शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

संपादकीय

 


हिन्दी वेब साहित्य

डॉ. पूर्वा शर्मा

आज के इस आधुनिक युग में इंटरनेट देश-विदेश के अधिकांश गाँव-शहर में अपनी उपस्थिति दर्ज करने में सक्षम हुआ है।  इंटरनेट के बढ़ते हुए कदम ने पूरे विश्व को ‘ग्लोबल विलेज’ बना दिया। कोरोना काल ने विविध कार्यों के लिए इंटरनेट के उपयोगिता-महत्त्व पर अपनी मुहर लगा दी।  इसके पहले भी बैंकिंग, टिकिट बुकिंग, ऑफिस एवं अन्य कार्यों के लिए ई-मेल, यू ट्यूब, ब्लॉग, वेबसाइट आदि का उपयोग किया ही जा रहा था, लेकिन कोरोना के प्रकोप ने क्लास रूम एवं ऑफिस को हमारे घरों के कमरों में पहुँचा दिया। एक युग था जब बाबा ‘तुलसी’ के ‘मानस’ को जनसाधारण के बीच गा-गाकर पहुँचाया गया था, क्योंकि उस युग में इस कालजयी महाकाव्य का प्रकाशन-प्रचार-प्रसार इतना सुलभ नहीं था। लेकिन आज के युग में एक ‘क्लिक’/ ‘टच’ पर कोई भी कार्य संभव है और महज इतना ही नहीं, विश्व की किसी भी भाषा का साहित्य हम अपनी ‘स्क्रीन’ पर पढ़ सकते हैं। यही है इंटरनेट की ताकत। इंटरनेट के आरंभिक दौर में अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के लिए स्थान नगण्य रहा लेकिन 1990 के अंतिम दशक एवं वर्ष 2000 के आरंभ में अन्य भाषाओं के प्रयोग-उपयोग की शुरुआत हुई। यूनिकोड के विकास एवं गैर अंग्रेजी वेबसाइटों की शुरुआत ने इंटरनेट का मार्ग प्रशस्त किया। इसके पश्चात ‘स्मार्ट फोन’ एवं ‘ऐप्स’ के विस्तार ने इस क्षेत्र में क्रांति ही ला दी। आज इंटरनेट का प्रयोग-उपयोग हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया है।

