बानू
मुश्ताक : दुनिया को रोशन करता कन्नड़ का ‘हृदय दीप’
डॉ.
ऋषभदेव शर्मा
कर्नाटक
की 77 वर्षीय कन्नड़ लेखिका, वकील और सामाजिक
कार्यकर्ता बानू मुश्ताक (ज. 3 अप्रैल, 1948) ने अपने कहानी
संग्रह 'हार्ट लैंप' के लिए
अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 जीतकर इतिहास रच दिया है। यह पहली बार है जब
कन्नड़ भाषा में लिखी गई किसी कृति को यह प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुआ है। इस
उपलब्धि ने न केवल बानू मुश्ताक को वैश्विक मंच पर सम्मान दिलाया, बल्कि भारतीय साहित्य की समृद्ध परंपरा को भी दुनिया के सामने लाकर खड़ा
कर दिया। दीपा भास्ती द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित 'हार्ट
लैंप' ने साहित्य प्रेमियों के दिलों को छुआ और कन्नड़
साहित्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। इस उपलब्धि पर बानू मुश्ताक और उनकी
अनुवादक दीपा भास्ती को हार्दिक बधाई!
सयाने
बता रहे हैं कि ‘हृदय दीप’ (हार्ट लैंप) 1990 से 2023 के बीच लिखी गईं बारह
कहानियों का संग्रह है। ये कहानियाँ दक्षिण भारत - विशेष रूप से कर्नाटक - की
मुस्लिम महिलाओं के रोज़मर्रा के जीवन, उनके
संघर्षों, सपनों और हिम्मत को बखूबी उकेरती हैं। बानू
मुश्ताक की लेखनी में एक अनोखी संवेदनशीलता और जीवंतता है, जो
पाठकों को पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की चुनौतियों और उनकी आंतरिक शक्ति से
रूबरू कराती है। उनकी कहानियाँ हास्य, प्रतिरोध और बहनापे से
भरी हैं, जो कन्नड़ संस्कृति की मौखिक परंपराओं से प्रेरित
हैं। निर्णायक मंडल ने इस संग्रह की 'जीवंत, मार्मिक और बोलचाल की शैली’ की प्रशंसा की, जो
सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को संतुलन के साथ प्रस्तुत करती है।
बानू
मुश्ताक की यह उपलब्धि इसलिए और भी ख़ास है, कि इससे
न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिभा उजागर हुई है, बल्कि वैश्विक
मंच पर भारतीय भाषाओं के साहित्य की ताकत भी प्रमाणित हुई है। लंदन में आयोजित
समारोह में पुरस्कार स्वीकार करते हुए बानू ने बड़े पते की बात कही कि "यह
किताब इस विश्वास से जन्मी है कि कोई भी कहानी छोटी नहीं होती। मानवीय अनुभव का हर
धागा महत्वपूर्ण है।" यह बात साहित्य की उस शक्ति की ओर इशारा है, जो समाज को जोड़ने और मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करने का माध्यम बनती है।
हासन
(कर्नाटक) के एक मुस्लिम परिवार की बेटी बानू मुश्ताक का साहित्यिक सफर
प्रेरणादायक है। किसे पता था कि आरंभ में मदरसे की पढ़ाई के बाद,
आठ वर्ष की उम्र से कन्नड़ सीखने वाली बानू एक दिन लेखन को सामाजिक
बदलाव का हथियार बनाने के लिए दुनिया भर में जानी जाएँगी! यह हो सका, क्योंकि तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने दलित आंदोलन,
महिला अधिकार और भाषा आंदोलन जैसे मुद्दों से जुड़कर अपनी लेखनी को
लगातार निखारा। उनकी कहानियाँ उन महिलाओं की आवाज़ बनीं, जो
समाज, धर्म और राजनीति के दबाव में चुप रहने को मजबूर होती
हैं। उनकी रचनाएँ कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। उनकी
कहानी पर आधारित फिल्म 'हसीना' को 2004
में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
ग़ौरतलब
है कि यह पुरस्कार दीपा भास्ती को भी
भारतीय अनुवादक के रूप में स्थापित करता है। उन्होंने ही तो कन्नड़ के ‘हृदय दीप’
की रोशनी को 'हार्ट लैंप' के
रूप में अनुसृजित करके दुनिया भर के पाठकों तक पहुँचाया। दीपा ने कहा है,
"यह मेरी खूबसूरत भाषा के लिए गर्व का पल है।" कहना न
होगा कि उनका अनुवाद कन्नड़ की आत्मा को बरकरार रखते हुए बानू की कहानियों को
अंग्रेजी पाठकों के लिए जीवंत बनाता है। यह पुरस्कार अनुवाद कला और क्षेत्रीय
साहित्य को बढ़ावा देने की उनकी निष्ठा का भी सम्मान है।
कुल
मिलाकर,
'हार्ट लैंप' को बुकर मिलना भारतीय साहित्य के
लिए गौरव का विषय है। इससे पहले 2022 में गीतांजलि श्री की ‘रेत समाधि’ (टॉम्ब ऑफ
सैंड) ने हिंदी साहित्य को यह सम्मान दिलाया था। अब बानू मुश्ताक की इस उपलब्धि ने
पुनः सिद्ध किया है कि साहित्य देश, काल, भाषा और संस्कृति की भौतिक हदों को पार करने की ताकत रखता है। यह उपलब्धि
कन्नड़ साहित्य को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगी और नई पीढ़ी को भारतीय भाषाओं में
लिखने के लिए प्रेरित करेगी।
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डॉ.
ऋषभदेव शर्मा
सेवा
निवृत्त प्रोफ़ेसर
दक्षिण
भारत हिन्दी प्रचार सभा
हैदराबाद
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