रविवार, 14 अप्रैल 2024

आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ...

 


सिर्फ़ शास्त्रीय-सैद्धांतिक ही नहीं अपितु बिल्कुल सहज-सरल रूप व व्यावहारिक नजरिए से भी हम साहित्य को देखते-परखते, समझते-समझाते रहते हैं । सामान्यत: कह सकते हैं कि सृष्टि को लेकर, स्थूल-सूक्ष्म जगत को लेकर, जड़-चेतन-गतिशील तत्त्वों को लेकर, पंचेन्द्रिय बोध एवं मन के एहसास से सम्बद्ध विषयों को लेकर हमारी संवेदनात्मक तथा विचारात्मक प्रतिक्रिया की कलात्मक ढंग से हुई शाब्दिक अभिव्यक्ति ही साहित्य है । पाश्चात्य काव्यचिंतक अरस्तू जब काव्य को प्रकृति का अनुकरण बताते हैं तो वहाँ प्रकृति का संबंध सिर्फ़ पेड़-पौधे, पहाड़-नदियाँ, चाँद-सितारे तक ही सीमित नहीं बल्कि तमाम वस्तुएँ  एवं  मनुष्य प्रकृति तथा उसके सभी क्रिया-कलापों से है ।  यह अभिव्यक्ति या अनुकरण- चाहे सुख-दुख या हर्ष-शोक से संबंधित हो, प्रशंसा या निंदा विषयक हो, अंतत: उसका लक्ष्य तो कलात्मक सौंदर्य के जरिए मानवजाति का हित सम्पादन करना ही है । यही है साहित्य का मुख्य दायित्व । किसी विषय का, यानी किसी वस्तु, विचार, भाव, प्रसंग, घटना, व्यक्तित्व का साहित्य में रूपान्तरण तो बहुत ही आकर्षक तथा उपयोगी होता है, परंतु यह रूपान्तरण का कार्य उतना सरल नहीं  है, इस जटिल प्रक्रिया में सर्जक के कौशल की  कसौटी होती है । इसमें भी धर्म, अध्यात्म, दर्शन, समाज, राजनीति, कला-जगत प्रभृति अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी लोक-प्रसिद्ध ऐतिहासिक प्रतिभाओं के जीवन को तथा उनके कार्य को साहित्य में  रूपांतरित करना या साहित्य के मंच से साहित्यिक संस्पर्श के साथ प्रस्तुत करना कोई कम  चुनौतीपूर्ण  नहीं   है  । यह इसलिए कि एक तो कलात्मक रंग-रूप-स्वभाव तथा साहित्य सृजन के महत्व उद्देश्य के साथ साथ उनकी ऐतिहासिकता को भी बनाये रखने के लिए उस विषय के संबंध में विशेष छान-बीन के कार्य  से भी गुजरना पड़ता है । दुनियाभर की ऐसी अनेकों ऐतिहासिक प्रतिभाओं को साहित्य के मंच  से प्रस्तुत करने में हमारे अनेकों साहित्य -सेवी पूरी तरह सफ़ल रहे हैं  

आधुनिक भारत की राजनीति, समाज एवं शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विराट एवं वैश्विक व्यक्तित्वों मे एक महत्वपूर्ण नाम है डॉ.बाबासाहब अंबेडकर ।  समाज, राजनीति, शिक्षा आदि में भारतरत्न बाबासाहब के योगदान से देश-दुनिया भलीभाँति परिचित ही है । मनुष्यता, बौद्धिकता, नैतिकता के विकास में इनकी एक अहम भूमिका रही है । देश के करोड़ों दलितों-पीड़ितों, वंचितों-शोषितों के लिए आजीवन संघर्ष कर उन्हें मुक्ति दिलाने में इस महामानव ने कोई कसर नहीं  रखी ।

डॉ.अंबेडकर विषयक चर्चा के प्रसंग मे सर्वप्रथम महात्मा गौतम बुद्ध  का स्मरण स्वाभाविक ही कहा जाएगा । कहते हैं   कि- “महात्मा बुद्ध के बाद यदि किसी महापुरुष ने समाज, राजनीति और आर्थिक धरातल पर सामाजिक क्रांति से साक्षात्कार कराने का सार्थक प्रयास किया तो वे थे डॉ.भीमराव अंबेडकर । ”

लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व महात्मा गौतम बुद्ध ने “अप्प दीपो भव:” मंत्र को मनुष्य के स्व एवं समाज के विकास के लिए, मनुष्यता के प्रचार के लिए, व्यक्ति के आत्मबल के लिए तथा उसमें अपने और औरों के उद्धार की प्रबल भावना को जगाने के लिए प्रचारित किया । डॉ.बाबासाहब अंबेडकर इसी “अप्पो दीप भव:” की परंपरा का  सर्वाधिक प्रकाशमान दीपक है, जो अपनी शिक्षा, ज्ञान, संघर्ष  से स्वयं तो प्रकाशित हुआ ही साथ ही आज भी समाज को, गरीबों को, दलितों को प्रेरित-प्रभावित-प्रकाशित करता रहा है ।

हम देखते हैं कि साहित्येतर कई प्रतिभाओं के चिंतन के, उनके आदर्शों ने तथा मनुष्यता के विकास हेतु उनके योगदान ने साहित्य को काफ़ी प्रेरित-प्रभावित किया । आधुनिक काल में जिन शक्तियों ने साहित्य को एक ठोस  वैचारिक जमीन दी, जिनमें-  काल मार्क्स, डार्विन, फ्रायड, महात्मा  गाँधी, डॉ.राम मनोहर लोहिया, महर्षि अरविंद और भी कई नाम इस सूची में शामिल हो सकते हैं । इन्हीं नामों में एक नाम अंबेडकर भी है । आधुनिक हिन्दी साहित्य तथा विशेषत: दलित साहित्य उनके जीवन व चिंतन से ज्यादा प्रेरित-पोषित-प्रोत्साहित रहा है ।  

14 अप्रैल,डॉ.बाबासाहब अंबेडकर जन्म जयंती ।  इस पावन अवसर पर ‘शब्द-सृष्टि’ के प्रस्तुत अंक के माध्यम से हम इस भारतीय सपूत का वंदन व सम्मान के साथ विशेष रूप से स्मरण करते हैं ।

मुख्यतः भाषा, व्याकरण, साहित्य, विचार, विवेचन, व्यक्तित्व आदि विषय-बिन्दुओं को लेकर प्रति मास नियमित रूप से प्रकाशित होने वाली शब्द-सृष्टिका यह अंक बाबासाहब अंबेडकर के जीवन-दर्शन के विविध पक्षों-पहलुओं से संबद्ध विषय-सामग्री के साथ-साथ अन्य विषयों को लेकर विविध साहित्य विधाओं मे लिखी गई रचनाओं  तथा भाषा- व्याकरण संबंधी विचारों के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत है । आगामी दिनों में- १७ अप्रैल २०२४ को रामनवमी के पुनीत पर्व के निमित्त- ‘हरि अनन्त, हरि कथा अनन्ता तथा राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है । कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है ।’ जैसी प्रसिद्ध पंक्तियों के साथ अग्रिम अशेष शुभकामनाएँ... इसी त्यौहार के उपलक्ष्य में एक विशेष आलेख घर घर में बसे राम भी इस अंक का विशेष हिस्सा रहा है ।

 

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