वाइब्रेंट विलेज : कितने वाइब्रेंट
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के नाम बदलने की चीन की
कुटिल चाल का सबसे अच्छा जवाब यही हो सकता है कि भारत सरकार वहाँ अपनी सक्रिय
उपस्थिति दर्शाए। इस लिहाज से गृह मंत्री
अमित शाह की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा और सीमा पर ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ के शुभारंभ को अच्छा रणनीतिक कदम कहा जा सकता है। देखना यह
होगा कि यह केवल घोषणा तक ही सीमित न रहे, बल्कि वे गाँव सचमुच ऐसे जीवंत गाँव बन कर उभरें,
जो देशी और विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींच सकें।
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री ने अरुणाचल प्रदेश के
सीमावर्ती गाँव किबिथू में ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ की नींव रखी है।
अरुणाचल सरकार की 9 सूक्ष्म पनबिजली परियोजनाओं और 120 करोड़ रुपये की भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की 14 बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का भी उद्घाटन किया गया है। इस
मौके पर शाह का यह बयान उत्साहवर्धक तो ज़रूर है कि सीमावर्ती गाँवों के प्रति
लोगों का नजरिया बदला है और अब सीमावर्ती क्षेत्र में आने वाले लोग किबिथू को
अंतिम गाँव के रूप में नहीं बल्कि भारत के पहले गाँव के रूप में जानते हैं। लेकिन
इस बयान को व्यापक सच्चाई बनाने के लिए ज़रूरी है कि ऐसे गाँवों तक लोगों का
आना-जाना सुगम और निरापद हो। यह बात केवल किबिथू पर ही नहीं,
समूचे उत्तर और उत्तर-पूर्व के सीमावर्ती गाँवों पर भी लागू
होती है। जैसा कि गृह मंत्री ने कहा है, सीमा की सुरक्षा ही देश की सुरक्षा है। इसलिए सीमा पर बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने के लिए ठोस
काम होना ज़रूरी है। ऐसा करके ही चीन के दुष्प्रचार को निष्प्रभावी बनाया जा सकता
है।
दरअसल, सरकारों के स्तर पर ऐसे प्रयासों की बड़ी जरूरत है जो सुदूर
सीमावर्ती इलाकों में यह बोध जगा सकें कि वे भारत की मुख्य भूमि से दूर या अलग-थलग
नहीं हैं। अगर आज भी उत्तर और उत्तर-पूर्व के राज्यों के कुछ इलाकों में देश के
मैदानी प्रांतों से आने वालों को ‘परदेसी’ या ‘हिंदुस्तान से आया हुआ’ मानने का चलन बाकी है, तो इस स्थिति को निर्मूल किए जाने की बड़ी ज़रूरत है। धर्म,
भाषा, जाति, नस्ल और क्षेत्र के आधार पर भारतीयों के बीच किसी भी प्रकार
का भेदभाव अस्वीकार्य है - इसका अनुभव ज़मीनी स्तर पर हर भारतीय को करना और करवाना
राष्ट्रीयता की पहली शर्त है। इसलिए गृह मंत्री का यह नोटिस करना उत्साहवर्धक कहा
जाना चाहिए कि अरुणाचल प्रदेश के सभी निवासी एक दूसरे को ‘जयहिंद’ कहकर अभिवादन करते हैं और इसी भावना ने अरुणाचल को भारत के
साथ रखा है।
यहाँ इस मुद्दे पर भी गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है कि
अरुणाचल सहित तमाम सीमावर्ती इलाकों से बड़ी संख्या में पलायन क्यों होता है।
इसीलिए न कि वहाँ जीवन दुष्कर है और आजीविका दुर्लभ? सरकारों को चाहिए कि इन सीमावर्ती गाँवों के जीवन को सुगम
और और उनके लिए आजीविका को सुलभ बनाने के ठोस कार्यक्रम लागू करें। इस लिहाज से ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ सचमुच स्वागतयोग्य है। इस
कार्यक्रम के तहत अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में उत्तरी सीमा से सटे 19 जिलों के 46 ब्लॉकों में व्यापक विकास के लिए 2967 गाँवों की पहचान की गई है। पर्यटन, स्थानीय संस्कृति और भाषा संरक्षण को बढ़ावा देते हुए इन
गाँवों का विकास इस तरह करना होगा कि ‘वाइब्रेंट विलेज’ में रहने वाले सभी लोग इनमें रहने पर गर्व महसूस करें! वैसे
भी अरुणाचल प्रदेश भारत भूमि का वह क्षेत्र है, प्रातःकालीन सूर्य की रश्मियाँ प्रतिदिन जिसका सबसे पहले
अभिनंदन करती हैं –
“अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।”
(जयशंकर प्रसाद - चंद्रगुप्त)
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा
हैदराबाद
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