गुरुवार, 19 जनवरी 2023

आलेख

 



राजभाषा हिंदी का सरलीकरण

गौतम कुमार सागर

भूमिका :-

बाइबिल में एक सुन्दर कथा है। एक बार पृथ्वी के सभी मनुष्यों ने मिलकर धरती से स्वर्ग तक एक सीढ़ी बनाने का निर्णय लिया। ताकि वे प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वर का दर्शन कर सके। स्वर्ग के जीवन का आनंद ले सके। अपने कठोर परिश्रम और सूझ-बूझ से ग्रीष्म, शीत, वर्षा की परवाह न करते हुए वे स्वर्ग की इस सीढ़ी के निर्माण में प्राणपण से लगे रहे। दिनों दिन सीढ़ी की ऊँचाई बढती जा रही थी। सीढ़ी मेघों के भी पार चली गयी। यह देख कर स्वर्ग के देवदूत घबरा गए।

मनुष्य अपनी काया सहित केवल एक  सीढ़ी से  परमेश्वर के साम्राज्य में प्रवेश करने लगे तो सृष्टि पर कर्म-विकर्म,पाप-पुण्य, जन्म-मरण के सभी शाश्वत नियम उलटे पड़ जाएँगे। अतः देवदूत यह मंत्रणा करने लगे कि किस प्रकार मनुष्यों को रोका जाए।  कैसे उनकी एकता और लक्ष्य केंद्रित परिश्रम को छिन्न-भिन्न किया जाये।

देवदूतों ने एक योजना बनाई। उन्होंने सीढ़ी के कार्य में लगे असंख्य मनुष्यों को उनकी सरल और सुगम्य भाषा के स्थान पर एक क्लिष्ट और बहुअर्थी भाषा दे दी। कुछ ही दिनों में मनुष्यों में गलतफहमियाँ पैदा होने लगी। वे एक दूसरे के भाव और शब्दों में ताल-मेल नहीं बिठा पा रहे थे।  कुछ ही महीनों में उनकी आपसी एकता बिखर गयी।  वे सीढ़ी निर्माण के कार्य को छोड़ अपने  आपसी मतभेदों में उलझ गए।  धीरे -धीरे सीढ़ी निर्माण का कार्य ठप्प पड़ गया। इस तरह मनुष्य अपने उद्देश्य से भटक कर स्वर्ग से वंचित रह गया।

इस प्रकार  कठिन भाषा  ने हजारों मनुष्यों के टीमवर्क अर्थात् समूह कार्य को टूटे मुक्ता हार की भाँति बिखरा दिया।रूपक के रूप में कही गयी उपरोक्त कथा से स्पष्ट होता है कि "भाषा की दुरूहता और कठिनता"  कितनी आपदाओं की जननी हो सकती है।

भाषाविज्ञानी आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा के अनुसार, "भाषा का रूप विषय के अनुसार सरल या कठिन हुआ करता है। जिस प्रकार तरल वस्तु का अपना कोई आकार नहीं होता, उसे जैसे पात्र में रखा जाता है वैसा ही उसका आकार हो जाता है, उसी प्रकार भाषा का भी निश्चित रूप नहीं होता। दर्शन की भाषा वैसी नहीं होती जैसे अखबार की और न साहित्यालोचन की भाषा वह होती है जो विज्ञापन की। लेखक की रुचि, प्रवृति, संस्कार, अध्ययन आदि से भी भाषा में रूपभेद हुआ करता है। प्रेमचंद और प्रसाद दोनों हिन्दी के लेखक हैं, पर ‘गोदान’ और ‘तितली’ की भाषा का अंतर किसी पाठक से छिपा नहीं है।"

राजभाषा हिंदी के सरलीकरण की आवश्यकता

संसकिरत है कूप-जल, भाषा बहता नीर

-        कबीर

हिंदी भाषा के सन्दर्भ में यह बात उठती रही है कि खासकर कार्यालयों की हिंदी कठिन है इसलिए इसके प्रयोग से लोग झिझकते हैं। किन्तु यह तथ्य पूर्णत: सत्य नहीं हैं। हाँ, यह देखा गया है कि कुछ हिंदी के बुद्धिजीवी लोग कई बार विद्वता प्रकट करने के लिए कठिन शब्दों का प्रयोग करते हैं। जैसे कंप्यूटर की जगह "संगणक" का प्रयोग खासकर उनके सामने जो हिंदी में उतने प्रवीण हैं। इसी प्रकार मोबाइल को चल दूरभाष, पशोपेश की स्थिति को किंकर्तव्यविमूढ़, वरीयता को  अधिमान्यता, भेजना को संप्रेषण, मंजूरी को स्वीकृत आदि शब्द का प्रयोग हिंदी को सरल और सुबोध बनाते हैं।

