बुधवार, 30 अप्रैल 2025

सामयिक टिप्पणी

पहलगाम हमला : अमानुषिक, जघन्य और निंदनीय!

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बैसारन की खूबसूरत वादी में आतंकियों ने निर्दोष पर्यटकों पर  हमला कर दिया। कम से कम 26 लोग मारे गए, जिनमें दो विदेशी नागरिक भी शामिल थे। अनेक घायल हुए। लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) के आतंकियों का यह क्रूर, अमानुषिक, जघन्य और निंदनीय हमला न केवल आम लोगों पर हमला है, बल्कि कश्मीर की शांति, पर्यटन और भारत के संकल्प के खिलाफ गहरी साजिश का सूचक है। यही वजह है कि हर ओर कायरतापूर्ण हमले की कड़ी निंदा और पीड़ितों के लिए न्याय की माँग की आवाज़ें उठ रही हैं।

कहना न होगा कि आतंकियों ने इस हमले का समय बहुत शातिराना ढंग से चुना। यह कोई इत्तिफाक नहीं है कि हमला उस समय हुआ जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वैंस भारत आए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की यात्रा पर सऊदी अरब में थे। आतंकियों ने भारत को दुनिया के सामने शर्मिंदगी में डालने की कोशिश की। साथ ही, यह हमला उस वक़्त हुआ जब कश्मीर में पर्यटन जोर पकड़ रहा है। अमरनाथ यात्रा भी शुरू होने वाली है। पर्यटकों को निशाना बनाकर आतंकी कश्मीर की अर्थव्यवस्था और शांति की छवि को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। खासकर 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद बनी सामान्य स्थिति को भंग करने की उनकी दुष्टतापूर्ण मंशा तो खैर जगज़ाहिर है ही।

ज़ाहिर है कि इस हमले से देशभर में शोक और गुस्से की लहर व्याप गई है। पहली बात तो यह कि इस भीषण त्रासदी ने भारत के इस दावे को और पुख्ता कर दिया है कि सीमा पार से आतंकवाद अभी भी एक बड़ी चुनौती है। पाकिस्तान से जुड़े समूहों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा, पर शक है। चश्मदीदों ने बताया कि आतंकियों ने नाम पूछ-पूछ कर गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाया, जिससे सांप्रदायिक तनाव फैलाने और कश्मीर की साझा संस्कृति को नुकसान पहुँचाने की कोशिश हुई। यह कश्मीर की मेहमाननवाजी के खिलाफ है। यह हमला पर्यटकों को डराने और स्थानीय रोजगार को नुकसान पहुँचाने की गहरी साजिश है।

दूसरी बात, यह हमला पहले के हमलों से अलग और बड़ा है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सही कहा है कि यह हाल के वर्षों में आम नागरिकों पर सबसे बड़ा हमला है। आतंकी पहले सुरक्षाबलों या प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाते थे, लेकिन इस बार उन्होंने सैर-सपाटे और मौज-मस्ती के लिए आए पर्यटकों को चुना। पास में एक संदिग्ध गाड़ी और आतंकियों के सैन्य कपड़े मिलने से पता चलता है कि यह हमला बहुत सोच-समझकर किया गया। यह भी कहा जा रहा है कि  कहीं न कहीं सुरक्षा और खुफिया तंत्र से भारी चूक हुई है!

उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस हमले का  कड़ा और समझदारीभरा जवाब देगी। देना ही चाहिए! प्रधानमंत्री ने आतंकियों को सजा देने का वादा किया है, और गृह मंत्री ने तुरत-फुरत श्रीनगर में सुरक्षा समीक्षा की है। सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस का साझा अभियान जारी है। लेकिन सिर्फ सैन्य कार्रवाई काफी नहीं। पाकिस्तान पर चौतरफा कूटनीतिक दबाव जरूरी है। कश्मीर में पर्यटकों के लिए 24/7 हेल्पलाइन और सहायता अच्छा कदम है, लेकिन पर्यटक स्थलों और अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा बढ़ानी होगी।

            दुनिया ने इस हमले की निंदा की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और यूएई के क्राउन प्रिंस ने इस विषम घड़ी में भारत के साथ एकजुटता दिखाई है। भारत को इस समर्थन को आतंक के खिलाफ वैश्विक कार्रवाई में बदलना होगा। देश में भी सभी को दलगत आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर एकजुटता प्रदर्शित करनी होगी।

अतंतः यही कि कश्मीर में शांति की राह मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं। इस त्रासदी को आतंकवाद के खिलाफ मजबूत रणनीति, नागरिकों की सुरक्षा और कश्मीर की खूबसूरती को बचाने के लिए प्रेरणा बनाना होगा।

