मुंशी प्रेमचंद
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
श्री मुंशी प्रेमचंद्र जी प्रतिभावान थे बड़े विराट।
प्रख्यात कहानीकार थे और उपन्यास सम्राट।।
माता आनंदी देवी, व पिता मुंशी अजायब राय।
बचपन में मुंशी जी का, नाम रखा नायब राय।।
धनपत राय नाम है असली, थे कायस्थ सम्राट।
दुबले-पतले कद काठी वाले, तेजस्वी ललाट।।
पवित्र काशी की धरती वाराणसी के लमही में।
जन्म हुआ था 31जुलाई, 1880 को लमही में।।
अथाह ज्ञान से भरे रहे लेखन विद्या के भंडारी।
सीधे-साधे निर्मल मन के, शिक्षित व संस्कारी।।
शुरू-शुरू में हंस पत्रिका का करते रहे ये संपादन,
किन्तु बाद में एक नहीं कई कृतियों का लेखन।।
गोदान गबन निर्मला सेवासदन, प्रेमाश्रम रंगभूमि।
यह सब उपन्यास, कायाकल्प, प्रतिज्ञा कर्मभूमि।।
बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा व पूस की रात।
पञ्च परमेश्वर, बूढ़ी काकी, कफ़न कहानी खास।।
आदर्शोन्मुख यथार्थवाद, इन्हीं का साहित्य विशेष।
अनमेल विवाह छुआछूत, दहेज़ जाति भेद
शेष।।
पराधीनता, विधवा विवाह, एवं स्त्री पुरुष समानता।
लगान, आधुनिकता जैसे बिंदु से चित्रण प्रधानता।।
प्रेमचंद्र की अधिक कहानी, हिंदी-उर्दू में प्रकाशित।
जागरण पत्र हँस पत्रिका, स्वयं किए हैं प्रकाशित।।
जीवन के अंतिम क्षण भी, साहित्य सृजन में लीन।
1918-1936का कालखंड, प्रेमचंद्र युग का सीन।।
मुंशी जी जिला स्कूल बेल्हा,में रह 4 वर्ष
पढ़ाया।
ये स्कूल बाद में, जीआईसी प्रतापगढ़ कहलाया।।
हिंदी साहित्य समृद्धि में, इनका अमूल्य योगदान।
भूल नहीं सकता है कोई, मुंशी जी का अवदान।।
प्रेमचंद्र की साहित्य
सरिता, अविरल
प्रवाहमान।
शत-शत नमन मुंशी प्रेमचंद्र को, थे महाविद्वान।।
ज्ञान विभूषण डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्रवक्ता-पी.बी.कालेज
प्रतापगढ़,उ.प्र.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें