भरोसा
अनिता मंडा
कहने और न कहने के बीच का बहुत कुछ
सँभाल रखा था तुमने आँखों में
शब्द ढूँढने की कोशिश में
थोड़ी-थोड़ी देर में मूँदते हुए आँखें
माथे ठहरी हुई सिलवटें
तोलती रही शब्दों का भार
सीखना होता है कुम्हार की तरह हुनर
मन को बाँधने का
न कच्ची मिट्टी दरके
न कोई खोट रहे बरतन में
ऐसे ही तुम सीखा रहे थे
मन को साधना
और मन है कि बार-बार डूबता उतराता
हिचकोले खाता
इम्तेहानों से घबराता
हर बार ढूँढता तुम्हारी शरण
थकान तारी है पोर-पोर पर
एक पाँव उठाने में भी
खिंच जाते हैं साँसों के तार
तुम हो कि भरोसा दिए जा रहे हो
एक छोटा सा कदम उठाना ही
शुरुआत होती है सफ़र की
***
अनिता मंडा
दिल्ली
अतिसुंदर
जवाब देंहटाएंयह भरोसा और यह उम्मीद हमेशा बनी रही तुम्हारे साथ दोस्त
जवाब देंहटाएंBahut sunder ..
जवाब देंहटाएंएक छोटा सा कदम उठाना ही
जवाब देंहटाएंशुरुआत होती है सफ़र की।
बहुत सुंदर कविता। आपके लिखने की शैली बहुत उम्दा है।
बहुत बहुत बधाई।
आप लिखते रहें हम पढ़ते रहें।
शब्दों का चयन और भावनाओं का बहुत ही शानदार प्रस्तुतिकरण आपको अनन्य बनाता है।
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