अगस्त मास की ख़ास कहानी
डॉ. पूर्वा शर्मा
वैसे प्रकृति प्रेम, मानव प्रेम, ईश्वर प्रेम, देशप्रेम, समाज-संस्कृति से विशेष लगाव तथा साथ ही इन सबसे संबद्ध
विचार-विमर्श हमारे मन-मस्तिष्क से स्वतः स्फूर्त होकर सहज-स्वाभाविक रूप में
हमेशा मूक या मुखर माध्यमों से व्यक्त-अभिव्यक्त होते ही रहते हैं,
किंतु किसी विशेष निमित्त या आलंबन मिलने पर इनका
फोर्स-उफान तथा इनकी गहनता-गरिष्ठता कुछ बढ़ी चढ़ी ही होती है। हम देखते हैं कि
समय-चक्र के चलने घूमने के साथ-साथ कुछ ख़ास पल-अवसर
इत्तफाक से ही आ जाते हैं जो हमें एक अलग ही भावलोक- विचारलोक में पहुँचा देते हैं
तो दूसरी ओर कुछ अवसर-प्रसंग-मौसम तथा दिन-तिथियाँ-त्योहार ऐसे हैं जो इस समय चक्र
में कुदरत या मनुष्य द्वारा पूर्व-निर्धारित ! और निर्धारित करने का कोई न कोई कारण
एवं कहानी। ऐसे अवसरों का हम बेसब्री से इंतजार करते हैं और जिनके आने पर
प्रसंगोचित -प्रसंगानुरूप हम अपने आपको विविध रूपों में व्यक्त करते हैं,
प्रस्तुत करते हैं।
ठंडी फुहार, चारों तरफ हरियाली, आकाश में धीमे-धीमे चलते काले-घने
बादल... इस सुहावने मौसम में और क्या चाहिए...! पावस ऋतु एक ऐसी ऋतु है जिस समय
प्रकृति का सौन्दर्य अपने चरम पर होता है और यह सौन्दर्य किसी को भी अपनी ओर
आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है।
धूम-धुआँरे, काजल कारे,
हम हीं बिकरारे बादल ,
मदन राज के बीर बहादुर,
पावस के उड़ते फणिधर !
चमक झमकमय मंत्र वशीकर
छहर घहरमय विष सीकर,
स्वर्ग सेतु-से इंद्रधनुषधर,
कामरूप
घनश्याम अमर !
सुमित्रानंदन पंत
बरखा रानी के आते ही सौंधी-सौंधी
मिट्टी की सुगंध दुनिया भर के सभी मशहूर-महँगे इत्र-परफ्यूम की गंध को पीछे छोड़
देती हैं और हमें प्रकृति के समीप लाकर खड़ा कर देती है। इतना ही नहीं प्रकृति के इस
अनुपम सौन्दर्य को निहारने के लिए तो अनेक त्योहार भी अपनी कहानी कहने के लिए एक
के पीछे एक कतार में खड़े रहते हैं। भारत भूमि का सौन्दर्य अनुपम है। पल-पल बदलते मौसम,
ऋतु परिवर्तन इसके प्राकृतिक सौन्दर्य में चार चाँद लगा देता है।
नित नयी पोशाक पहनकर प्रकृति
है लुभाती
भिन्न-भिन्न ऋतुओं की
सौगात हमारे लिए है लाती।
डॉ. पूर्वा शर्मा
भारतीय संस्कृति एवं षड्ऋतु में श्रावण/सावन मास के महत्त्व
को भला कैसे भुलाया जा सकता है। यदि हमारी संस्कृति को त्योहारों-पर्वों का कोष माने
तो सावन इसके बहुमूल्य हीरे-जवाहरात है। लेकिन सावन अथवा अगस्त माह के अनेक पर्व-त्योहारों
में से सबसे सुखद दृश्य है – सावन की हरियाली में स्वाधीनता की गूँज का प्रतिनिधित्व
करता तिरंगा; जो 15 अगस्त को हर द्वार पर लहराता हुआ नज़र आता है।
नागाधिराज शृंग पर खडी हुई,
समुद्र की तरंग पर अडी हुई,
स्वदेश में जगह-जगह गडी हुई,
अटल ध्वजा हरी, सफेद केसरी!
न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,
न द्वन्द-भेद के समक्ष यह झुकी,
सगर्व आस शत्रु-शीश पर ठुकी,
निडर ध्वजा हरी, सफेद केसरी!
चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें,
अजर सदा इसे लिये हुये जियें,
अमर
सदा इसे लिये हुये मरें,
अजय ध्वजा हरी,
सफेद केसरी!
