डॉ.
सुमित शर्मा
चलो
यूँ करें
बाँट
लें हिस्से वफ़ा के
बेइंतहा
मुहब्बत मैं जताऊँ
तुम
प्यार से मुस्कुरा देना
थोड़ा
रूठो तुम हक़ जताओ
मैं
प्यार से रिझा मना लूँगा
कभी
बरस जाना नादानियों पर मेरी
उठा
लूँ नाज़ो नख़रे, तुम मुस्कुरा देना
कहने
को नहीं रिश्ता कोई दरम्याँ
फिर
भी जगे अहसास तो दिल लगा लेना
हो
कभी बारिश, बूँदों को आँचल में भरकर
भीगना
प्रेम में कुछ छींटे मुझपर भी उड़ा देना
जब
बढ़ने लगे बेक़रारी, बदन सुलगने लगे
बाहों
में भरकर होठों से लगा लेना
ना
आएँगे लौटकर ये हसीं पल
कुछ
हौसले मेरे, कुछ दायरे अपने बढ़ा लेना।
डॉ.
सुमित शर्मा
वड़ोदरा
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