मत
कहना मुझको दासी
दुष्यंत
कुमार व्यास
मैं
तो तेरी प्राण प्रिया हूँ,
कहना
मत मुझको दासी,
दान
गौत्र का किया पिता ने,
नहीं
करी कोई हाँसी।
साथ चलूँगी
हरदम तेरे ,
साँसे
तुझ संग जोडूँगी,
सुख-दुख तेरे ओढ़
लिए हैं,
नहीं तुझे
मैं छोडूँगी।।
सात
वचन में एक वचन था,
याद
दिला दूँ बिन देरी,
घर
में जो भी निर्णय होगा ,
रज़ा रहे
उसमें मेरी।
आर्ष
वचन है अटल सत्य है,
कब
थी कोई लाचारी,
अपने
पुरखों ने सोचा जो ,
करें
उसी की तैयारी।।
अपने
तन की
संरचना में ,
थोड़ा-थोड़ा अंतर है,
कुछ-
कुछ कर्म अलग हैं लेकिन,
यही
प्रेम का मंतर है।
दिल-दिमाग से
सोचें दोनों ,
ऊँच-नीच
का भेद नहीं,
सही-गलत
निर्णय करने में ,
दोनों
में संवेद सही।।
नारी समता की
बातें तो ,
भारत
ने पहले मानी,
काल
खण्ड मनु-शतरूपा का,
है
कहता वही कहानी।
हम
जो समता साध रहें हैं ,
वही सभी को सिखलाते,
नर-नारी
में भेद करो मत ,
बात जगत को
बतलाते।।
नारी
का सम्मान किया है,
बस
उसकी पूजा की है,
यज्ञ
विधी में दाय दिया है,
उससे
भी दीक्षा ली है।।
तीनों
फेरे नारी आगे ,
नर
का बस चौथा माना ,
नारी
तू जग की कल्याणी,
इसी
भावना को जाना।।
दुष्यंत
कुमार व्यास
रतलाम
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