रूप से कार्यालयों में होने लगा, तो धीरे धीरे उसका राजाभाषा का एक रूप विकसित हो गया।”1

साहित्य सृजन की भाषा सामान्य व बोलचाल की भाषा से ज्यादा परिष्कृत होती है। भाषाविज्ञान कोश के अनुसार साहित्यिक भाषा का मतलब है- “किसी भाषा की वह विभाषा जो सर्वश्रेष्ठ समझकर साहित्य रचना के लिए प्रयुक्त की जाए तथा बोलचाल की अपेक्षा कुछ विशिष्ट हो।” साहित्य एक कला है, अतः इसकी प्रस्तुति में भाषिक कलात्मकता अनिवार्य है। साहित्यिक या सर्जनात्मक भाषा में विशिष्ट शब्द-चयन, शैली वैविध्य, अर्थ की अभिव्यक्ति में अभिधा के साथ साथ लक्षणा तथा व्यंजना की प्रधानता, अलंकारिता, काव्यगुण जैसी विशेषताएँ होती हैं। यह भाषा ज्यादातर शिक्षित व बुद्धिजीवी वर्ग से जुड़ी होती है।

प्रचुर मात्रा में साहित्य का सृजन हिन्दी भाषा में हुआ है। हजार-ग्यारह सौ वर्षों के हिन्दी साहित्य के इतिहास में हिन्दी भाषा के कई रूप-रंग दिखाई देते हैं। आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल के साहित्य में अनुभूति व विषयवस्तु के साथ-साथ अभिव्यक्ति में भी क्रमशः परिवर्तन होता रहा है। आदिकाल में सिद्धसाहित्य, नाथ साहित्य, जैन साहित्य, वीरगाथात्मक साहित्य, हिन्दवी तथा इतर साहित्य को विद्वानों ने प्रमुख काव्यधाराएँ बताई है। भाषा की दृष्टि से इनमें काफी वैविध्य है। “सिद्धों की भाषा अर्ध-मागधी अपभंश से प्रभावित है। नार्थो की सुधुक्कड़ी भाषा में राजस्थानी, पंजाबी आदि कई भाषाओं के शब्द मिलते हैं।  जैन कवियों भाषा अपभंश है, जिसमें हमें प्राचीन हिन्दी के दर्शन होते हैं। वीरगाथाएँ डिंगल भाषा में लिखी गई है, तो विद्यापति की पदावली में मैथिली भाषा की मंजुलता मिलती है। अमीर खुसरो की हिन्दवी में हमें आधुनिक खड़ी बोली के दर्शन होते है।”2 भक्तिकाल का साहित्य हिन्दी की अवधी और ब्रज बोलियों में तथा रीतिकाल का साहित्य मूलतः ब्रज में है। आधुनिककालीन साहित्य में खड़ीबोली का स्थान प्रमुख रहा। खड़ीबोली जिसे आज मानक हिन्दी की संज्ञा दी जाती है।

