सोमवार, 31 जुलाई 2023

लघुकथा



असली हामिद

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

इक्कीसवीं सदी।

आज ईद है। ईदगाह पर भारी भीड़ है। पिछली शताब्दी के महान कथाकार प्रेमचंद मेले में अपने कथानायक बालक हामिद को खोजते फिर रहे हैं। हिंडोले के पास देखा, खिलौनों की दुकान पर देखा, मिठाइयों की दुकान पर देखा, कहीं कोई हामिद नहीं दिखा।

हार झख मारकर कथाकार लोहे की चीजों की दुकान पर भी पहुँचे। और यह क्या, यहाँ तो बच्चों की कतार लगी है! इनमें हामिद को ढूँढ़े भी तो कैसे? वे एक बच्चे का नाम पूछते हैं और सब बच्चे अभी अभी खरीदे हुए चिमटों पर हाथ फेरते हुए कहते हैं - “मैं हामिद हूँ।”

प्रेमचंद भौंचक।

तुम सब हामिद कैसे हो सकते हो - असली हामिद कौन-सा है?”

हम सब असली हामिद हैं।” उन्होंने बन्दूक की तरह चिमटे कंधों पर रख लिए है।

प्रेमचंद को लगता है, अब किसी अमीना की अंगुलियाँ नहीं जलेंगी।

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डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद 


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