-
हरिवंशराय
बच्चन
स्वाधीनता के गीत गाते-गुनगुनाते हुए सभी देशवासी ‘स्वतंत्रता
दिवस’ का दिन एक भव्य त्योहार-उत्सव के रूप में मनाते हैं। स्वतंत्रता दिवस की बात
हो और स्कूल में मिलने वाले लड्डू की बात न हो ऐसा कैसे हो सकता है! भले ही हमें स्कूल
छोड़े हुए एक अरसा हो गया हो लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर मिलने वाले उस लड्डू की मिठास
का अहसास तो हमेशा ही होता रहता है।
गुलामी की बेड़ियों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए भारत के अनेक
वीरों ने बलिदान दिया और इसके फलस्वरूप मिली हमें स्वाधीनता। हमारे स्वतंत्र देश ने
अपने नियम-कानून बनाए, अपना संविधान लिखा और स्वतंत्रता के साथ दे दिए हमें कुछ मौलिक
अधिकार। लेकिन क्या यही है स्वतंत्रता कि कोई भी कुछ भी कर सकता है? कुछ भी.... यानी
कुछ भी... घिनौने अपराध भी! स्वतंत्र होने का पूरा फायदा उठाकर हाल ही में कलकत्ता
में हुआ दिल दहला देने वाला अमानवीय कांड। यह नृशंस बलात्कार/हत्या कांड हमारी स्वतंत्रता-सुरक्षा,
देश के विकास आदि पर एक करारा तमाचा है। लेकिन इस तरह की घटना तो पहले भी हो चुकी है।
2012 में हुई इस तरह की घिनौनी घटना को ‘निर्भया’ कहा गया और 2012 के बाद 2017, 2019...
को क्रमशः निर्भया 2, 3, 4..... यह सिलसिला आज तक है जारी......
भरी सभा में खींचा था चीर
हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे वीर
वह तो था द्वापर युग
आज चल रहा आधुनिक युग
फिर भी घूम रहे गली-गली कौरव
न जाने क्यों बुत बने बैठे आज भी पांडव
तब लाज बचाने आए थे गिरधारी
क्या इस युग में नहीं कोई मुरारी!
क्या कुछ बदलेगा मोमबत्ती जलाने से?
या सुधरेंगे हालात सुदर्शन चक्र चलाने से?
हे पार्थ! उठा लो अब तो कोई ठोस कदम
कहीं ऐसा न हो, ले ही नहीं कोई द्रौपदी दोबारा यहाँ जनम!
डॉ. पूर्वा शर्मा
इस बात में कोई दो राय नहीं कि स्त्रियों
को स्वयं की रक्षा करना आना चाहिए लेकिन उसके मान-सम्मान-सुरक्षा पर जब भी कोई आँच
आए तो उससे उसे बचाने के लिए हमें कुछ कड़े नियम-कानून तैयार करने ही होंगे। एक ओर जहाँ
स्त्रियों का मान-सम्मान-सुरक्षा घर में एवं घर के बहार दोनों जगह खतरे में है दूसरी
ओर आदिवासी भी अपने घर में-अपने जंगल में सुरक्षित नहीं है। उनका अस्तित्व एवं पर्यावरण संरक्षण दोनों ही आवश्यक
है। इस कार्य के लिए सरकार तो अपनी ओर से कदम उठा ही रही है और ‘विश्व आदिवासी दिवस’
(9 अगस्त) हमें इस बात की याद दिलाता है कि हमें भी प्रयास करना चाहिए कि उनके साथ
कोई अन्याय न हो।
क्यों विस्थापित?
अपने ही घर से
ये आदिवासी!