एक दूसरे की भाषा को न समझने वाले लोगों के बीच भी होने वाले सार्थक संवाद की भाषा सम्पर्क भाषा कहलाती है। सम्पर्क भाषा भिन्न भाषा-भाषियों को भावनात्मक एवं वैचारिक स्तर पर जोड़ने का काम करती है। बहुभाषी देशों में तथा राष्ट्रीय एकता एवं क्षेत्रीयता से उबरने के लिए इस भाषारूप को अपनाना अनिवार्य है। अंग्रेजी में इस तरह की भाषा को 'लिंक लैंग्वेज' नाम से जाना जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न भाषा भाषियों को जोड़ने वाली भाषा होने के कारण यह किसी वर्ग व क्षेत्र विशेष की भाषा न होकर देश की समस्त जनता की भाषा है। बोलने वालों की सर्वाधिक संख्या, प्रयोगक्षेत्र में विस्तार, एकाधिक रूपों में व्यवहत, सरलता जैसी विशेषताओं व गुणों से जो भाषा ज्यादा सम्पन्न होगी वह सम्पर्क भाषा बनने की प्रबल दावेदार होती है। इस दृष्टि से हिन्दी भारत की सम्पर्क भाषा है और एक लम्बे अरसे से सम्पर्क भाषा के दायित्व के निर्वाह करने में यह भाषा सफल रही है। “भारत का इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि भारत पर चाहे मुसलमानों काशासन था, चाहे अंग्रेजों का, यहाँ भारतीयों के दिलों को जोड़नेवाली, राष्ट्रीय चेतना भरने वाली भाषा हिन्दी ही रही है। उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक देश को एक सूत्र में बाँधने की भूमिका हिन्दी ही करती रही है।”3 सम्पर्क, भाषा हिन्दी का एक ऐसा रूप है जिसका प्रचार प्रसार व प्रयोग एक लम्बी समयावधि से हो रहा है। “जब दसवीं शताब्दी के बाद संस्कृत का व्यवहार जनभाषा के रूप में नहीं रह गया था और जब तक अंग्रेज भारत वर्ष में नहीं आये थे तब तक नौ सौ वर्षों में रामेश्वरम् से लेकर बदरीनाथ तक और द्वारिकापुरी से लेकर जगन्नाथपुरी तक विभिन्न सन्दर्भों में यात्रा करने वाले भारतवासी सम्पर्कभाषा हिन्दी से ही अपना काम चलाते रहे।”4 राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात तीर्थ स्थानों की यात्रा करने वाले विविध प्रातों के लोगों द्वारा, व्यावसायिक व शैक्षणिक उदेश्य से एक प्रांत से दूसरे प्रांत में आने वाले तथा वहाँ के निवासियों द्वारा तथा राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक संदर्भों से जुड़े अपने कार्यों को प्रचारित-प्रसारित करने वाले राजनेताओं, समाजसेवकों, संत-महात्माओं द्वारा हिन्दी प्रयोग से हिन्दी को ज्यादा व्याप मिला। सम्पर्क आषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार व विकास में उपरोक्त तथ्यों के साथ-साथ मीडिया का भी बहुमूल्य योगदान रहा है।

राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा, राष्ट्रीय गौरवगरिमा एवं राष्ट्रीय भावना से जुड़ी भाषा राष्ट्रभाषा है। किसी देश या राष्ट्र की अधिकांश जनता बहुत ही सहजता से जिस भाषा का प्रयोग करें वह भाषा राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन होती है। राष्ट्रभाषा राष्ट्र की पहचान होती है। इस भाषा के प्रयोग का मंच पूरा देश होता है। “किसी भी देश में उस भाषा को राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त हो जाता है, जो वहाँ के अधिकांश क्षेत्रों और अधिकाधिक लोगों द्वारा सामान्य रूप में प्रयुक्त होने लगती है। जिस प्रकार विभन्न ध्वजों के रहने पर भी राष्ट्रध्वज का विशिष्ट महत्व होता उसी प्रकार अनेक विकसित भाषाओं के रहने पर भी राष्ट्रभाषा की अपनी प्रतिष्ठा होती है। राष्ट्र की पहचान के लिए राष्ट्रध्वज और राष्ट्रभाषा दोनों अनुपेक्षणीय है। उदाहरणार्थ, भारत में तिरंगा राष्ट्रध्वज है और हिन्दी राष्ट्रभाषा।”5

विद्वानों ने किसी भाषा को राष्ट्रभाषा बनने के लिए जिन गुणों-योग्यताओं का उल्लेख किया है वह सभी हिन्दी में है। एक राष्ट्रभाषा की सभी शर्तों पर यह भाषा खरी उतरती है, अतः हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा का विशेषण मिला है। महात्मा गांधी एवं कुछ अन्य भाषाविदों की दृष्टि से राष्ट्रभाषा में जो-जो योग्यताएँ होनी चाहिए और इन योग्यताओं और आवश्यकताओं की पूर्ति करने में हिन्दी कितनी सफल रही है, इसकी विस्तृत चर्चा डॉ. ए.के.रूस्तगी एवं डॉ. संजयकुमार ने अपनी ‘राज एवं राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी-अतीत, वर्तमान व भविष्य’ नामक पुस्तक में की है, जिसके कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत है- हिन्दी भारत के सबसे बड़े भूभाग में बोली जाने वाली भाषा है। हिन्दी भाषा का विस्तार न केवल भारत वरन भारत के बाहर भी विस्तृत क्षेत्र में है। हिन्दी भाषा भारत की भाषिक और सांस्कृतिक विरासत की सशक्त उत्तराधिकारी है। हिन्दी भाषा के साहित्य की परंपरा भी काफी समृद्ध व सम्पन्न रही है। हिन्दी भाषा का व्याकरण अत्यन्त सरल एवं वैज्ञानिक है। यह भारत की अन्य भाषाओं से अनेक प्रकार की व्याकरणिक एवं लिपिगत समानता रखती है इसी कारण हिन्दी सीखना अत्यन्त सरल है और प्रत्येक भारतीय केवल थोड़े प्रयासों से ही हिन्दी सीख सकती है। आज के वैज्ञानिक युग में सभी प्रकार की शब्दावली का विकास हुआ है और हिन्दी भाषा ने बदले हुए परिवेश में अपनी सार्थकता सिद्ध की है। हिन्दी की लिपि देवनागरी विश्व की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपियों में शामिल की जा सकती है। उदारीकरण और बाजारीकरण के युग में विदेशी कंपनियों के भारत में आगमन से हिन्दी को हानि की आशंका व्यक्त की जा रही थी किन्तु उदारीकरण से हिन्दी का विकास ही हुआ है।

राजकाज की भाषा राजभाषा कहलाती है। इस भाषा का प्रयोगक्षेत्र विविध प्रशासनिक इकाइयाँ होती हैं। आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा के मतानुसार “राजभाषा का प्रयोग मुख्यतः चार क्षेत्रों में अभिप्रेत है - शासन, विधान, न्याय पालिका और कार्यपालिका। इन चारों में जिस भाषा का प्रयोग हो, उसे राजभाषा कहेंगे।”6  14 सितम्बर 1949 को भारतीय संविधानसभा में हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति मिली। भारतीय संविधान के भाग 5,6 और 17 में राजभाषा संबंधी प्रावधान है। इनमें 17 वें भाग के राजभाषा संबंधी प्रावधान ज्यादा महत्वपूर्ण कहे जा सकते हैं। 17 वें भाग में अनुच्छेद 343 से 351 मुख्यतः राजभाषा से संबद्ध है। संविधान में राजभाषा संबंधी प्रावधान, राजभाषा आयोग व समितियों का गठन, राजभाषा को लेकर अधिनियम राष्ट्रपति के आदेश, सरकारी कर्मचारियों को हिन्दी में कार्य करने हेतु प्रशिक्षा के चलते सरकारी कामकाज में हिन्दी प्रयोग से राजभाषा हिन्दी का रूप विकसित हुआ। सरकारी कामकाज की हिन्दी की प्रकृति हिन्दी की अन्य प्रयुक्तियों की प्रकृति से किस रूप में भिन्न होती है, इस विषय पर भी भाषाविदों ने विचार किया। अर्थ की अभिव्यक्ति, शब्दावली व शैली के संबंध में डॉ. भोलानाथ तिवारी ने राजभाषा हिनदी की स्वरूपगत विशेषताओं में अभिधात्मकता, एकार्थता, पारिभाषिक शब्दावली, विशेष शब्द संक्षेप, शब्द के स्तर पर एकाधिक शैलियाँ, निर्वैयक्तिक भाषारूप आदि को विस्तार से उदाहरण सहित समझाया है।