आज समाचार पत्र पढ़ने से लेकर ‘ऑडियो बुक्स’-‘पॉडकास्ट’ आदि सुनने और हाँ ‘यू ट्यूब’ को कैसे भुलाया जा सकता है –  यह सभी एक स्थान पर बैठे-बैठे ही संभव है, चाहे आप अपने देश में हों या विदेश में। वेब-नेट से आज पाठकों-साहित्य प्रेमियों के लिए अपनी पसंद की भाषा-विधा-रचनाओं का रसास्वादन करना बहुत ही आसान हो गया है। साहित्य के प्रचार-प्रसार-व्याप-लोकप्रियता आदि में नेट-डिजिटलाइज़ेशन की महती भूमिका रही है। पांडुलिपि से प्रिंटिंग का सफ़र क्रांतिकारी रहा। और प्रिंटिंग-पब्लिशिंग से वेब पब्लिशिंग तक की यात्रा अपने आप में बहुत ही अनूठी रही है। एक समय था जब कागज़ एवं कलम के बिना साहित्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। साहित्य को कागज़-कलम रहित माध्यम के रूप में देखना इंटरनेट के आरंभिक दौर में थोड़ा असहज लगा। लेकिन धीरे-धीरे इसे न केवल स्वीकृति मिली बल्कि अपार लोकप्रियता भी प्राप्त हुई। इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्वभर में अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में हिन्दी ने सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त की है। आज हिन्दी भाषा वेब साहित्य के माध्यम से देश-विदेश-गाँव-शहर के कोने-कोने में बड़ी ही सरलता-सुलभता से पहुँच रही है। दुनिया का पहला हिन्दी पोर्टल होने का दावा करने वाले ‘वेबदुनिया’ की शुरुआत 23 सितंबर,1999 को हुई थी। आज हिन्दी के अनेक वेबपोर्टल/वेबसाइट्स मौजूद हैं और इनकी संख्या में लगातार इजाफ़ा हो रहा है। हिन्दी साहित्य को सुलभ-प्रासंगिक-आधुनिक बनाना ‘हिन्दी वेब साहित्य’ का ध्येय है। अलग-अलग विद्वानों ने हिन्दी वेब साहित्य को भिन्न-भिन्न तरीके से परिभाषित किया है। डॉ. सुनील कुमार लवटे के अनुसार – “हिन्दी वेब साहित्य वह साहित्य है, जो इंटरनेट के माध्यम से सृजित, प्रकाशित और प्रसारित होता है। यह साहित्य पारंपरिक मुद्रित साहित्य के समान ही रचनात्मकता और कल्पनाशीलता का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन इसका स्वरूप, माध्यम और प्रसार पूरी तरह डिजिटल होता है।” यानी साहित्य तो आज भी पहले की तरह ही रचा जा रहा है लेकिन प्रकाशन-प्रस्तुतीकरण को लेकर यह पारंपरिक साहित्य से भिन्नता लिए हुए है। इस संबंध में डॉ. राकेश पांडेय का मत है –“वेब साहित्य उस साहित्यिक अभिव्यक्ति का रूप है, जो डिजिटल तकनीक और इंटरनेट के द्वारा न केवल सृजन और प्रकाशन का नया मंच प्रदान करता है, बल्कि पाठक और लेखक के बीच संवाद और सहभागिता को भी बढ़ावा देता है।” अर्थात वेब साहित्य लेखक एवं पाठक के बीच एक सेतु का कार्य करने में भी सक्षम है। आजकल पहले का लिखा हुआ अधिकांश प्राचीन-लोकप्रिय साहित्य भी नेट पर आसानी से उपलब्ध है। इस संदर्भ में डॉ. ओमप्रकाश सिंह का मनाना है – "हिन्दी वेब साहित्य को समझने के लिए इसे दो भागों में देखना होगा—पहला, इंटरनेट पर उपलब्ध परंपरागत साहित्य और दूसरा, वह साहित्य जो विशेष रूप से डिजिटल माध्यम के लिए रचा गया है। यह साहित्य तकनीकी और भाषाई प्रयोगधर्मिता का अद्वितीय उदाहरण है।" लेकिन डॉ. हरिश्चंद्र वर्मा ने हिन्दी वेब साहित्य को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया है – "हिन्दी वेब साहित्य वह साहित्य है, जो इंटरनेट पर विभिन्न वेबसाइटों, ब्लॉग्स, सोशल मीडिया और ई-पत्रिकाओं के माध्यम से उपलब्ध होता है। इसका उद्देश्य साहित्य को अधिक लोकतांत्रिक और व्यापक बनाना है।" वहीं डॉ. चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि – "वेब साहित्य डिजिटल युग का साहित्यिक स्वरूप है, जहाँ मल्टीमीडिया, हाइपरलिंक और सोशल इंटरएक्शन जैसे तत्व इसे पारंपरिक साहित्य से अलग पहचान देते हैं। यह साहित्यिक अभिव्यक्ति का एक नवीन और प्रासंगिक माध्यम है।"

उपर्युक्त परिभाषाओं के देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि ‘हिन्दी वेब साहित्य’ हिन्दी भाषा में लिखा गया वह साहित्य है जो किसी डिजिटल प्लेटफॉर्म (वेबसाइट, ब्लॉग, सोशल मीडिया आदि) के माध्यम से नयी तकनीकों का उपयोग करके तीव्रता से व्यापक स्तर पर पाठक एवं लेखक के बीच सीधा संवाद करने में सक्षम होता है, जिसमें हर वर्ग के लेखक एवं पाठकों की भागीदारी होती है।

गत कुछ वर्षों में हिन्दी वेब साहित्य का संसार बहुत ही व्यापक हो गया है। आज इंटरनेट के माध्यम से ऋग्वेद की ऋचाओं-आदिकालीन कवियों-लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं से लेकर नवोदित कवि-लेखकों की रचनाएँ बड़ी आसानी से एक क्लिक पर उपलब्ध है। वह दिन दूर नहीं जब समग्र उत्कृष्ट साहित्य की उपलब्धता इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर होगी। अपने आरंभिक दौर में इंटरनेट पर साहित्य लिखने-रचने वालों को मुख्य धारा वर्ग ने विशेष तवज्जो नहीं दिया। बड़े प्रतिष्ठित कवियों-लेखकों जैसे नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव आदि ने इंटरनेट पर प्रकाशित साहित्य को कूड़ा तक कह दिया लेकिन समय के साथ इंटरनेट से जुड़ने वाले युवा-नवोदित लेखकों-साहित्यकारों के प्रयासों ने इन सभी को प्रभावित कर उन्हें भी इस धारा में शामिल कर लिया। आज फेसबुक, इंस्टाग्राम, ब्लॉग, ई-पत्रिका आदि अनेक माध्यमों से युवा-नवोदित ही नहीं अपितु बहुत से वरिष्ठ लेखकों-कवियों की सक्रीयता देखी जा सकती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि इंटरनेट के माध्यम से ताज़ा लिखा साहित्य मिनटों में लाखों-करोड़ों पाठकों तक बड़ी ही आसानी से पहुँच जाता है, वहीं पर किसी पत्रिका अथवा पुस्तक के पारंपरिक प्रकाशन के द्वारा वह कुछ गिने-चुने पाठकों तक ही सीमित रह जाती है। इंटरनेट पर युवा पाठकों की संख्या अधिक है, इसलिए लेखक को यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उसके द्वारा रचित साहित्य इन पाठकों के बीच अपना स्थान बना सके और उन्हें प्रभावित कर सके।

