हाइकु
1
तू रचती जा
मन की कविता को
शब्द पहना ।
2
मिट्टी का घड़ा
बूँद-बूँद रिसता
लो, खाली हुआ ।
3
उड़ा अकेला
कहाँ पहुँचा पंछी
कोई जाने ना ।
4
शीत की मारी
पेट में घुटने दे
सोई है रात
5
‘नज़र’ लगी
लाल से काली हुई
बेचारी साँझ ।
ताँका
1
बाँस की पोरी
निकम्मी खोखल मैं
बेसुरी, कोरी
तूने फूँक जो भरी
बन गई बाँसुरी।
2
कुछ खिलौने
उम्र छीन ले गई
कुछ वक़्त ने लूटे,
ख़ाली हाथ हूँ
काश ! कोई लहर
हथेली भर जाए !
3
पावना छाँव
नानी के आँचल की:
फरफराया
‘रहल’ पे बिराजी
रामायण का पन्ना ।
(‘रहल’ Xआकार की एक चौकी जिस पर टिकाकर पुस्तक पढ़ी जाती है।)
सेदोका
यत्न से रखीं
तहाकर जो यादें
अतीत के सन्दूक
खोल बैठी जो,
देखा वक़्त-सितम,
सब चकनाचूर!
2
अलसा गया
दिन का मज़दूर
धूप की ताड़ी पी के
औचक ही आ
अँधेरा छीन भागा
सारी कमाई ले के ।
3
छोड़ पुराना
गहो नवल, मन !
बिसरा कर तम
केंचुल त्यागो
जीर्ण-शीर्ण हो गयी
राह बुलाती नई।
चोका
1
बाती बोली यूँ
बाती बोली यूँ
मुझसे मत पूछो
मैं जलती क्यों
स्नेह भरे दीपक
जा कूदी थी मैं
तन–मन भिगोया
प्रेम–कुण्ड में
ऐसी डुबकी मारी
सुधि बिसरा
हुई ‘उसी’ की सारी
गहरे डूबी
कुछ बूझ न पाई
वजूद खोया
भोला–सा मेरा मन
रूई –उजला
नेह में भीगा तन
‘लौ’ ने जो छुआ
भक्क से जल उठी
प्रेम–मगन
तन–मन अगन
बस तभी से
रात–दिन जली मैं
मेरा कहना
मानो तुम बहना
प्रेम–प्रीत में
अतिशय डूबना
बहुत बुरा
कभी न डूबो पूरे
नित्य जलोगे
सदा पीर सहोगे
मैं बाती सहती ज्यों
2
मावस भोली
मावस भोली
स्याह काली रात की
बुक्कल मार
ख़ुद का रूप दिया
बुझाके दीया
खोजती फिरे पिया
कैसी बावरी !
चढ़ी ऊँची अटारी
उचक ढूँढ़े
कहाँ छिपे प्रीतम ?
न दे दिखाई
निराश हो -होकर
आँसू ढलका
चुनरी भर डाली
जगमगाते
वे बनके सितारे
रो-रो पुकारे-
कहां छिपे हो सोम ?
बड़ा निठुर
छकाता रहे चाँद
पास न आए
सारी रात जगाए
एक पल को
झलक न दिखाए
चाँद-दीवानी
कभी चैन न पाए
देखो तो रीत:
जग की चतुराई
बूझी न जाए
सोम की विरहिणी
‘सोमवती’ कहाए ।-0-
माहिया
1
वे बचपन की गलियाँ
हम भूल न पाए
जो आज हुईं छलिया ।
2
गरमाहट नातों की
डोरी टूट गई
भेंटों-सौगातों की।
डॉ. सुधा गुप्ता
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