रविवार, 31 अगस्त 2025

कविता (सुखदा छंद)

श्रीकृष्ण जन्म 


डॉ. अनिल कुमार बाजपेयीकाव्यांश

बन्दीगृह के ताले,   कैसे टूट गए ।

भाग्य कंस  के देखो, कैसे रूठ गए ।।

सातों संतानों  को, उसने मार दिया ।

प्रभुजी ने ही उसका, फिर उद्धार किया ।।

 

मुखड़ा प्रभु का कितना, भोलाभाला है ।

हर्षित  संग  देवकी, हर  ब्रजवाला  है ।।

मोर  पंख  माथे  का, सबको  है  सोहे । 

मधुरिम  मुख मुस्काये, जग को है मोहे ।।

***

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश

जबलपुर


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