पुल
भवेश दिलशाद
सपने और सच के बीच तो ख़ैर है ही
एक पुल है
सपने के भरम और सचमुच सपने के बीच भी
सच के सच होने और सच के सच लगने के बीच भी...
पुरखों और वंशजों के बीच तो ख़ैर है ही
एक पुल है
गुज़रते और आते दो जुड़वाँ लम्हों के बीच भी
एक नाम के कई चेहरों और उनके अक्सों के बीच भी...
शब्दों और अर्थों के बीच तो ख़ैर है ही
एक पुल है
शब्दों की चुप्पियों और चुप्पियों की आहटों के बीच भी
आँखों के ख़ालीपन और एक टकटकी के बीच भी...
गुमनामी से अमरता के बीच तो ख़ैर है ही
एक पुल है
ख़याल से याद और याद से बेसुधी के बीच भी
ज़िन्दगी से ख़ुदकुशी फिर ख़ुदकुशी से ज़िन्दगी के बीच
भी...
ऐसे जाने अनजाने अनगिनत पुल झूलते हैं
प्रेमचंद के अल्फ़ाज़ और प्रेमचंद की गूँज के बीच
भवेश दिलशाद
भोपाल
खूबसूरत नज़्म।
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