शिव और सावन
प्राचीन 7 शिवलिंग का एक अक्षांश में होने का रहस्य
सुरेश चौधरी
केदारनाथ से रामेश्वरम् तक 7 शिव मंदिर जो देशांतर रेखा के हिसाब से एक ही कतार में
हैं।
दो ज्योतिर्लिंगों के बीच पंच तत्वों का संतुलन बनाते पाँच
शिवलिंग उत्तर से दक्षिण तक 79 डिग्री पर मौजूद हैं।
पाँचों शिवलिंग 1500 से 2000 साल पुराने माने गए हैं।
भोपाल (नितिन आर. उपाध्याय) उत्तराखंड के केदारनाथ और
दक्षिण भारत के रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंगों में एक अनूठा संबंध है। दोनों ही
ज्योतिर्लिंग देशांतर रेखा यानी लॉन्गिट्यूड पर 79 डिग्री पर मौजूद हैं। इन दो ज्योतिर्लिंगों के बीच पाँच
ऐसे शिव मंदिर भी हैं जो सृष्टि के पंच तत्व यानी जल,
वायु, अग्नि, आकाश और धरती का प्रतिनिधित्व करते हैं।
तमिलनाडु के अरुणाचलेश्वर, थिल्लई नटराज, जम्बूकेश्वर, एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर और आंध्र प्रदेश के श्रीकालहस्ती शिव
मंदिर के बारे में मान्यता है कि ये सृष्टि के पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते
हैं। ये सभी देशांतर रेखा पर 79 डिग्री पर स्थापित हैं, जो उत्तर से दक्षिण तक भारत को दो हिस्सों में बाँटती है।
इस रेखा के एक छोर पर उत्तर में केदारनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग
है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थापित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को भी इसी कतार
में गिना जाता है, लेकिन वास्तव में महाकालेश्वर मंदिर 79 डिग्री पर नहीं, बल्कि 75.768 डिग्री पर स्थापित है। इस कारण यह इस कतार से थोड़ा बाहर
है।
ये महज संयोग नहीं है कि ये 7 शिव मंदिर एक साथ एक ही कतार में आते हैं। दो
ज्योतिर्लिंगों के बीच ये पाँच शिवलिंग सृष्टि का संतुलन बनाते हैं। ये सारे शिव
मंदिर 1500 से 2000 साल पहले अलग-अलग काल खंड में स्थापित किए गए,
लेकिन इनके बीच से पंचतत्वों और देशांतर रेखा का संबंध
योजनाबद्ध ही माना गया है।
उज्जैन के महर्षि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय में ज्योतिष
विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उपेंद्र भार्गव के मुताबिक – यह बिलकुल ठीक है कि
ये मंदिर लॉन्गिट्यूड के हिसाब से एक कतार में हैं, लेकिन इनकी स्थापना का काल अलग-अलग है। इस कारण यह कहना
कठिन है कि किसी विशेष विचार के साथ इनकी स्थापना की गई होगी। लेकिन,
जब भी इन मंदिरों की स्थापना की गई,
उसमें अक्षांश और देशांतर का पूरा ध्यान रखा गया। वास्तु
सिद्धांतों के हिसाब से इनकी स्थापना की गई है।
रामेश्वरम् रामायण और केदारनाथ महाभारतकालीन पौराणिक
संदर्भों के मुताबिक, रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की स्थापना त्रेतायुग में भगवान राम ने समुद्र पार
करने के पहले की थी। वहीं, केदारनाथ की स्थापना महाभारतकाल की मानी जाती है,
जब कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद पांडवों ने भगवान शिव को
प्रसन्न करने के लिए उत्तर पथ के हिमालयों पर भगवान शिव की उपासना की थी। इसी तरह
ये 5 मंदिर भी 5वीं से 12वीं शताब्दी के बीच बनाए गए हैं।
1
श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
उत्तराखंड
----
79.0669°
2
श्रीकालहस्ती मंदिर
चित्तूर, आंध्रप्रदेश
वायु
5वीं शताब्दी
79.7037°
3
श्री एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर
कांची, तमिलनाडु
पृथ्वी
7वीं शताब्दी
79.7036
°
4
