डॉ. घनश्याम बादल
बहुत की कोशिश पर ग़ज़ल नहीं लिख पाया,
पानी को आग, आग को जल नहीं लिख पाया,
मेरे हर तेवर में
बसी रही तेवरी ही बस सदा,
ख्वाब में भी सूरज
को बादल नहीं लिख पाया ।
रहा घाटे में बेशक, मुनाफे की चाह भी न थी,
दबाव में भी कालिख को काजल नहीं लिख पाया ।
इसका बन पाया, ना उसका बन सका एक तरफा ,
चाह कर भी तेजाब को गंगाजल नहीं लिख पाया ।
करके बंद आँखें सराहा ना गिराया किसी को कभी,
अपनी सोच में भी कभी एक दल नहीं लिख पाया ।
होते कोठी, बंगले मेरे भी पास सब उसकी तरह,
कमल को कीचड़, कीचड़ को कमल नहीं लिख पाया ।
डॉ. घनश्याम बादल
215, पुष्परचना कुंज,
गोविंद नगर पूर्वाबली
रुड़की - उत्तराखंड - 247667
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