डॉ. पूर्वा शर्मा
अपनी और अपनों की रक्षा-सुरक्षा आवश्यक
है। इस तरह का भाव छिपा है हमारे एक ख़ास त्योहार, रक्षाबंधन के त्योहार में। रक्षा-सूत्र महज एक धागा नहीं, यह तो है एक अटूट
नेह-बंधन। एक ऐसा वचन जो एक भाई-बहन के रिश्तों में फलता-फूलता है।
कभी न टूटे
भले धागा है कच्चा
नेह है पक्का।
डॉ. पूर्वा शर्मा
इस वर्ष रक्षा बंधन कुछ ज्यादा ख़ास बन गया, 72 साल बाद ऐसा
दुर्लभ संयोग जिसमें सावन का पहला सोमवार और समापन दिन भी सोमवार (22 जुलाई-19
अगस्त) अर्थात कुल पाँच सोमवार हुए। इतना ही नहीं एक ही माह में दो पूर्णिमा और अंतिम
सोमवार के दिन के दिन तो दुर्लभ ‘सुपर ब्लू मून’ (पूर्णिमा-रक्षाबंधन) को निहारने का
सुअवसर प्राप्त हुआ।
चरम सौन्दर्य लिए राका
दुगुनी चाँदनी लिए चाँद
नीली चादर ओढ़कर
अवनी को निहारने
देखो! उसके समीप आया।
डॉ. पूर्वा शर्मा
प्राचीन भारतीय वैदिक साहित्य में रक्षा बंधन को ‘श्रावणी’
के नाम से जाना जाता है। श्रावणी का महत्त्व इस तरह है कि इस दिन से गुरुकुल में वेद
अध्ययन का आरंभ किया जाता था और आज भी परंपरा कायम है। दक्षिण भारतीय इस दिन यज्ञोपवीत
धारण करते/बदलते हैं। इसे मोक्षदायनी पर्व माना जाता है। विश्वविद्यालयों में इसे ‘संस्कृत
दिवस’ अथवा ‘संस्कृत सप्ताह’ की तरह मनाया जाता है। हम कह सकते हैं कि एक ही दिन को
अलग-अलग तरीके से भिन्न-भिन्न पर्वों की तरह पूरे भारत में मनाया जाता है।
19 अगस्त के इस दिन इस संयोगवश विश्व फोटोग्राफी दिवस भी था।
अगस्त के इस माह में पूरे विश्व में अनेक दिवस मनाए जाते हैं इनकी सूची इस तरह है –
अमेरिकी तटरक्षक दिवस, हिरोशिमा दिवस, विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस, भारत छोड़ो आंदोलन दिवस, नागासाकी दिवस, अंतर्राष्ट्रीय
वामपंथी दिवस, विश्व अंगदान दिवस, राष्ट्रीय शोक
दिवस (बांग्लादेश), वर्जिन मैरी की मान्यता का दिन, बेनिंगटन युद्ध दिवस, इंडोनेशियाई स्वतंत्रता दिवस, विश्व मानवीय दिवस, सद्भावना दिवस इत्यादि। इस श्रेणी में
‘फ्रेंडशिप डे’ (मित्रता दिवस) भी कुछ वर्षों से शामिल हो गया है, अगस्त के पहले
रविवार को यह दिन मनाया जाता है।
साहित्य प्रेमियों के लिए सावन मास बहुत ख़ास रहा है। साहित्यकारों
ने प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूपों को अपनी कल्पना की उड़ान के रंग देकर एक से बढ़कर एक
रचनाएँ की है। विशेषतः सावन की बेला और साजन-सजनी की प्रणय किस्से तो साहित्य में बहु
प्रचलित रहे हैं। इतना ही नहीं प्रबंध काव्य, खंड काव्य, गद्य, फुटकर कविताएँ इसके
उदाहरण हरेक रूप में मिलते हैं।
है नियति-प्रकृति की ऋतुओं में
संबंध कहीं कुछ अनजाना,
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन
आए, सावन आया।
-
हरिवंशराय
बच्चन
भारतीय परंपरा में सावन के इस पावन मास में अनेक तीज-त्योहार
आते हैं इनमें कुछ प्रमुख पर्व –हरियाली अमावस्या, मंगला गौरी व्रत, हरियाली तीज,
नाग पंचमी, पवित्रा एकादशी, रक्षा बंधन, श्रावणी एवं कजरी तीज, जन्माष्टमी आदि के साथ
इस माह के शुक्ल पक्ष के सातवें दिन लोकमंगल के कवि एवं रामचरितमानस के रचयिता
तुलसीदास जी की जन्म जयंती भी मनाई जाती है। दरअसल इन पर्वों-त्योहारों-दिवसों की
सूची बहुत ही लंबी है और कोई भी भारतवासी इनसे अपरिचित नहीं है। इतने सारे त्योहार और
हरेक का अपना महत्त्व, अब किस-किसकी गाथा सुनाए? और इनमें से कुछेक पर्व की तो एक से
ज्यादा कहानियाँ प्रचलित है।
अगस्त मास की ख़ास कहानी
कहती प्रकृति स्वयं की ज़ुबानी।
डॉ. पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
अगस्त माह की प्रकृति,संस्कृति और इतिहास के वैशिष्ट्य को रेखांकित करता महत्त्वपूर्ण आलेख।बधाई डॉ. पूर्वा जी।🌺🌺
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं महत्वपूर्ण आलेख ।सुदर्शन रत्नाकर
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