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2

पहलगाम नरसंहार के बाद : सिंधु में उबाल

खूनी मंगलवार (22 अप्रैल, 2025) को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस हमले की जिम्मेदारी 'द कश्मीर रेजिस्टेंस' नामक एक नए आतंकवादी संगठन ने ली है, जिसके पाकिस्तान स्थित आतंकी नेटवर्क से जुड़े होने के संकेत मिले हैं।

भारत सरकार ने इस बर्बर नरसंहार के जवाब में कई कड़े कदम उठाए हैं। एक, सिंधु जल संधि को निलंबित किया जा रहा है। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई यह संधि अब तक तीन बड़े युद्धों के बावजूद लागू रही थी। लेकिन अब भारत ने इसे अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दिया है। आखिर सब्र की भी कोई तो सीमा होती है न! दो, वाघा-अटारी सीमा  बंद की जा रही है। यानी, भारत ने पाकिस्तान के साथ अपनी एकमात्र भूमि सीमा को बंद कर दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार और आवाजाही पर असर पड़ना स्वाभाविक है। क्या करें, हालिया नाज़ुक हालात में यह ज़रूरी हो गया था! तीन, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द किए जा रहे हैं। सार्क वीजा छूट योजना के तहत भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया गया है। भला यह कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है कि पाकिस्तान तो आतंकियों को पाले-पोसे और भारत भला पड़ोसी बना अपने सब दरवाजे खुले छोड़ दे! चार, राजनयिक संबंधों में कटौती की जा रही है। भारत ने इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग के स्टाफ को घटाया है और पाकिस्तानी रक्षा सलाहकारों को निष्कासित किया है। वरना और कब तक पानी सिर से गुजरने दिया जाए!

कहना न होगा कि सिंधु जल संधि का निलंबन एक ऐतिहासिक कदम है। यह संधि पाकिस्तान के लिए जीवनरेखा मानी जाती है, क्योंकि उसकी कृषि और जल आपूर्ति का अधिकांश हिस्सा सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। इस संधि के निलंबन से पाकिस्तान में जल संकट गहरा सकता है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। भारत का यह निर्णय न केवल पाकिस्तान पर दबाव बनाने की रणनीति है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि अब आतंकवाद के प्रति भारत की सहनशीलता समाप्त हो चुकी है। यह कदम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह संदेश देता है कि भारत अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करेगा।

सयाने अनुमान लगा रहे हैं कि भारत के इन कदमों से भारत-पाकिस्तान संबंधों में और अधिक तनाव आ सकता है। पाकिस्तान ने भारत के इन निर्णयों की आलोचना की है और संभावित प्रतिकार की चेतावनी दी है! इससे दोनों देशों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंध और बिगड़ सकते हैं। इसके अलावा, सिंधु जल संधि का निलंबन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चर्चा का विषय बन सकता है। विश्व बैंक, जो इस संधि का मध्यस्थ था, और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ इस पर प्रतिक्रिया दे सकती हैं। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके कदम अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों के अनुरूप हों।

अंततः, पहलगाम हत्याकांड न केवल एक आतंकवादी कृत्य है, बल्कि भारत की सुरक्षा और संप्रभुता पर सीधा हमला भी है। भारत की कड़ी प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि अब वह आतंकवाद के प्रति किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरतेगा। हाँ, इन कदमों के दूरगामी प्रभावों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। भारत को अपनी रणनीति में संतुलन बनाए रखना होगा, ताकि वह आतंकवाद के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई कर सके, साथ ही क्षेत्रीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी बनाए रख सके। यह समय है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर कार्रवाई करे और ऐसे कृत्यों के लिए जिम्मेदार देशों पर दबाव डाले। भारत की यह पहल एक चेतावनी है कि अब आतंकवाद को सहन नहीं किया जाएगा, और इसके खिलाफ निर्णायक कदम उठाए जाएँगे –

उबला समुद्र शांति का, थामे न थमेगा;

इसको न और आँच दो, किस ओर ध्यान है!

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पहलगाम के घाव और अटारी का बंद दरवाज़ा!

