बुधवार, 26 जुलाई 2023

सोरठा

 


त्रिलोक सिंह ठकुरेला

 

 

बदल गया परिवेश , अब हंसों के दिन लदे ।

विस्मय में है देश , कागा मनभावन करें ।।

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हर आँगन हर द्वार, नागफनी शोभा बनी ।

तुलसी का सत्कार , दिन दिन घटता ही गया ।।

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प्रभुता की मनुहार, पूछे कौन गरीब को ।

स्वार्थ भरा संसार, तिलक करे मुँह देखकर ।।

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कौन सुने अनुरोध, जंगल नदी पहाड़  का ।

शेष बचा यह बोध, कुछ भी हो जेबें भरें ।।

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अपनेपन की गंध, सहसा उड़ी कपूर सी ।

वर्षों के सम्बन्ध, तपे स्वार्थ की आग पर  ।।

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आ पहुँचा बाजार , धीरे धीरे द्वार तक ।

हावी है व्यापार , जीवन के हर मोड़ पर  ।।

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अंतस हुआ कुरूप, सतरंगी परिधान में ।

नहीं रहा अनुरूप , अब समाज का आचरण ।।

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चिंता के अम्बार, किए इकठ्ठा रात दिन ।

इस जीवन का सार, प्यार अनूठी सम्पदा ।।

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बाँटो थोड़ा प्यार, आएगा मधुमास फिर ।

यह सारा संसार, महक उठेगा एक दिन ।।

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होगा नवल प्रभात, आशा के दीपक जला ।

सदा न रहती रात, जग में कुछ स्थिर नहीं ।।

 


त्रिलोक सिंह ठकुरेला

बंगला संख्या- 99 ,

रेलवे चिकित्सालय के सामने,

आबू  रोड -307026 

राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

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