गर्मी
सीमा ‘सुशी’
1
दिन भर तीखी धूप को सह जाने के बाद।
खिलकर कहता मोगरा, ये मेरा प्रतिवाद।।
2
गर्मी राहत गुलमोहर, चम्पा है मदहोश।।
बहकाता है मोगरा, और जूही खामोश।।
3
गर्मी आँख तरेरकर, खूब दिखाती डाह।
और खिले मधुमालती, करे नहीं परवाह।।
4
इसी धूप ने पूस में, बाँटा बहुत शबाब।
यही सोचकर ज्येष्ठ में, खिलते रहे गुलाब।।
5
गर्मी सोती थी कभी, अमराई की छाँव।
बेकल सी अब खोजती, हरियाली की ठाँव।।
6
खिड़की से अठखेलियाँ, पर्दों से तकरार।
ए सी ने सब छीन ली, झोंकों की रफ्तार।।
7
मौसम की प्रतिकूलता, करती रही प्रयास।
गुलमोहर हँसता रहा, हुआ तनिक न उदास।।
8
साँझ ढले सजता गगन, ले तारों को संग।
इधर महक जाती धरा, खिला मोगरे अंग।।
9
बैरन गर्मी दे रही, चहल-पहल को मात।
सन्नाटे करने लगे, दोपहरी से बात।।
10
शरमीली छिपकर खिली, जतन न आए काम।
हवा मुखबिरी कर गई, हुई मोगरा शाम।।
सीमा पांडे मिश्रा सुशी
113/62 एकता परिसर शिवाजी नगर
भोपाल (मध्य प्रदेश) - 462016
बहुत सुंदर बिम्ब सजाए हैं।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर दोहे
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