राजभाषा हिंदी देवनदी गंगा के सदृश हैं जिसमें अनेकानेक भाषा सरिताओं का नीर है। चाहे वह तुर्की का शब्द (तोप, हफ्ता, कातिल, दुकान  बादाम), फारसी के शब्द, अंग्रेजी के शब्द, मराठी के शब्द, उर्दू-अरबी के शब्द (इज़ाफ़ा, अखबार, अदब) या  चीनी या मंडारिन भाषा से  शब्द (कारतूस, साबुन) हो।

हम अंग्रेजी के शब्द स्टेशन (थाना, चौकी, छावनी आदि शब्दों के लिए स्टेशन को एक प्रतिस्थापन माना जा सकता है), हॉस्पिटल  (अस्पताल ‘हॉस्पिटल’ से बना हिंदी वर्ड है, जो कि आजकल चिकित्सालय की जगह प्रयोग किया जाता है। ‘हॉस्पिटल’ खुद लैटिन शब्द Hospitale से बना है।), सिनेमा (फ्रांसिसी शब्द ‘सिनेमेटोग्राफ़’ से सिनेमा शब्द बना, जो उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों के साथ भारत आया। यह शब्द अभी भी ज्यों का त्यों हिंदी में उपयोग किया जाता है।), ‘मशीन’ आंग्लभाषा में फ़्रांसिसी, लैटिन और ग्रीक भाषाओं से होता हुआ पहुँचा।

इस प्रकार हम देखते हैं कि केवल हिंदी में ही नहीं अन्य भाषाओ में भी सरलता, सुगम्यता और सुबोध्यता को ध्यान में रखते हुए शब्दों के लें दें चलते रहे हैं। विश्व की कोई भी जीवित और व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा इस  सिनर्जी या लाभप्रद मिलावट से नहीं बची है।  साथ ही साथ हिंदी के कई शब्द समय समय दूसरी भाषाएँ भी ग्रहण करती रही हैं (जैसे कि जंगल, अवतार, गुरु इत्यादि )

सरलीकरण की न्यायसंगतता:-

राजभाषा के सरलीकरण के  सन्दर्भ में  कुछ बुनियादी सवाल हैं:

1. सरलीकरण किस रूप और किस सीमा तक हो?

2. सरलीकरण किसके लिए हो?

3. सरलीकरण की प्रक्रिया को परिणाम तक कौन ले जाए?

किसी भी भाषा के  मुख्यत: दो रूप होते हैं - साहित्यिक और कामकाज की भाषा।

क्या हम कार्यालय का कोई आदेश या कोई परिपत्र  मुक्तिबोध या बच्चन की साहित्यिक भाषा में लिख सकते हैं ? यह सुसंगत नहीं होगा। कामकाज की भाषा में साहित्यिक भाषा के शब्‍दों के प्रयोग से उस भाषा विशेष की ओर सामान्य लोग का रूझान कम हो जाता है और उसके प्रति मानसिक द्वन्द्व बढ़ता है।

अंग्रेजी ने भी अपने स्‍वरूप को बदलते समय के अनुरूप खूब ढाला है। आज की युवा पीढ़ी अंग्रेजी के विख्‍यात साहित्‍यकारों जैसे वर्ड्सवर्थ, चौसर शेक्‍सपियर, विलियम थैकरे या मैथ्‍यू आर्नल्‍ड की शैली की अंग्रेजी नहीं लिखती है।

कामकाजी हिंदी के रूप को भी सरल तथा आसानी से समझ में आने वाला बनाना होगा। राजभाषा में कठिन और कम सुने जाने वाले शब्‍दों के इस्‍तेमाल से राजभाषा को अपनाने में हिचकिचाहट बढ़ती है। शालीनता और मर्यादा को सुरक्षित रखते हुए भाषा को सुबोध और सुगम बनाना आज के समय की माँग है।

सरल हिन्दी, हिन्दी भाषा का वह प्रचलित व व्यावहारिक स्वरुप है जिसमें हिन्दी भाषा बोलने वालों के द्वारा व्याकरण व शब्दावली की औपचारिकता का न्यूनतम पालन भी किया जाना पर्याप्त मान लिया जाता है। सरल हिन्दी में, भाषा के व्याकरण व शब्द-सम्पदा सम्बन्धी नियमों का कठोरता से पालन करना न तो अनिवार्य होता है और न ही स्वाभाविक।

सरल हिन्दी में संस्कृत,पालि,प्राकृत व अरबी, फ़ारसी या अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा-समूह के शब्दों की बहुलता नहीं होती है। इसमें तत्सम, तद्भव, देशज व विदेशी शब्दों का सहजता से प्रयोग किया जाता है।

डिजिटल हिंदी’ और सरलीकरण:

    डिजिटल हिंदी के अंतर्गत हिंदी को एक भाषा के रूप में सीखने वाले सभी विद्यार्थियों और अध्येताओं को सॉफ्टवेयर और प्रोग्राम के रूप में हिंदी की भाषिक सामग्री उपलब्ध कराई जाए। इस कार्यक्रम को ‘डिजिटल हिंदी शिक्षण’ नाम दिया जा सकता है। इसे दो आधारों पर देखा जा सकता है-

