डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
प्रेरणार्थक क्रिया से संबंधित कुछ तथ्य -
(1)
प्रेरणार्थक क्रिया के अनिवार्यतः दो या तीन सचेतन कर्ता
होते हैं। इसी आधार पर प्रेरणार्थक क्रिया के दो रूप बनते हैं - प्रथम प्रेरणार्थक
तथा द्वितीय प्रेरणार्थक।
(2)
प्रथम प्रेरणार्थक में दो कर्ता होते हैं। एक प्रेरक कर्ता
तथा दूसरा प्रेरित कर्ता।
(3)
प्रेरक कर्ता को व्याकरणिक कर्ता भी कहा जाता है। कारण कि
प्रेरणार्थक वाक्य की क्रिया का लिंग-वचन प्रेरक कर्ता के लिंग-वचन के अनुसार होता
है।
(4)
इसी तरह प्रेरित कर्ता को वास्तविक कर्ता,
लौकिक कर्ता या सक्रिय कर्ता भी कहा जाता है। कारण कि
क्रिया द्वारा सूचित कार्य का संपादन वही करता है।
(5)
प्रथम प्रेरणार्थक का प्रेरक कर्ता स्वयं कार्य नहीं करता।
फिर भी उसकी भूमिका इसलिए महत्त्वपूर्ण होती है,
क्योंकि वह वास्तविक या लौकिक कर्ता को कार्य करने के लिए
प्रेरित करता है। वह वास्तविक कर्ता को कार्य करने में मदद भी करता है। वह
वास्तविक कर्ता द्वारा किए जाने वाले कार्य में सहभागी होता है।
(6)
द्वितीय प्रेरणार्थक के तीन कर्ता होते हैं - 1.
प्रेरक कर्ता, 2. मध्यस्थ कर्ता तथा 3.
प्रेरित (वास्तविक) कर्ता।
(7)
द्वितीय प्रेरणार्थक में प्रेरक कर्ता का प्रेरित कर्ता के
साथ कोई सीधा संबंध नहीं होता। यानी क्रिया द्वारा सूचित कार्य के संपादन में उसकी
कोई सीधी भूमिका नहीं होती। उसका काम सिर्फ मध्यस्थ कर्ता को निर्देश देने तक
सीमित होता है।
(8)
प्रथम प्रेरणार्थक में जैसे प्रेरक कर्ता,
क्रिया द्वारा सूचित कार्य के संपादन में,
प्रेरित (वास्तविक) कर्ता के सहायक का काम करता है,
वैसे ही द्वितीय प्रेरणार्थक में मध्यस्थ कर्ता प्रेरित
(वास्तविक) कर्ता के सहायक का काम करता है। उसकी मदद करता है।
(9)
प्रथम प्रेरणार्थक तथा द्वितीय प्रेरणार्थक में समानता यह
है कि दोनों ही स्थितियों में प्रेरक कर्ता तथा प्रेरित कर्ता समान होते हैं।
दोनों में अंतर यह है कि द्वितीय प्रेरणार्थक में एक तीसरा यानी मध्यस्थ कर्ता
आ जाता है। साथ ही, प्रेरक कर्ता की भूमिका सीमित हो जाती है।
(10)
मध्यस्थ कर्ता के कारण प्रेरक कर्ता तथा प्रेरित कर्ता के
बीच का सीधा संबंध समाप्त हो जाता है।
इन तथ्यों को एक बहुत प्रचलित उदाहरण के सहारे समझते हैं -
1. बच्चा दूध पीता है। (मूल वाक्य)
2. माँ बच्चे को दूध पिलाती है। (प्रथम प्रेरणार्थक वाक्य)
3. माँ आया से बच्चे को दूध पिलवाती है। (द्वितीय प्रेरणार्थक
वाक्य)
पहला वाक्य ‘मूल वाक्य’ है। कारण कि उसकी मुख्य
क्रिया ‘पीना’ मूल सकर्मक है। उसका कर्ता ‘बच्चा’ है। मूल वाक्य में एक
ही कर्ता होता है।
दूध पीने का काम ‘बच्चा’ करता है। इसलिए वह सक्रिया
यानी सचेतन कर्ता है। साथ ही, क्रिया (पीता है) ‘बच्चा’ के लिंग-वचन (पुल्लिंग एकवचन) के अनुसार है। इसलिए ‘बच्चा’ व्याकरणिक कर्ता भी है।
दूसरा वाक्य (माँ बच्चे को दूध पिलाती है) ‘प्रथम प्रेरणार्थक’ है। कारण कि अब ‘सक्रिय कर्ता’ (बच्चा) अपने मन से नहीं, बल्कि ‘माँ’ की प्रेरणा (सहयोग) से दूध पीने का काम करता है। यह बात ‘पिलाना’ क्रिया
से व्यक्त होती है। इसी लिए ‘माँ’ को ‘प्रेरक कर्ता’ नाम दिया गया है।
यानी ‘प्रथम प्रेरणार्थक’ वाक्य में दो कर्ता (माँ तथा बच्चा) हैं। दोनों सचेतन कर्ता
हैं।
इस वाक्य में ‘पीना’ सकर्मक क्रिया का रूप
बदलकर ‘पिलाना’ हो गया गया है तथा वास्तविक (सक्रिय) कर्ता (बच्चा) का व्याकरणिक संबंध क्रिया
से समाप्त हो गया है।
अब क्रिया (पिलाना) का व्याकरणिक संबंध प्रेरक
कर्ता (माँ) से जुड़ गया है। यानी ‘पिलाना’ क्रिया का रूप (पिलाती) प्रेरक कर्ता ‘माँ’ के लिंग-वचन (स्त्रीलिंग एकवचन) के अनुसार हो गया है।
दूसरे वाक्य की क्रिया ‘पिलाती’ से यह बात स्पष्ट होती है कि सक्रिय कर्ता ‘बच्चा’ अब अपने मन से नहीं, बल्कि प्रेरक कर्ता ‘माँ’ की प्रेरणा (सहयोग) से दूध पीने का काम कर
रहा है।
तीसरे वाक्य (माँ आया से बच्चे को दूध पिलवाती है) में एक और घटक (आया) जुड़ गया है। साथ ही, ‘पीना’ क्रिया का रूप बदल कर ‘पिलवाना’ (द्वितीय प्रेरणार्थक) हो गया है।
तीसरे वाक्य में भी वास्तविक (सक्रिय) कर्ता की भूमिका में ‘बच्चा’ ही है तथा प्रेरक कर्ता के रूप में ‘माँ’ है।
परंतु वास्तविक (सक्रिय) कर्ता ‘बच्चा’ तथा प्रेरक कर्ता ‘माँ’ के बीच में तीसरे घटक (आया) के आ जाने से ‘बच्चा’ तथा ‘माँ’ के बीच का सीधा संबंध
समाप्त हो गया है। वह संबंध तीसरे घटक के माध्यम से जुड़ता है। इसी लिए तीसरे घटक को ‘मध्यस्थ कर्ता’ कहा जाता है। यह मध्यस्थ
कर्ता वास्तविक कर्ता द्वारा संपादित होने वाली क्रिया में सहायक होता है। यानी प्रेरक
कर्ता का काम अब सिर्फ ‘मध्यस्थ कर्ता’ को निर्देश देने तक सीमित रह जाता है।
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