जनसंचार माध्यमों की भाषा संचारभाषा कहलाती है। मीडिया आज हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। संचारयुग, मीडियायुग, कम्प्यूटर युग वर्तमान समय की बहुत बड़ी पहचान है। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में बहुसंख्यक लोगों की भाषा हिन्दी का प्रयोग हो रहा है। विविध संचार माध्यम हिन्दी के प्रचार-प्रसार में एक अहम भूमिका का निर्वाह कर रहे है। समाचार पत्र-पत्रिकाएं, आकाशवाणी, टेलीविजन, फिलम, सोशलमीडिया, कम्प्यूटर, इंटरनेट जैसे संचार माध्यमों ने हिन्दी को पूरे देश में काफी लोकप्रिय बनाया। देश के कोने कोने में हिन्दी को पहुँचाया और शिक्षित-अशिक्षित, गाँव-शहर, विभिन्न भाषा-भाषियों में किसी प्रकार का भेद किये बिना संचार माध्यमों के जरिए इस भाषा ने अपना महत्व कायम करते हुए प्रमुख संचार भाषाओं में अपना स्थान बनाया।

संचार माध्यमों की विविधता के चलते इनमें प्रयुक्त एक भाषा के रूप में वैविध्य होना स्वाभाविक है। “संचार माध्यमों के कारण हिन्दी की संरचना पूरी तरह से बदल गयी है। संचार माध्यमों की भाषा सामान्य बोल-चाल की भाषा नहीं है। सर्जनात्मक स्तर पर उपयोग में आनेवाली काव्य भाषा भी नहीं है। यही कारण है कि संचार माध्यमों के कारण हिन्दी के नवनीव रूप बन रहे हैं। आकाशवाणी की हिन्दी पत्रकारिता की हिन्दी नहीं होती। विज्ञापन की हिन्दी दूरदर्शन की हिन्दी नहीं होती और संगणक की हिन्दी फिल्म की हिन्दी नहीं होती। हिन्दी ने अपने आपको माध्यमों के आधार पर विविध दृष्टियों से विकसित किया है।”7

संचार माध्यमों की प्रकृति में भिन्नता, माध्यमों से प्रस्तुत होने वाली विषयवस्तु में वैविध्य तथा इसका विशेष देशकाल से संबंध, भाषाप्रयोक्ता की शिक्षा-दीक्षा व परिवेश के अनुसार संचार भाषा हिन्दी कहीं परिनिष्ठित है तो कहीं बोलचाल की तो कहीं स्थानीयता के रंग से रंगी हुई। अंग्रेजी, अरबी-फारसी एवं अन्य भाषाओं के शब्दों से भी यह मुक्त नहीं है। पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाले विविध समाचारों व लेखों की भाषा विषय के अनुरूप होती है। दैनिक समाचार पत्रों की हिन्दी ज्यादातर सरल-सुबोध होती है तो दूसरी और समाचारपत्रों व विविध पत्रिकाओं में जहाँ विविध विषयों से संबंधी समाचार एवं लेख होते हैं तो वहाँ हिन्दी भाषा का रूप विषयानुरूप होता है। “किसी खेल प्रतियोगिता का समाचार जिस प्रकार की भाषा में लिखा जाएगा, उसी प्रकार भाषाशैली व्यापार उद्योग सम्बन्धी-वित्तीय क्षेत्र के समाचारों की नहीं हो सकती। चुनाव-प्रचार संबंधी समाचारों की भाषाशैली जैसी होगी, किसी साहित्यिक या सांस्कृतिक समाचार लेखन में उससे सर्वथा भिन्न प्रकार की भाषाशैली अपनाई जाएगी।”8  हिन्दी में साहित्य, संस्कृति, स्वास्थ्य, विज्ञान, खेल, फिल्म, उद्योग, कृषि जैसे विषयों से संबंधी अनेक पत्रिकाएँ विद्यमान हैं।

