छुटा साया
डॉ. मुक्ति शर्मा
शरीर से मानो जैसे जान ही निकल गई। दर्द से चिल्ला रहा था हुसैन 'क्या बात है?
'तुम जोर -जोर से क्यों चिल्ला रहे हो मुझे प्यास लगी है
दर्द हो रहा है।'
आयत ने जब अपने अब्बू की आवाज सुनी वह सहेलियों के साथ खेल रही थी वह भी पिता
की आवाज सुनकर जल्दी से खिलौने छोड़ कर आई अब्बू क्या बात है?
अब्बू क्या हुआ दर्द हो रहा है ?
चलो आपको डॉक्टर के पास ले चलते हैं।
पानी पानी दे दो...?
तबस्सुम पानी लेने के लिए रसोई में गई... जैसे ही वे पानी लेकर आई उसके हाथ से
गिलास छूट गया।
हुसैन आँखें बंद घर
बैठे थे।
मेरे अब्बू तो पानी भी नहीं पी पाएँ, दम तोड़ दिया, उठो अब्बू क्या हो गया
आपको?
भाई चलो अब्बू को डॉक्टर के पास ले चलते हैं, आप आँखें खोलो अब्बू, परंतु
अब्बू तो थे, नहीं
वहाँ शरीर था?
जिसमें जान नहीं थी... काश कोई शरीर में
जान फूँक देता ।
मुझे अब्बू की बहुत याद आ रही है। हम सब भाई बहन अपनी किस्मत पर रो रहे थे।
अब्बू ही तो एकमात्र सहारा थे।
मेरे भाई की बेटी उस समय 3 महीने की थी। भाभी कमरे में उसे दूध पिला रही थी।
लोग
घर में आ रहे थे। सब रिश्तेदार थे। पैर रखने की जगह नहीं थी।
जैसे मेला लगा हो।
परन्तु हमारे घर का मजबूत खंबा गिर गया था।
तबस्सुम :बेटा अब घर का सारा बोझ तुम्हारे मजबूत कंधों पर है,
तुम्हें हिम्मत करनी होगी और अपनी बहनों का ख्याल रखना
होगा।
नरगिस और आयत फातिमा को बहुत प्यार करती थी, दिन भर गोद में उठाकर घूमती रहती
थी ।
अम्मी बहुत बार मुझे डाँटती थी ,कि तुम क्यों फातिमा को घुमा रही हो, इसका ध्यान रखो गिर ना
जाए।
मैं अंदर से सोचती थी हमारा क्या होगा?
अब्बू नहीं रहे, घर का खर्चा कैसे चलेगा, हम क्या करेंगे, हमें प्यार कौन
करेगा?
दिन रात यह बात मुझे अंदर ही अंदर कचौट रही थी।
पिता का साया हर बेटी के लिए बहुत जरूरी है, अब्बू वृक्ष की तरह होते हैं , जो अपनी छाया से बच्चों के बचपन को शीतल हवा से मुस्कुराना
सिखाता है।
परंतु हमारा तो साया ही उठ गया। हम किसके सहारे जिंदा रहेंगे? अभी तो दिन रात
परेशान रहती अब क्या होगा?
अम्मी तुम परेशान मत हो जाओ ,तुम खुश रहो अल्लाह सब ठीक करेंगे। नरगिस बार-बार अम्मी को
यही समझाती है।
तबस्सुम की तो दुनिया ही उजड़ चुकी थी, तबस्सुम क्या किसी की बात को सुनती।
आदिल को सुरैया बोल रही थी,तुम कब तक अपनी अम्मी और बहनों का खर्चा उठाते रहोगे। मुझे बिल्कुल भी अच्छा
नहीं लगता इन लोगों के साथ रहना।
तबस्सुम ने आदिल और सुरैया की सारी बातें सुन ली।
अगले दिन सुबह होते ही आदिल तबस्सुम के पास आया, अम्मी अब हम यहां नहीं रहेंगे ।
हम अलग घर में रहेंगे, हमारा भी एक बच्चा है। इसका भविष्य है तो आखिर मैं ही
घर में काम करने वाला हूँ।
मैं कल को अपनी पत्नी और बच्चे के बारे में नहीं सोचूँगा तो अल्लाह मुझे लानत
देगा।
तबस्सुम तुम्हें जैसा मन करे वैसा करो बेटा तुम आजाद हो अब हमारी किस्मत ही खराब है तो मैं तुम्हें क्या
दोष दूँ।
तुम अपनी पत्नी और बच्चे के साथ खुशी-खुशी जा सकते हो, मेरे घर के दरवाजे
तुम्हारे लिए ना कभी बंद थे ना कभी बंद होंगे। तुम्हें जैसा अच्छा लगे तुम करो।
नरगिस ने अपने भाई का हाथ पकड़ लिया भाई हमें छोड़कर मत जाओ अब्बू भी चले गए
अब तो हमारे घर में कोई लड़का ही नहीं रहा।
छोड़ मेरा हाथ, मुझे जाने दे, हम लोग अब यहाँ नहीं रह सकते।
तबस्सुम ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया और जोर -जोर से रोने लगी,
काश हुसैन तुम आज जिंदा होते तो मुझे यह दिन नहीं देखना
पड़ता।
आदिल किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था, उसने अपना सामान उठाया और चला गया।
हमारे पास तो कमाई का कोई साधन ही नहीं था हम क्या करते,...
तबस्सुम डर के साए में जिया करती... आखिर मेरी इन दोनों बेटियों का क्या होगा।
अल्लाह मुझे सही राह दिखा।
आपा आपके घर में कोई काम है?
तो मुझे रख लीजिए मुझे पैसों की सख्त
जरूरत है।
ऐसा क्या हुआ, तुम्हारा बेटा आदिल कहाँ गया, क्या वह कमाता नहीं?
क्या बताऊँ वह घर छोड़कर चला गया।
तौबा-तौबा अल्लाह बचाए आजकल की ऐसी औलाद से।
उसे शर्म नहीं आई कि उसकी माँ है और दो बहने हैं उनका क्या होगा?
आप छोड़ो यह सब आप बताओ कि अगर कोई काम है तो मुझे दे दीजिए, मुझे पैसों की सख्त
जरूरत है!
ठीक है कल से घर पर काम करने के लिए आ जाना।
आयत सीढ़ियों पर बैठकर रो रही थी, अम्मी मुझे बहुत भूख लगी है।
आयत चलो अंदर मैं तुम्हें कुछ खाने दे देती हूँ।
आयत ने आँसू पोंछे और अम्मी के पीछे पीछे चलने लगी।
आज मैं तुम दोनों बहनों को खूब पेट भर कर खाना खिलाऊँगी तुम दोनों कभी मत रोना
मुझे काम मिल गया है।
नरगिस दसवीं कक्षा में प्रथम स्थान पर आई। अम्मी तुम जानती हो?
मैं स्कूल में प्रथम आई। दौड़ती
-दौड़ती अम्मी के गले से लग गई।
तबस्सुम के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मेरी बच्ची खूब खुश रह और जी भर
के मेहनत कर...
नरगिस हुसैन की तस्वीर के पास गई और बोली अब्बू मुझे आशीर्वाद दो कि मैं घरवालों का दुख दर्द कम कर सकूँ... ऐसा लग रहा
था कि अब्बू मुझे आशीर्वाद दे रहे हो।
इस तरह जिंदगी आगे बढ़ती गई और मैं भी अपने कॉलेज की परीक्षा पूरी करके नौकरी
की तलाश करने लगी।
डॉ. मुक्ति शर्मा
कश्मीर (अनंतनाग)
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