खुशबू का सफ़र ( हाइकु संग्रह)
साईनबानुं मोरावाला
हिन्दी हाइकु जगत के जो प्रमुख हस्ताक्षर हैं, मुख्य सर्जक हैं जिनके नाम से तथा जिनके
लेखन-सर्जन से सही मायने में हिन्दी हाइकु को एक पहचान मिली या एक नई दिशा मिली है,
ऐसे सर्जकों में डॉ. सुधा गुप्ता का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है । हाइकु काव्य के
क्षेत्र में सुधा जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उनके कई हाइकु-संग्रह प्रकाशित
हो चुके हैं। जैसे –‘खुशबू का सफ़र’ (१९८६), ‘लड़की का सपना’ (१९८९), ‘तरु देवता
पाखी पुरोहित’ (१९९७), ‘कुकी जो पिकी’ (२०००), ‘बाबुना जो आएगी’ (२००४),
‘आ बेठी गीत परी’ (२००४), ‘अकेला था समय’ (२००४), ‘चुलबुली
रात ने’ (२००६), ‘कोरी माटी के दीये’ (२००९), ‘ खोई हरी टेकरी’
(२०१३) तथा सुख राई-सा दुःख के परबत।
उनके हाइकु में संवेदना के कई आयाम मिलते हैं । उन्होंने प्रेम, प्रकृति, जीवन-दर्शन,
पर्यावरण, सामाजिक सरोकार, राजनीति, व्यंग्य, प्रेम-विरह,
सुख-दु:ख, नारी-चित्रण,
वृद्धों की समस्या, गरीबी, ऋतु-वर्णन जैसे अनेक विषयों से जुड़े हाइकु लिखे हैं।
‘खुशबू का सफ़र’ (१९८६) डॉ. सुधा गुप्ता का पहला हाइकु संग्रह है तथा हिन्दी साहित्य
जगत का दूसरा एकल हाइकु संग्रह। प्रस्तुत संग्रह में कुल १०८ हाइकु संकलित हैं । इसमें
ज्यादातर हाइकु प्रकृति, ऋतु-वर्णन, बारहमासा, जीवन दर्शन, धर्म आदि को लेकर रचे गए हैं ।
इस संग्रह में कवयित्री ने बारह महीनों एवं छह ऋतुओं के वर्णन के अंतर्गत प्रकृति
का सुंदर चित्रण किया है। इसमें रचे गये सभी हाइकु अनूठे उपमानों के साथ सजे हैं ।
प्रकृति के विविध रूपों को पढ़ते-देखते हुए हम इस तथ्य से अवगत होते हैं कि बहुत बारीकी
से कवयित्री इस तरह की स्थिति का अवलोकन करती हैं। विविध ऋतुओं का बदलना, कौन सी ऋतु में कौन
से फूल खिलते, फूलों के रंग-रूप सबका अवलोकन करके उसे अलग-अलग
उपमाएँ देकर हाइकु में बाँध देना वो भी बड़ी सहजता और सरलता के साथ । यहाँ पर हम ऋतु
वर्णन को लेकर रचे गए हाइकु के कुछ उदाहरण देख सकते हैं -
फूलों की टोपी/ हरियाली का कुर्ता/
वसंत दूल्हा ।
सोनल फूल/ अमलतास खिला/
झरना नही ।
बादर कारे/ जल भरें गुब्बारे/
फूटे,बरसे ।
बर्फ का ताज/ पहने निंदियारी/
वनस्पतियाँ ।
पीपल खड़ा/ साय-साय दौडती/
पागल हवा ।
उपर्युक्त हाइकु में सुधाजी ने खूबसूरत
वसंत को उतने ही सुंदर शब्दों में वर्णन किया है । हरियाले कुर्ते पर रंग-बेरंगी फूलों
की टोपी पहने बसंत को दूल्हे के रूप में प्रस्तुत किया है। सुधा जी की रचनाओं में विषयों
की विविधता रही है । ऋतु तथा महीनों का बदलना, विभिन्न पेड़-पौधों, पक्षियों
के विविध रूप-गुण पर भरपूर मात्रा में हाइकु सृजन किया है । पहाड़, नदी, सागर, दिन-रात, चाँद-सूरज, सवेरा-संध्या, बारिश
आदि को लेकर बहुत ही सुंदर हाइकु रचे हैं ।
डॉ. सुधा गुप्ता ने ऋतुओं को लेकर तो अपनी लेखनी चलाई है लेकिन साथ ही साथ बारहमासा
को भी अपने हाइकु काव्य में पिरोया है। चैत, वैशाख, जेष्ठ,
आषाढ़, सावन, भादों,
कार्तिक, अगहन, पौष,
माघ, फाल्गुन इन सभी महीनों की विशेषताओं पर भी
