त्रिलोक सिंह
ठकुरेला
बदल गया परिवेश
, अब हंसों के दिन
लदे ।
विस्मय में है
देश , कागा मनभावन
करें ।।
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हर आँगन हर द्वार, नागफनी शोभा
बनी ।
तुलसी का
सत्कार , दिन दिन घटता
ही गया ।।
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प्रभुता की
मनुहार, पूछे कौन गरीब
को ।
स्वार्थ भरा
संसार, तिलक करे मुँह
देखकर ।।
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कौन सुने
अनुरोध, जंगल नदी पहाड़ का ।
शेष बचा यह बोध, कुछ भी हो
जेबें भरें ।।
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अपनेपन की गंध, सहसा उड़ी कपूर
सी ।
वर्षों के
सम्बन्ध, तपे स्वार्थ
की आग पर ।।
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आ पहुँचा बाजार
, धीरे धीरे
द्वार तक ।
हावी है
व्यापार , जीवन के हर मोड़
पर ।।
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अंतस हुआ कुरूप, सतरंगी परिधान
में ।
नहीं रहा
अनुरूप , अब समाज का आचरण
।।
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चिंता के
अम्बार, किए इकठ्ठा रात
दिन ।
इस जीवन का सार, प्यार अनूठी
सम्पदा ।।
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बाँटो थोड़ा
प्यार, आएगा मधुमास
फिर ।
यह सारा संसार, महक उठेगा एक
दिन ।।
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होगा नवल
प्रभात, आशा के दीपक
जला ।
सदा न रहती रात, जग में कुछ
स्थिर नहीं ।।
त्रिलोक सिंह
ठकुरेला
बंगला संख्या- 99 ,
रेलवे चिकित्सालय के सामने,
आबू रोड -307026
राजस्थान
सभी सोरठे सुंदर ,गम्भीर अर्थव्यजंक।
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण, सुंदर सोरठे। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
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