श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर
तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडु
अग्नि
7वीं शताब्दी
79.0747°
5
श्री जम्बूकेश्वर मंदिर
थिरुवनाईकवल, तमिलनाडु
जल
4थी शताब्दी
78.7108°
6
श्री थिल्लई नटराज मंदिर
चिदंबरम्, तमिलनाडु
आकाश
10वीं शताब्दी
79.6954°
7
श्री रामेश्वरम् मंदिर
रामलिंगम्, तमिलनाडु
--------
79.3129°
पाँचों मंदिर की खासियत
श्रीकालहस्ती मंदिर
श्रीकालहस्ती मंदिर : यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर में है। तिरुपति से 36 किमी दूर स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर को पंचतत्वों में वायु
का प्रतिनिधि माना जाता है। इसे राहु-केतु क्षेत्र और दक्षिण कैलाशम् नाम से भी
जाना जाता है। 5वीं
शताब्दी में स्थापित यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख मंदिरों में से एक है।
इस मंदिर में राहु काल और राहु-केतु से जुड़े अन्य दोषों की पूजा कराने के लिए लोग
दूर-दूर से आते हैं। दुनियाभर में राहु काल की शांति इसी मंदिर में होती है।
एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर : तमिलनाडु के कांचीपुरम् स्थित एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर के
बारे में किंवदंती है कि यहाँ देवी पार्वती ने क्रोधित शिव को प्रसन्न करने के लिए
बालूरेत से शिवलिंग की स्थापना कर तप किया था। इस शिवलिंग को पंचतत्वों में पृथ्वी
तत्व का प्रतिनिधि माना जाता है। करीब 25 एकड़ क्षेत्र में बना यह मंदिर 11 मंजिला है। इसकी ऊँचाई लगभग 200 फीट है। 7वीं शताब्दी में इस मंदिर की स्थापना की गई थी। वर्तमान
मंदिर चोल राजाओं द्वारा 9वीं शताब्दी में बनाया गया था।
अरुणाचलेश्वर मंदिर : इसे अन्नामलाईयार मंदिर भी कहते हैं। यह तमिलनाडु के
तिरुवनमलाई शहर में अरुणाचला पहाड़ी पर है। यहाँ स्थापित शिवलिंग को अग्नितत्व का
प्रतीक माना जाता है। 7वीं शताब्दी में स्थापित इस मंदिर का चोल राजाओं ने 9वीं शताब्दी में विस्तार किया था। 10 हेक्टेयर में बने इस मंदिर के शिखर की ऊँचाई 217 फीट है। यहाँ हर साल नवंबर-दिसंबर में दीपम् उत्सव मनाया
जाता है,
जो 10 दिन तक चलता है। इस दौरान मंदिर के आसपास बड़ी मात्रा में दीपक जलाए जाते
हैं। एक विशाल दीपक मंदिर की पहाड़ी पर जलाया जाता है जो दो-तीन किमी की दूरी से
भी आसानी से देखा जा सकता है।
जम्बूकेश्वर मंदिर : जम्बूकेश्वर या जम्बूकेश्वरार मंदिर,
थिरुवनाईकवल (त्रिची) जिले में है। ये पंचतत्वों में जल का
प्रतिनिधि शिवलिंग माना गया है क्योंकि इस मंदिर के गर्भगृह में एक प्राकृतिक
जलधारा निरंतर बहती रहती है। मंदिर करीब 1800 साल पुराना माना जाता है। कुछ पौराणिक ग्रंथों में भी इसका
उल्लेख मिलता है।
थिल्लई नटराज मंदिर : भगवान शिव के ही रूप नटराज का मंदिर तमिलनाडु के चिदंबरम्
शहर में है। पहले इस जगह को थिलाई के नाम से भी जाना जाता था,
इसलिए इस मंदिर को थिल्लई नटराज मंदिर भी कहा जाता है।
भरतमुनि द्वारा बताए गए नाट्यशास्त्र के सभी 108 रूप इस मंदिर में देखने को मिलते हैं। मंदिर की दीवारों पर
भरतनाट्यम् की विभिन्न मुद्राएँ उकेरी गई हैं। वर्तमान मंदिर 10वीं शताब्दी में चोल राजाओं ने बनवाया था।
एक मान्यता के अनुसार 79 डिग्री अक्षांश सर्वाधिक रेडियो एक्टिव क्षेत्र है अतः इस
रेखा पर भारत के आरम्भ से अंत तक शिव मंदिर बना कर रेडिएशन कम करने का प्रयास किया
गया है।
सुरेश चौधरी
एकता हिबिसकस
56 क्रिस्टोफर रोड
कोलकाता 700046
बढ़िया जानकारी
जवाब देंहटाएं