परंपरागत साहित्य और वेब साहित्य में कुछ साम्य दिखाई देता है जैसे – मानवीय भावनाओं-विचारों की अभिव्यक्ति करना इन दोनों का उद्देश्य है। हर युग का साहित्य अपने परिवेश-अपने समाज का चित्रण प्रस्तुत करता है तो वेब साहित्य भी ऐसा करने में समर्थ है। जिस तरह से पारंपरिक साहित्य में अनेक विधाओं (जैसे कहानी, उपन्यास, कविता, संस्मरण, निबंध, आलोचना आदि) में सृजन होता रहा है, ठीक उसी तरह से वेब साहित्य भी विभिन्न विधाओं से सुसज्जित है।  प्रेमचंद जैसे लेखकों ने इस बात पर जोर दिया है कि साहित्य मात्र मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि उसमें मनुष्यत्व को जगाने, सद्भावों का संचार करने और हमारी दृष्टि को फैलाने का सामर्थ्य होना चाहिए ; इस दृष्टि से देखा जाए तो वेब साहित्य भी सामाज में जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहा है। साहित्य चाहे किसी भी माध्यम हो सृजनात्मकता और कल्पनाशीलता के बिना साहित्य सृजन संभव नहीं – यह बात इन दोनों माध्यमों पर भी लागू होती है। कोई भी रचना पाठक के हृदय तक पहुँच सके यह अपेक्षा दोनों ही रूपों में अपेक्षित है।

पारंपरिक साहित्य एवं वेब साहित्य में कुछ साम्यता तो हमने देखी लेकिन कुछ बिन्दु है जो इन्हें अलगाता है। सबसे पहली बात जो इन दोनों को एक दूसरे से भिन्न बनाती है वह है इनके प्रकाशन का माध्यम।   एक ओर पारंपरिक साहित्य प्रिंटिंग अथवा मौखिक परंपरा के द्वारा पाठकों तक पहुँचता है तो दूसरी ओर वेब साहित्य अपने डिजिटल स्वरूप में लोगों की स्क्रीन पर आसानी से पहुँचने में समर्थ है। और अपने डिजिटल स्वरूप के कारण यह बड़ी ही सुलभता से भौगोलिक सीमाओं से मुक्त है जबकि पारंपरिक साहित्य भौगोलिक सीमाओं के बंधन से जुड़ा है। वेब साहित्य में लेखक बड़ी ही आसानी से स्वयं प्रकाशक बन अपनी रचना को प्रकाशित-प्रसारित करता है वहीं पारंपरिक साहित्य के प्रकाशन की व्यवस्था जटिल एवं प्रकाशक के नियंत्रण में होती है। पाठकों की प्रतिक्रिया के मामले में वेब साहित्य तुरंत ही मिनटों में पाठकों के विचारों-जवाबों को लेखक तक पहुँचाता है, इसमें पाठकों की भागीदारी अधिक होती है लेकिन पारंपरिक साहित्य में यह प्रक्रिया धीमी और समय लेने वाली होती है। विद्वानों के अनुसार किसी भी साहित्यकार की ख्याति का आधार परिमाण नहीं अपितु गुणवत्ता ही होता है। पारंपरिक साहित्य में गुणवत्ता संपादक अथवा प्रकाशक द्वारा सुनिश्चित की जाती है लेकिन वेब साहित्य के संदर्भ में यह गुणवत्ता लेखक अथवा नियंत्रक पर निर्भर करती है। यही कारण है कि वेब साहित्य की गुणवत्ता अच्छी भी हो सकती है और खराब भी यानी मिश्रित। जैसा कि हम आगे भी कह चुके हैं कि वेब साहित्य को अपने आरंभिक दौर में  सस्ती अथवा निचले स्तर की रचनाओं का ठप्पा मिल चुका है। जल्दी-जल्दी प्रकाशन के चक्कर में गुणवत्ता पर असर पड़ना स्वाभाविक है। अतः वेब साहित्यकार इस बात को सुनिश्चित करें कि शीघ्र पब्लिश करने की हौड़ में गुणवत्ता खतरे न पड़ जाए। साहित्य की विशेषता है कि वह वर्षों तक पाठकों के बीच में अपने स्थान बनाने में समर्थ है। उसके इसी गुण के कारण साहित्य का संरक्षण आवश्यक है। पारंपरिक साहित्य में मुद्रित सामग्री लंबे समय तक संरक्षित रहती है, लेकिन दूसरी ओर ज्यादा प्राचीन होने पर हम उसे डिजिटल रूप में भी संग्रहीत करने का प्रयास करते हैं। लेकिन डाटा खो जाने की संभावना वेब साहित्य में हमेशा ही बनी रहती है। हालाँकि आजकल डेटा सैविंग के लिए अनेक सुविधाएँ (क्लाउड आदि) भी उपलब्ध है। वेब साहित्य में भाषा-शैली को लेकर आधुनिक-अनौपचारिक प्रयोग देखे जा सकते हैं लेकिन पारंपरिक साहित्य में आज भी परंपरागत-औपचारिक शैली का प्रयोग ज्यादा प्रचलित है। प्रस्तुतीकरण-प्रयोग के आधार पर वेब साहित्य काफ़ी रचनात्मक होता है, जैसे – रंग-बिरंगें फॉन्टस, सुंदर चित्रों-जी.आई.एफ, वीडियो आदि का प्रयोग-उपयोग जो रचना को ज्यादा आकर्षक एवं प्रभावी बनाते हैं। प्रस्तुतीकरण के स्तर पर पारंपरिक साहित्य सीमित ही रहता है।

पारंपरिक साहित्य से इतने सारे साम्य-वैषम्य के बावजूद वेब साहित्य के बारे में हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि साहित्य के प्रचार-प्रसार में वेब साहित्य का योगदान अभूतपूर्व है। जहाँ पारंपरिक साहित्य का आने वाले कुछ वर्षों में भी पहुँचना मुश्किल था, उस प्रत्येक स्थान पर वेब साहित्य पहुँचने में समर्थ रहा। आज वेब साहित्य ने हिन्दी को वैश्विक स्तर पर ले जाकर न केवल पाठकों के बीच पहुँचाया बल्कि उसे एक सीमित पाठक वर्ग की पहुँच से लेकर व्यापक रूप में अलग-अलग वर्ग के अनेक पाठकों तक पहुँचाया। वेब साहित्य किसी भी नवोदित प्रतिभा को प्रकाशन का अवसर देने में समर्थ है, अब वह बात नहीं कि कोई प्रतिष्ठित लेखक ही अपनी बात पाठकों से कह सकता है। आज हमें हिन्दी साहित्य ही नहीं बल्कि हिन्दी की अलग-अलग विधाओं से संबंधित भी अनेक ब्लॉग, वेबसाइट्स, फेसबुक पेज, वेबपेज, ई-पत्रिकाएँ, व्हाट्सएप-इंस्टा आदि सोशल ग्रुप्स आदि देखने को मिल रहे हैं। जो साहित्य प्रेमियों के लिए हर्ष का विषय है।   आज हिन्दी वेबसाइट के बढ़ते आँकड़ों को देखकर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि हिन्दी के प्रचार-प्रसार में वेब साहित्य की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। हाँ, यह बात अवश्य है कि इससे साहित्यक चोरी, साहित्य की गुणवत्ता, पाठक-लेखक के संबंध एवं हमारी साहित्यिक संस्कृति को हानि पहुँचने जैसे कुछ दुष्परिणाम-दुष्प्रभाव हो सकते हैं और कुछ तो हो भी चुके हैं।  लेकिन यदि हम इसके संभावित समाधान खोज लें और उस पर अमल करें तो इन दुष्परिणामों से निजात पा सकते हैं। अंत में इतना ही कह सकते हैं कि ‘हिन्दी वेब साहित्य’ ने हिन्दी के साहित्यक संसार को एक नया आयाम दिया है तथा यह हिन्दी साहित्य को और अधिक समृद्ध एवं प्रासंगिक बनाने में सक्षम है। ‘हिन्दी वेब साहित्य’ हिन्दी साहित्य को और अधिक ऊँचाई पर ले जाए.... अस्तु!

ऊँचा फहरे

हिन्दी का परचम

विश्व नक्शे पे।

 


डॉ. पूर्वा शर्मा

वड़ोदरा

 

 

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. रवि कुमार शर्मा,इंदौर10 जनवरी 2025 को 1:41 pm बजे

    "हिंदी वेब साहित्य" ने इंटरनेट पर धूम मचा रखी है,जिसके लिए सभी सुधि पाठकों का आभार । हिंदी सही मानो में अब दिन दोगुनी और रात चौगुनी प्रगति करेगी,जन जन की भाषा बनेगी ।

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  2. बहुत सुंदर लिखा। बधाई।

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