शुक्रवार, 31 मार्च 2023

दोहे

नारी

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

 

 

हाथ प्रेम की तूलिका, वर्ण पिटारी  संग ।

जीवन में नारी भरे, सुख के सौ-सौ रंग ।।

    

होठों पर मुस्कान रख , बाँट रही अनुराग ।

नारी सहती ही रही, असमदृष्टि  की आग ।।


ठगी रह गयी द्रोपदी, टूट गया विश्वास ।

संरक्षण कब मिल सका , अपनों के भी पास ।।


मानवता के पक्ष में, नारी का हर रूप ।

छाया है वह धूप में, जाड़े में शुभ धूप ।।

  

किससे अपना दुःख कहें, कलियाँ लहू-लुहान ।

माली सोया बाग में, अपनी चादर तान ।।


जीवन के संघर्ष में, यदि नारी हो संग ।

कठिन नहीं कोई डगर , सहज विजित हर जंग ।।


नारी नर की सारथी , जीवन है संघर्ष ।

यदि रथ साथ विवेक का , सब कुछ सहज, सहर्ष ।।


लक्ष्मण रेखा लांघकर , किसे मिला सुख चैन ।

रह अशोक वन शोक में, सीता के दिन रैन ।।


आँगन हो माँ-बाप का, या हो पति का द्वार ।

पग-पग पर नारी गढ़े , खुशियों का संसार ।।


हुए विचारक सोचकर, बार बार हैरान ।

यह समाज क्यों मानता, नारी को सामान ।।


अपनी ताकत जानकर , तोड़ रूढ़ि के फंद ।

नारी लिखती आजकल, नव विकास के छंद ।।

 


त्रिलोक सिंह ठकुरेला

आबूरोड


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