शुक्रवार, 31 मई 2024

अनुवाद

निर्वाण षट्कम का हिन्दी भावानुवाद

सुरेश चौधरी

निर्वाण षटकम आदि शंकराचार्य द्वारा रचित दुर्लभ स्त्रोत्र है, इसमें उन्होंने भगवान् शिव में अपने को समाहित कर अद्वैतवाद के महत्व को बतलाया है, स्त्रोत्र का शब्द संयोजन एवं भाव प्रवाह अद्वितीय है, एक कथा है कि आचार्य का एक शिष्य आचार्य की तरह शिवोअहम का उच्चारण करने लगा बिना इसका लाभ जाने, आचार्य एक लोहार के पास गए और एक गिलास पिघला हुआ लोहा लिया और पी गए फिर शिष्य से कहा तुम भी ऐसा करो, वह ऐसा कैसे कर सकता था, मना कर दिया तब आचार्य ने बतलाया कि उनके लिए पिघला हुआ लोहा या बर्फीला पानी एक समान है क्यूंकि उन्होंने शिव को पहचान लिया है और शिव के सिवा कुछ नही है, अतः जब तक शिष्य उस अवस्था में न पहुँच जाय तब तक शिवोअहम (मैं शिव हूँ) बोलने का कोई अर्थ नहीं।

मनो-बुद्धि-अहंकार चित्तादि नाहं

न च श्रोत्र-जिह्वे न च घ्राण-नेत्रे ।

न च व्योम-भूमी न तेजो न वायु

चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ १॥

 

न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु:

न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष: ।

न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु:

चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ २ ॥

 

न मे द्वेष-रागौ न मे लोभ-मोहौ

मदे नैव मे नैव मात्सर्य-भाव: ।

न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्ष:

चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ३ ॥

 

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं

न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञा: ।

अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता

चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ४ ॥

 

न मे मृत्यु न मे जातिभेद:

पिता नैव मे नैव माता न जन्मो ।

न बन्धुर्न मित्र: गुरुर्नैव शिष्य:

चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ५॥

 

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो

विभुत्त्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणां ।

सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:

चिदानंद रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ ६॥

***

स्त्रोत्र का भावानुवाद कुकुम्भ छंद में करने का प्रयास है:

१-

बुद्धि न जानो न चित्त जानो,  न अहंकार न मन हूँ मैं

न कान में न देख जिव्हा में, न नासिका न नयन हूँ मैं।

मानो न व्योम में न अनल में',    वसुंधरा पवन हूँ मैं

अनादि  अनन्त अजर अमर हूँ, मात्र शुद्ध चेतन हूँ मैं।।

 

२-

मुझे न कह प्राण चेतना तू, न दैहिक चल पवन हूँ मैं

न सप्त धातु देह रचना को', न पञ्च कोशी तन हूँ मैं

जान न हाथ न पैर न वाणी ,'न इन्द्रिय विसर्जन हूँ मैं

अनादि  अनन्त अजर अमर हूँ, मात्र शुद्ध चेतन हूँ मैं।। 

 

३-

न बैर न  प्रेम मोह  किसी से, ना ही लोभी जन हूँ मैं

न ही मत्सर मुझमें मिलेगा, न अभिमान सिंचन हूँ मैं

मैं हूँ परे  मोह  लिप्सा से,   धर्म  जान  न धन हूँ मैं

अनादि  अनन्त अजर अमर हूँ, मात्र शुद्ध चेतन हूँ मैं

 

४-

दुःख  सुख  मुझमें न पावोगे,   पापी न पावन हूँ मैं

न मन्त्र न तीर्थ न यज्ञ मानो, न ज्ञान का सर्जन हूँ मैं। 

मुझे न भोगने योग्य जानो',  न भोक्ता न भोजन हूँ मैं

अनादि  अनन्त अजर अमर हूँ, मात्र शुद्ध चेतन हूँ मैं।। 

 

५-

ना ही  मुझे  मृत्यु  का लागे',  न ही जाति बंधन हूँ मैं

न मात न पिता कोई मेरा,    ही कभी  जन्मन हूँ मैं

न मेरा  कोई  शिष्य  गुरु है',    मित्र  बंधू जन हूँ मैं

अनादि  अनन्त अजर अमर हूँ, मात्र शुद्ध चेतन हूँ मैं।। 

 

६-

मुझे  सदा  निर्विकल्प  मानो, निराकार  चिंतन  हूँ मैं

इन्द्रियों सब से पृथक जानो, न ही विचार मनन हूँ मैं

न कल्पनिय हूँ न मुक्ति हूँ मैं, ना कोई आसंजन हूँ मैं

अनादि  अनन्त अजर अमर हूँ, मात्र शुद्ध चेतन हूँ मैं।। 


***

 


सुरेश चौधरी

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

 

 

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