भीकम सिंह
1
देखो ना आज
काली घटाओं में
है
बेपरवाही
अंगड़ाई ले रही
फिर मेरी
तन्हाई ।
2
मेरे प्रेम के
अफ़साने आम हैं
इस जगह
यकीं आए ना आए
तुम हो, वो वजह।
3
थक जाता हूँ
कहते कहते मैं
कहानी मेरी
फिर भी सुनें
लोग
क्यों अनकही
मेरी।
4
मैं जागता था
तेरे ख़्वाबों
के लिए
मनमानी में
वो भी क्या समय
था
हमारी जवानी
में।
5
यादें आते ही
ऑंखों में फिर
नमी
आती-बेबात
मन की पीड़ा और
,
बढ़ा देती है
रात ।
6
राह रोक के
तेरी यादों की
हम
कब से खड़े
हटे ज्यों तेरी
यादें
जान में जान
पड़े ।
7
मैं राख जैसा
गुमसुम पड़ा था
तुम जो आई
धुऑं-सा निकला
है
हरकत-सी हुई ।
8
कभी फिर से
मिल जाएगी कहीं
सोचा भी ना था
दिल क्यूँ उदास
है
ऐसा रिश्ता तो
ना था ।
9
जो मैं जी सका
ना ही तुम जी
सकी
प्रेम के पल
वही तो
स्मृतियों में
मिलते आजकल ।
10
तुम हूबहू
ख़्वाबों में
उभरती
लेके भादों -
सा
ऑंखें तब ढूँढती
वो, सावन यादों का
।
भीकम सिंह
‘अभिधा’ गली
नं. 5
जारचा रोड, गुर्जर कॉलोनी
दादरी, गौतमबुद्ध नगर
(उ. प्र.)
भीकम सिंह जी के समस्त ताँका भाव जगत को स्पर्श करने वाले हैं. बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंभाई साहब आपका प्रत्येक ताका दिल को छू जाते हैं
जवाब देंहटाएंवाह दिल से दिल तक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण ताँका। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिखा आद भीकम सिंह जी
जवाब देंहटाएंज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप
सभी ताँका बहुत खूबसूरत । बधाई।
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