बुधवार, 6 जनवरी 2021

कुण्डलिया

 

1.

हिन्दी भाषा अति सरल, फिर भी अधिक समर्थ।

मन मोहे शब्दावली, भाव, भंगिमा, अर्थ।।

भाव, भंगिमा, अर्थ, सरल है लिखना, पढ़ना।

अलंकार, रस, छंद, और शब्दों का गढ़ना।

ठकुरेला’ कविराय, सुशोभित जैसे बिंदी।

हर प्रकार सम्पन्न, हमारी भाषा हिन्दी।।

2.

हिन्दी को मिलता रहे, प्रभु ऐसा परिवेश।

हिन्दीमय को एक दिन, अपना प्यारा देश।।

अपना प्यारा देश, जगत की हो यह भाषा।

मिले मान-सम्मान, हर तरफ अच्छा-खासा।

ठकुरेला’ कविराय, यही भाता है जी को।

करे असीमित प्यार, समूचा जग हिन्दी को।।

3.

अभिलाषा मन में यही, हिन्दी हो सिरमौर।

पहले सब हिन्दी पढ़ें, फिर भाषाएँ और।।

फिर भाषाएँ और, बजे हिन्दी का डंका।

रूस, चीन, जापान, कनाडा हो या लंका।

ठकुरेला’ कविराय, लिखें नित नव परिभाषा।

हिन्दी हो सिरमौर, यही अपनी अभिलाषा।।

4.

अपनी भाषा हो, सखे, भारत की पहचान।

अपनी भाषा से सदा, बढ़ता अपना मान।।

बढ़ता अपना मान, सहज संवाद कराती।

मिटते कई विभेद, एकता का गुण लाती।

ठकुरेला’ कविराय, यही जन जन की आशा।

फूले फले सदैव, हमारी हिन्दी भाषा।।



त्रिलोक  सिंह  ठकुरेला 

बंगला संख्या - 99,

रेलवे चिकित्सालय के सामने,

आबू रोड - 307026   

जिला- सिरोही ( राजस्थान )


4 टिप्‍पणियां:

  1. ठकुरेला’ कविराय, यही जन जन की आशा।
    फूले फले सदैव, हमारी हिन्दी भाषा।।.....बहुत सुंदर।भाई त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर रचना , वाकई हिंदी सबसे सशक्त है और सरल भी ।
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सृजन...त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी बहुत-बहुत बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर रचना त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी बधाई स्वीकार हो |
    पुष्पा मेहरा

    जवाब देंहटाएं

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...