रेडियो की भाषा में उच्चारण की शुद्धता एवं भावानुरूप आरोह-अवरोह का ज्यादा ध्यान रखा जाता है। एक बहुत जनसमुदाय से जुड़े होने के कारण इस श्रव्य माध्यम से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में भाषा की सरलता अति आवश्यक है। इस बात से हम अज्ञात नहीं है कि मुद्रित, श्रव्य व दृश्यश्रव्य माध्यमों की हिन्दी अंग्रेजी से ज्यादा प्रभावित है। सिर्फ अंग्रेजी शब्द ही नहीं परंतु कहीं कहीं तो अंग्रेजी के पूरे के पूरे वाक्यों का भी प्रयोग होता है। इस तरह मीडिया की हिन्दी में अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी का रूप ज्यादा विकसित हुआ। फिल्मजगत ने आज हिन्दी को काफी प्रसिद्धि दिलाई है। फिल्मों की हिन्दी में उर्दू, अंग्रेजी एवं कुछ अन्य भाषाओं-बोलियों का ‘टच’ स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वैसे भी लोकप्रियता की दृष्टि से सिनेमा का महत्व ज्यादा रहा है। इस फिल्म उदयोग में बहुप्रचलित व बहुप्रयुक्त हिन्दी भाषा को अपनाकार फिल्मों की लोकप्रियता में वृद्धि हुई तो दूसरी ओर इन फिल्मों द्वारा हिन्दी भाषा का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार हुआ। हिन्दी फिल्मों की भाषा में उर्दू मिश्रित हिन्दी तथा अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी का मिश्रण ज्यादा रहा। मोहब्बत, दिल, आरजू, नसीब जैसे अनेकों शब्दों का प्रयोग ज्यादा हो रहा है। फिल्मी नगरी मुंबई की बोलचाल की भाषा के शब्दों व टोन से भी फिल्मों की हिन्दी मुक्त नहीं रही। फिल्म की कथा एवं किरदार के स्थान एवं परिवेश के अनुसार फिल्मों की हिन्दी में काफी वैविध्यता है। अंग्रेजी के शब्दों व वाक्यों का प्रयोग भी खूब हो रहा है। यहाँ तक कि कुछ कुछ हिन्दी फिल्म के नाम तक अंग्रेजी में है। फिल्म जगत में हिन्दी भाषा की उपयोगिता एवं व्यापकता के चलते विविध भारतीय एवं विदेशी भाषाओं की फिल्में भी हिन्दी में डब हुई है। हिन्दी एवं कुछ अन्य भाषाओं की साहित्यिक कृतियाँ भी हिन्दी फिल्मों के माध्यम से समाज के बहुत बड़े समुदाय तक पहुँच रही हैं। आज पूरे विश्व में कम्प्यूटर की उपयोगिता अधिक है। कम्प्यूटर का आविष्कार विदेश में होने के कारण इसमें अंग्रेजी की केन्द्रीयता स्वाभाविक है। पहले तो कम्प्यूटर का संबंध मूलतः अंग्रेजी से ही था लेकिन अब तो स्थिति यह है कि हिन्दी इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। आज कम्प्यूटर का भाषा के संबंध में हिन्दीकरण हो गया है। टाइपिंग के सर्वाधिक हिन्दी फोन्ट के साथ कम्प्यूटर संबंधी विविध कार्य में हिन्दी को अपनाया जा रहा है। आज जिन जिन क्षेत्रों में कम्प्यूटर का उपयोग हो रहा है वहाँ हिन्दी कम्प्यूटर कार्यप्रणाली को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है।