हाइकु सृजन किया है । उनके काव्य में ऋतु-वर्णन से जुड़ा कोई भी विषय अछूता नहीं रहा
है । सारे विषयों को इन छोटी-छोटी तीन पंक्तियों में समेट लिया है –
मटर छीमी:/ नाचती गाती खुश/ चैत आया ।
तंदूर तपा/ धरती रोटी सिके/
दहक लाल ।
आषाढ़ लगा/ मन संतूर बजा/ संकल्प डिगा ।
सावन-रात/ झिल्ली बोलती फिर/
खूलते ज़ख्म
भादों की संध्या/ खिला नील आकाश/
अभागी संध्या ।
कवयित्री प्रकृति के हर रूप से बेहद प्रेम करती है। थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है। वैसे तो हम सभी जानते हैं कि भारत विविध ऋतुओं का देश है, जिसमें वसंत का महत्व अधिक है। वसंत की सुषमा से प्रकृति खिल उठती है। चैत मास को लेकर सुधा जी ने कितने सुंदर हाइकु रचे हैं। वसंत खत्म होते-होते वैशाख में हवाएँ बहना बंद हो जाती है। उसके बाद जेठ माह में तो गर्मी का प्रकोप बढ़ जाता है। जेठ की तपन को भी कवयित्री ने यहाँ पर उकेरा है। आषाढ़ माह में जब वर्षा का आगमन होता है तब गर्मी से राहत होती है, पेड़-पौधें झूमने लगते हैं। सावन भादों में बारिश होती रहती है। सावन में वर्षा को देखकर चारों तरफ वातावरण प्रफुल्लित हो जाता है। डॉ. सुधा गुप्ता ने बड़े ही कलात्मक ढंग से बारहमासा को हाइकु में पिरोया है ।
चाबुक लिये/ हवा धूमती रही/
सट सटाक ।
साँवली भोर/ हिम परिधान में/
झरोखे खड़ी ।
ऋतु-वर्णन तथा बारहमासा साहित्य की परम्परा रही है । एक ऋतु के बाद दूसरी ऋतु का
आना और मौसम का बदलना यह तो एक प्राकृतिक घटना है । यहाँ पर हर मौसम में होने वाली
अनुभूतियों को बड़ी ही सहजता के साथ हाइकु में उतारा है ।
डॉ. सुधा गुप्ता के ऋतु-वर्णन के साथ-साथ भी अन्य विषयों से जुड़े हाइकु लिखे
हैं –
खो गई आस्था/ भटकता इन्सान/
दु:खी हैरान ।
हिज्र की तोड़/ दीवारें वे फौलादी/
कोई आ मिला ।
साँज का तारा/ नीले मजार पर/
अकेला फूल ।
रजनी गंधा/ हँसती सारी रात/
सुबह सोती ।
अंत में, हम यह कह सकते हैं कि डॉ. सुधा गुप्ता के हाइकु का विषय चाहे कोई भी हो
परंतु उसे बहुत ही कलात्मक ढंग से वह अनमोल बना देती है। सुधा जी द्वारा प्रयोग किए
गए अनूठे विविध उपमान रचनाओं को ताजगी प्रदान करते हैं। इनकी रचनाओं में विषय की विविधता
के साथ भाव एवं शिल्प संयोजन इतना बेजोड़ है कि सभी हाइकु बहुत ही उत्कृष्ट बन पडे
है । साथ ही साथ बिम्बों, प्रतीकों, अलंकारों आदि के सुंदर प्रयोग एक नया चमत्कार उत्पन्न करते हैं । हम कह सकते हैं कि इनके हाइकु संसार ने हिन्दी
साहित्य को समृद्ध किया है ।
संदर्भ –
खुशबू का सफ़र ( हाइकु संग्रह), सुधा
गुप्ता, प्रथम संस्करण:१९८६, प्रकाशन: इन्डो विजन
(प्रा) लि., II ए-220 नहेरु नगर, गाजियाबाद 201001
साईनबानुं मोरावाला
पीएच.डी. शोध-छात्रा,
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग,
स.प.विश्वविद्यालय,
वल्लभ विद्यानगर – गुजरात
सुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंलेखिका के हाइकु अत्यंत रोचक है। साथ ही साथ आपकी समझाने की विधि भी आकर्षित है।
Khalid saiyad
सुंदर लेखन है, आप उत्तरोत्तर प्रगति करे ।
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