रविवार, 14 अप्रैल 2024

कविता


समय बदल रहा है

डॉ. माया प्रकाश पाण्डेय

हर युग की दास्तान यही रही है,

राजनीति, कूटनीति, अर्थनीति, दंडनीति

आदि तमाम नीतियाँ

व्याप्त रही हैं हर युग में

एकलव्य को ही कटाना पड़ा है अँगूठा,

हर युग में

उसकी प्रगति, कौशल्य, वीरता से

नहीं था विरोध अर्जुन को,

किन्तु, गुरु का अहंकार भी,

संतुष्ट होना तो जरूरी था,

देखना एकमात्र धनुर्धर अर्जुन को

अर्जुन कभी भी नहीं कर सकता था,

परास्त एकलव्य को

गुरु ने अपनी मेधावी बुद्धि का,

बड़ी चालाकी से किया उपयोग,

जिन्होंने उसे अपना शिष्य बनाने से,

किया था इन्कार,

वे ही उसके बन गए पूज्य गुरु

वह बेचारा, भावुक ह्रदय वाला,

सीधा-साधा, राजनीति, कूटनीति से अनभिज्ञ,

नहीं समझ पाया अपने ही गुरु को,

दे दिया सम्मान और

बंध गया अपने ही बचनों में,

कटवा दिया दाहिने हाथ का अंगूठा

अगर वह कर देता इन्कार,

तो क्या अर्जुन एकमात्र धनुर्धर होता?

किन्तु, वह ऐसा नहीं कर सकता था,

अपनी गुरु-शिष्य परम्परा को,

खण्डित होते नहीं देख सकता था

गुरु जैसे भी हों, गुरु हैं,

उनको सम्मान देना, आज्ञा का पालन करना,

हर शिष्य का परम कर्तव्य है,

यही सीखा था उसने अपनी संस्कृति से,

किन्तु, समय बदल रहा है,

अब कोई एकलव्य नहीं होगा शिकार भावुकता का,

नहीं देगा अंगूठा अपने दाहिने हाथ का

नहीं मानेगा अब कोई गाँधी की बात को,

जो वे कहते हैं- कोई एक गाल पर मारे,

तो दूसरा गाल आगे कर देना चाहिए

इतना धैर्य नहीं है अब किसी में,

समय बदल रहा है, समझना होगा सबको,

अपनी-अपनी भूमिकाएँ और

पालन करना होगा सभी को ईमानदारी से,

अपना-अपना कर्तव्य, क्योंकि-

अब समय बदल रहा है

***


डॉ. माया प्रकाश पाण्डेय

हिंदी विभाग, कला संकाय,

महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय,

बडौदा, गुजरात

 

1 टिप्पणी:

  1. यह कविता एक उत्कृष्ट रचना का परिचय है .जिसके माध्यम से गुरु -शिष्य की परंपरा का समसामयिक परिस्थितियों के अनुरूप सटीक वर्णन किया गया है. शब्दों का चयन विषयानुकूल होने से इस काव्य को एक गति मिलती है, जो सीधा पाठक वर्ग के मन  पर दस्तक देने का सामर्थ्य रखती है. आपकी सुयोग्य सफलता के लिए शुभकामनाएँ!

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