गुरुवार, 26 जून 2025

चोका

 

प्रीति अग्रवाल

1.

एक थी यशोधरा

नीरव रात्रि

एकांत में निकले

खोजने सत्य

सिद्धार्थ महल से

न कोई विदा

यशोधरा से माँगी

न कोई संकेत

जिससे जान पाती

नन्हा राहुल

छोड़ मैया सहारे

यशोधरा के

मन में निरन्तर

यही टीसता

क्या मैं बनती बाधा

साथ न देती

क्या यही सोचकर

निकल पड़े

वो बिना कहे-सुने

क्यों मन मेरा

पहचान न पाए

यही मनाऊँ

पावें ज्ञान प्रकाश

मोक्ष का मार्ग

जनहित दिखाएँ

हूँ बड़भागी

उनकी अर्धांगिनी

प्रेम पात्र बनी मैं!!

2

जिंदगी

 

खुली किताब

कभी बंद मुट्ठी सी

मिश्री की डली

तो कभी सच्चाई सी

बंद तिजोरी

चौराहे, बाजार सी

नई नवेली

बासी अखबार सी

बहती नदी

ठहरे तालाब सी

दबी सिसकी

खुले अट्टहास सी

उनाबी जोड़ा

विधवा लिबास सी

माँ की थपकी

अंधड़ तूफान सी

दुखती रग

कभी मरहम सी

सुख के अश्रु

शोक के चीत्कार सी

गलती शीत

जेठ दोपहरी सी

अमां की रात

पूनम के चाँद सी

सीधी सरल

कभी कृष्ण लीला सी

जिंदगी एक

रूप रंग अनेक

कई बाकी हैं

ए जिंदगी तुझसे

मुलाकात बाकी है!

-o-


प्रीति अग्रवाल

कैनेडा

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