बुधवार, 18 जनवरी 2023

कविता

 



नया वर्ष

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

नए वर्ष की नई सुबह ने

रंग बिखराए नए-नए ।

सब में नए-नए सूरज ने

स्वप्न जगाए नए-नए ।।

 

नई उमंगें, नई तरंगें

नई ताल, संगीत नया ।

सब में जगीं नई आशाएँ,

नई बहारें, गीत नया ।।

 

नई चाह है, नई राह है

नई सोच, हर बात नई।

नया जागरण, नई दिशाएँ,

नई लगन, सौगात नई ।।

 

सब में नई नेह धाराएँ

लेकर आया वर्ष नया ।

नया लगा हर एक नज़ारा,

सब में छाया हर्ष नया ।।

 



त्रिलोक सिंह ठकुरेला

आबू रोड (राजस्थान)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अक्टूबर 2025, अंक 64

  शब्द-सृष्टि अक्टूबर 2025, अंक 64 शब्दसृष्टि का 64 वाँ अंक : प्रकाशपर्व की मंगलकामनाओं सहित.....– प्रो. हसमुख परमार आलेख – दीपपर्व – डॉ...