पहलगाम की वादियों में 26 मासूमों की जान लेने वाली आतंकी आग की चिनगारियों ने हर भारतीय के दिल को छलनी कर दिया है। खून से सनी वह धरती आज केवल शोक में ही नहीं, बल्कि एक उफनते हुए रोष के सैलाब में भी डूबी है। इस दर्द के बीच भारत सरकार ने अटारी-वाघा सीमा बंद करने और सिंधु जल समझौते को स्थगित करने का कड़ा फैसला लिया। यह कदम न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा की पुकार है, बल्कि उन माँओं, बच्चों और परिवारों के आँसुओं को पोंछने की कोशिश भी, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है। लेकिन सवाल यह भी है कि इस फैसले के सामाजिक, आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक और कूटनीतिक परिणाम क्या होंगे।

इस फैसले के औचित्य को समझने के लिए यह याद करना ज़रूरी है कि पहलगाम की त्रासदी कोई पहला घाव नहीं। बार-बार सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद ने भारत की धरती को लहूलुहान किया है। अटारी-वाघा, जो कभी दो पड़ोसियों के बीच दोस्ती का प्रतीक था, आज आतंक के साये में है। भारत का यह फैसला उस आक्रोश का प्रतीक है, जो उस समय हर भारतीय के सीने में धधक रहा है। यह पाकिस्तान को कड़ा संदेश है कि खून की होली खेलने वालों को अब बख्शा नहीं जाएगा।

सामाजिक दर्द को महसूस करने वाले याद दिला रहे हैं कि अटारी-वाघा की ‘बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी’ हर शाम अमृतसर और लाहौर के लोगों को जोड़ती थी। वह डुगडुगी, वह जोश, वह देशभक्ति का ज्वार - अब सब खामोश है। स्थानीय लोग, जो इस सीमा पर पर्यटकों के भरोसे जीते थे, अब उदास हैं। फिर भी, पहलगाम में बिखरे शवों के सामने यह खामोशी ज़रूरी है। हर भारतीय जानता है कि सुरक्षा से बड़ा कोई सुख नहीं।

 

इस कठोर फैसले के आर्थिक पहलू की बात करें तो, बेशक सीमा बंद होने से दोनों देशों का व्यापार ठप होगा। पंजाब के किसान, छोटे व्यापारी और ट्रांसपोर्टर इसकी मार झेलेंगे। लेकिन क्या मासूमों के खून से सने चंद सिक्के हमें सुकून दे सकते हैं? भारत की मज़बूत अर्थव्यवस्था इस झटके को सह लेगी, पर पाकिस्तान की कमज़ोर अर्थव्यवस्था शायद इस आर्थिक चोट को इतनी आसानी से न झेल पाए। उनके लिए यह एक सबक है कि आतंक का रास्ता  आखिर सर्वनाश  के अंधे कुऍं तक पहुँचता है।

दरअसल वाघा बॉर्डर को बंद करना आतंकवाद की फैक्टरी चलाने वाले देश पाकिस्तान को भारत के चौतरफा सामरिक और राजनीतिक जवाब का अहम हिस्सा है।  यह फैसला भारत की आक्रामक रक्षा नीति का ऐलान है। सिंधु जल समझौते के स्थगन के साथ यह कदम पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका है; जीवनरेखा का खंडित जो जाना है। घरेलू मोर्चे पर, यह कदम हर उस भारतीय को संतोष देगा, जो आतंक के खिलाफ कड़ा जवाब चाहता है। यह बात अलग है कि इससे इस इलाके में तनाव भी बढ़ जाएगा। यों, भारत को अब और सजगता से अपने कदम रखने होंगे।

रही कूटनीतिक असर की बात, तो यह कहा जा सकता है कि  वैश्विक मंचों पर भारत का यह कदम आतंकवाद के खिलाफ उसकी अटल आवाज़ को और बुलंद करेगा। अमेरिका, यूरोप जैसे देश, जो आतंक के खिलाफ हैं, भारत के साथ खड़े होंगे। लेकिन, यह भी ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान खीझभरी जवाबी कार्रवाइयों से बाज़ नहीं आएगा। अतः, भारत को अपनी कूटनीति को और धार देनी होगी, ताकि दुनिया हमारी पीड़ा और रोष को समझे।

कुल मिलाकर, पहलगाम के घाव गहरे हैं। हर भारतीय का दिल आज शोक और गुस्से से भरा है। अटारी-वाघा का बंद दरवाजा उस दर्द की गूँज है, जो हमें बार-बार निर्दोष पर्यटकों के खून की कीमत वसूलने को मजबूर करतीर है। यह फैसला सही है, क्योंकि भारतमाता के बच्चों का खून सस्ता नहीं। अब वक़्त है कि भारत एकजुट होकर  अपनी ताकत और कूटनीति से दुनिया को बताए कि हम शांति चाहते हैं, पर कमज़ोर नहीं हैं।

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डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद



2 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक व विचारात्मक … डॉ. रक्षा मेहता 🙏

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  2. विचारात्मक , महत्वपूर्ण आलेख । सुदर्शन रत्नाकर

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