डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
1
स्थायी/स्थाई
अनुयायी/अनुयाई
धराशायी/धराशाई
शेषशायी/शेषशाई
सुखदायी/सुखदाई
दुःखदायी/दुःखदाई
व्यवसायी/व्यवसाई
विषपायी/विषपाई
ये युग्म एक ही शब्द के दो-दो लिखित रूप हैं।
ये सभी संस्कृत के शब्द हैं। कुछ लोग स्थाई, अनुयाई, दुखदाई .... जैसे रूपों को स्थायी,
अनुयायी, दुःखदायी ... जैसे रूपों के तद्भव रूप कह सकते हैं या समझ
सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। इनमें कोई तद्भव रूप नहीं है। सभी तत्सम ही हैं।
शब्द एक। उच्चारण एक । लेकिन लिखने में फर्क है।
कैसे?
स्थायी, अनुयायी,
धराशायी, शेषशायी, सुखदायी, दुःखदायी, व्यवसायी, विषपायी जैसे रूप संस्कृत में जैसा लिखा जाता है वैसे हैं।
स्थाई, अनुयाई
.... जैसे रूप जैसा हम बोलते हैं, उसके आधार पर लिखे गए रूप हैं।
एक का आधार शब्द-रचना है तथा दूसरे का आधार उच्चारण है।
अंधेरा और अँधेरा जैसी स्थिति इनकी नहीं है। अंधेरा तथा अँधेरा उच्चारण तथा
लेखन दोनों दृष्टियों से अलग-अलग शब्द हैं। लेकिन ऊपर वाले युग्म शब्द एक,
उच्चारण एक, लेकिन लेखन में भेद।
ऐसा क्यों?
उन सभी शब्दों के अंत में 'यी' है। यानी य् तथा ई।
य् तथा ई दोनों का उच्चारण स्थान एक है - तालु। फर्क सिर्फ उच्चारण प्रक्रिया
में है। ऐसे में जब दोनों का उच्चारण एक साथ किया जाता है,
तब दोनों के उच्चारण एकाकार हो जाते हैं। फर्क मिट जाता है।
शैष रह जाती है 'ई'।
जो लोग संस्कृत नहीं जानते, वे इन शब्दों को लिखने में उच्चारण को ही आधार बनाते हैं।
दूसरा कोई उपाय नहीं।
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2
लघुत्तम/लघुतम
एक ही शब्द के ये दो रूप प्रयोग में दिखाई पड़ते हैं।
इनमें पहला यानी 'लघुत्तम' गलत
है तथा दूसरा यानी 'लघुतम' सही
है।
कैसे?
मूल शब्द 'लघु'
के साथ उत्तमावस्था (सुपरलेटिव डिग्री) का 'तमप्' प्रत्यय जुड़ने से 'लघुतम' रूप बनता है।
इसमें किसी प्रकार की शंका की गुंजाइश नहीं है।
फिर प्रश्न उठता है कि इसमें 'त्त' कहाँ से आया
'लघुत्तम'
कैसे हुआ?
'लघु' का विलोम 'महत्'
शब्द है।
इसमें 'तमप्'
प्रत्यय जुड़ने से 'महत्तम' रूप बनता है।
इसकी रचना में ही 'त्त'
है। महत् का त् तथा तमप् का त् - दोनों मिलकर त्त बन जाते
हैं।
लेकिन लघुतम में ऐसी स्थिति नहीं है।
लघुतम तथा महत्तम दोनों के बीच (विपरीत) साहचर्य का संबंध है।
बोलने में महत्तम के प्रभाव से लघुतम लघुत्तम बन गया है। फिर वह लिखने में आ गया
है।
इसे भाषाविज्ञान में सादृश्यमूलक भूल कहा जाता है।
बहुत सारे लोग अनजाने में ऐसी भूल करते रहते हैं। यह पोस्ट उनके लिए है।
यानी लघुत्तम नहीं लघुतम।
40,
साईंपार्क सोसाइटी,
वड़ताल रोड
बाकरोल-388315,
आणंद (गुजरात)
ज्ञानवर्धक-सुदर्शन रत्नाकर
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