मंगलवार, 30 सितंबर 2025

कविता

 

मत कहना मुझको दासी

दुष्यंत कुमार व्यास

 

मैं तो तेरी प्राण प्रिया हूँ,

कहना मत मुझको दासी,

दान गौत्र का किया पिता ने,

नहीं करी कोई हाँसी।

साथ  चलूँगी  हरदम तेरे ,

साँसे तुझ संग जोडूँगी,

सुख-दुख  तेरे ओढ़  लिए हैं,

नहीं  तुझे  मैं  छोडूँगी।।

 

सात वचन में एक वचन था,

याद दिला दूँ बिन देरी,

घर में जो भी निर्णय होगा ,

रज़ा  रहे  उसमें मेरी।

आर्ष वचन है अटल सत्य है,

कब थी कोई लाचारी,

अपने पुरखों ने सोचा जो ,

करें उसी की तैयारी।।

 

अपने तन  की  संरचना  में ,

थोड़ा-थोड़ा  अंतर है,

कुछ- कुछ कर्म अलग हैं लेकिन,

यही प्रेम का मंतर है।

दिल-दिमाग  से  सोचें दोनों ,

ऊँच-नीच का भेद नहीं,

सही-गलत निर्णय  करने  में ,

दोनों में संवेद सही।।

 

 

नारी  समता की  बातें  तो  ,

भारत ने  पहले मानी,

काल खण्ड मनु-शतरूपा का,

है कहता वही कहानी।

हम जो समता साध  रहें  हैं ,

वही  सभी को सिखलाते,

नर-नारी में भेद  करो मत ,

बात  जगत  को बतलाते।।

 

नारी का सम्मान किया है,

बस उसकी पूजा की है,

यज्ञ विधी में दाय दिया है,

उससे भी दीक्षा ली है।।

तीनों फेरे  नारी आगे ,

नर का बस चौथा माना ,

नारी तू जग की कल्याणी,

इसी भावना को जाना।।

 


दुष्यंत कुमार व्यास

रतलाम

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