शुक्रवार, 31 मार्च 2023

कविता

 

विचार-विमर्श

रूपल उपाध्याय

एक कागज़ और कलम लेती हूँ,

फिर कुछ विचार बुनती हूँ।

उन विचारों को ज्यों का त्यों रख सके,

ऐसे शब्दों का आयाम खोजती हूँ ।।

सोचा कि लिख दूँ वो सब,

जो कभी किसी से कहा नहीं ।

बताऊँ उन वेदनाओं को ,

जिसे किसी ने कभी सहा नहीं ।।

फिर विचार किया कि ,

क्या करूँगी लिखकर ?

कुछ बदलेगा तो नहीं,

मनुष्य देह पाकर ,

राम- कृष्ण ने भी ,

कई विष पिए हैं।

अनेक वेदनाओं को सहकर ,

वे बरसों जीये हैं ।।

कलम को तलवार मुझे भी बनाना है,

मेरे भीतर की अग्नि की ज्वाला,

आवाम तक पहुँचाना है।

फिर सोचा ज़िक्र उन सभी,

बातों का करूँ जिसने,

मेरे आत्मविश्वास को डीगाया है।।

या फिर उन पलों का सिंचन करूँ,

जिसने मेरा हौसला बढ़ाया है।

यह कहानी सिर्फ तेरी या मेरी नहीं है,

इसका सृजनहार और सूत्रधार ,

मैंने अपने ईश को बनाया है।।

कर्म करते रहना और

फल की इच्छा न करना,

आज में जीवन जीकर

कल की चिंता न करना।

यह मुद्दा मैंने उठाया तो है,

लेकिन अफसोस यह मुद्दा तुमने उछाला है।।

इसलिए कलम को तलवार नहीं बनाऊँगी,

रहीम के मीठे बोल की सीख,

आज मैं सच कर जाऊँगी।

शून्य आकाश की भाँति,

विचार भी मेरे शून्य हुए ।।

जहाँ से उठाए थे कागज़ कलम ,

यथा स्थान वही धर पूर्ण हुए ,

भीतर अंतर्द्वंद्ध से लड़कर,

अधरों पर मैं मुस्कान रखती हूँ ।

सौहार्द परिपूर्ण क्षणों का,

मन से आह्वान करती हूँ ।।


 

रूपल उपाध्याय

सी/70, इंद्रप्रस्थ सोसायटी ,

घनश्याम पार्क -2 के पास ,

सहयोग सोसायटी के पीछे

गोरवा,वडोदरा -390016

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