उपर्युक्त विवेचन से हिन्दी के बहुआयामी रूप स्पष्ट हुए बिना नहीं रहता। प्रयोगक्षेत्र के आधार पर हिन्दी के इन विविध रूपों के अतिरिक्त मातृभाषा के रूप में भी यह एक बड़ी व सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाषा रही है। जो बहुसंख्यक लोगों की अस्मिता की भाषा बनी हुई है। वैसे देखें तो संसार की कोई भी भाषा मातृभाषा रूप से वंचित नहीं है। भाषा को लेकर होने वाली व्यक्ति की पहचान भाषा के इसी रूप से संबद्ध होती है। व्यक्ति को अपनी माता व परिवार से मिलने वाली भाषा तथा व्यक्ति का परिवार मूलतः जिस क्षेत्र-प्रदेश से जुड़ा है वहाँ व्यापक रूप से प्रयुक्त होने वाली भाषा को मातृभाषा की संज्ञा दी जाती है। इस भाषा को सीखने के लिए व्यक्ति को ज्यादा मेहनत-मशक्कत नहीं करनी पड़ती। अपने परिवार व समाज-समुदाय से एक विरासत के रूप में यह प्राप्त होती है। हिन्दी भारत के बहुत बड़े भू-भाग की भाषा है। उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचलप्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली हिन्दीभाषी प्रदेश है। भाषावैज्ञानिकों ने हिन्दी भाषा क्षेत्र की पाँच उपभाषाएँ पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी, पहाड़ी, बिहारी और इनके अंतर्गत आने वाली विविध बोलियों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। ये बोलियाँ अपने-अपने क्षेत्र की मातृभाषाएँ है और ये बोलियाँ हिन्दी से संबंध होने के कारण हिन्दी के मातृभाषा के के व्याप को देखा जा सकता है। हिन्दी क्षेत्र के अतिरिक्त पूरे भारत में और भारत के बाहर भी जहाँ जहाँ हिन्दी भाषी निवास करते है, भले ही वे कुछ विशेष कारणों से हिन्दीतर भाषा का प्रयोग करते हो किन्तु इनकी मातृभाषा हिन्दी ही कही जाएगी।

राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर भी हिन्दी प्रतिष्ठित हुई है। एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में वह अपनी पहचान बना रही है। सात समंदर पार हिन्दी का प्रचार-प्रसार इसे संसार की प्रमुख भाषाओं में स्थान दिलाता है। मारिशस, फीजी, सूरीनाम, ट्रिनीडाड जैसे देशों में असंख्य हिन्दी भाषी निवास करते हैं। भारत के बाहर कई देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन कार्य भी बहुत पहले से हो रहा है। वहाँ हिन्दी में काफी मात्रा में साहित्य सृजन हो रहा है। आज जिसे हम प्रवासी साहित्य कहते है वह विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा लिखा गया साहित्य है। शिक्षा, विज्ञान, व्यवसाय, संचारमाध्यम, सांस्कृतिक आदान-प्रदान की वजह से बहुराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का विकास हो रहा है।

डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

 

संदर्भः

1. हिन्दी भाषा, डॉ. भोलानाथ तिवारी, पृ. 310

2. दृष्ट्रव्य,  हिन्दी भाषा और भाषाविज्ञान, डॉ. अशोक शाह, पृ. 57

3. हिन्दी साहित्य का सक्षिप्त सुगम इतिहास, डॉ. पारूकांत देसाई, पृ. 13

4. प्रयोजनमूलक हिन्दी, डॉ. नरेश मिश्र, पृ. 23

5. सम्पर्क-भाषा हिन्दी, सं. भोलानाथ तिवारी, कमलसिंह, दो शब्द से

6. भाषाविज्ञान तथा हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक विश्लेषण, डॉ. सीताराम झा श्याम, पृ.16

7. मीडिया और हिन्दीः बदलती प्रवृत्तियाँ, सं. रविंद्र जाधव, केशव मोरे, पृ. 157

8. प्रयोजनमूलक हिन्दी विविध परिदृश्य, डॉ. रमेशचन्द्र त्रिपाठी एवं डॉ. पवन अग्रवाल, पृ. 293

 






2 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी के विविध रूपों के स्वरूप और प्रकृति को सम्यक ढंग से विवेचित करता सुंदर शोधपूर्ण आलेख।डॉ०हसमुख परमार जी को बधाई।

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  2. बहुत बढ़िया आलेख,डॉ०हसमुख परमार जी को बहुत-बहुत बधाई।

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