बुधवार, 30 जुलाई 2025

हाइकु


आषाढ़ घन

पार्वती देवी ‘गौरा’

1

आषढ़ घन

गये बरस अब

सरसा तन।

2

तप्त धरती

होकर अब नम

पीड़ा हरती।

3

आशायें जगी

पुन: नव सृजन

हर्षित मन।

4

पुरवा चले

मन में आर्द्रता भरे

सांझ के ढले।

5

तन झूमता

है आ रहा सावन

मन घूमता।

6

देख बादल

हर्षित तन-मन

माँ सा आँचल।

***

पार्वती देवी ‘गौरा’

देवरिया



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