भाषाक्षेत्र के आधार पर : इस दृष्टि से डिजिटल हिंदी शिक्षण के तीन प्रकार किए जा सकते हैं-

हिंदीभाषी क्षेत्र : हिंदीभाषी क्षेत्रों में हिंदी शिक्षण के लिए एकभाषिक सॉफ्टवेयर प्रयोग में लाए जा सकते हैं। इन सॉफ्टवेयरों में ‘हिंदी’ शिक्षण की सामग्री भी होगी और माध्यम भी।

हिंदीतर भारतीय भाषा क्षेत्र : इसका तात्पर्य उन भारतीय क्षेत्रों से है जिनकी मातृभाषा या प्रथम भाषा ‘हिंदी’ नहीं है। इन क्षेत्रों में शिक्षण की सामग्री तो हिंदी होगी, किंतु माध्यम संबंधित क्षेत्र की मातृभाषा या प्रथम भाषा होगी। अतः शिक्षण संबंधी निर्देश और अन्य बातें विद्यार्थियों की अपनी भाषा में होंगी, शिक्षण सामग्री हिंदी होगी। आवश्यकतानुसार उसे भी द्विभाषी किया जा सकेगा।

शैक्षिक स्तर के आधार पर : जैसे-जैसे हम उच्च शिक्षा की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे विश्लेषणात्मक सामग्री की आवश्यकता बढ़ने लगती है। अतः इस स्तर पर विश्लेषणात्मक और गंभीर सामग्री के निर्माण की आवश्यकता होगी। इसके अलावा उच्च शिक्षा में विद्यार्थी स्वतंत्र रूप से सोचता है, ऐसी स्थिति में उसके अंदर कुछ बिल्कुल नए प्रश्न उठ सकते हैं। ऑनलाइन प्रश्नोत्तर का माध्यम भी होना चाहिए, जिससे विद्यार्थी विभिन्न विद्वानों और विषय-विशेषज्ञों के साथ अपने प्रश्नों को साझा करके समुचित उत्तर प्राप्त कर सकें।

हिंदी के भाषिक सॉफ्टवेयरों का विकास

    यह हिंदी को डिजिटल स्तर पर ले जाने की उच्चतम अवस्था है। इसका संबंध हिंदी के लिए और हिंदी से संबंधित सभी प्रकार के सॉफ्टवेयरों के विकास से है। ये सॉफ़्टवेयर भी कई प्रकार हैं। इन्हें निम्नलिखित उपशीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है-

 टंकण और फॉन्ट : इनका मुख्य संबंध कंप्यूटर पर हिंदी माध्यम से टंकण करने और उसका किसी भी कंप्यूटर पर प्रयोग करने से है। इससे संबंधित कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-फॉन्ट डिजाइनिंगफॉन्ट परिवर्तन, यूनिकोड तकनीक आदि।

शोधन :

यहाँ ‘शोधन’ से तात्पर्य है- किसी टंकित पाठ में आवश्यक सुधार करना। यह सुधार विराम-चिह्न, वर्तनी, मानक प्रयोग और व्याकरण आदि में होने वाली त्रुटियों के संबंध में हो सकता है। अतः इसके अंतर्गत निम्नलिखित कार्यों से जुड़े सॉफ्टवेयर आते हैं।

(क) विराम चिह्न सामान्यीकरण संबंधी प्रणाली: ऐसे सॉफ्टवेयर जो विराम-चिह्न संबंधी त्रुटियों में सुधार करते हैं।

(ख) वर्तनी परीक्षण प्रणाली/वर्तनी जाँचक: ऐसे सॉफ्टवेयर जो वर्तनी संबंधी त्रुटियों की पहचान करते हैं और सुझाव प्रस्तुत करते हैं।

(ग) मानक प्रयोग संबंधी प्रणाली: किसी भाषा में लेखन में मानक और अमानक प्रयोग होने की स्थिति में अमानक प्रयोगों को मानक में परिवर्तित करने वाले सॉफ्टवेयर इस वर्ग में आएँगे।

(घ) व्याकरण परीक्षण प्रणाली/ व्याकरण जाँचक: व्याकरण संबंधी त्रुटियाँ होने पर उनका परीक्षण कर सुधार प्रस्तुत करने वाले सॉफ्टवेयर इसके अंतर्गत आते हैं।

सरलीकरण और लिपि :-

    राजभाषा के सरलीकरण की दिशा में देवनागरी को भी कंप्यूटर के मित्रवत बनाया जा सकता है। तकनीक आने के  बाद देखा गया  हिंदी के प्रयोग में  अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु में कई बार भेद मिट गया। पूर्ण विराम की जगह  फुल स्टॉप का प्रयोग होने लगा। इसके साथ ही कुछ कठिन अक्षरों को भी सरल बनाया गया है।

    देवनागरी लिपि अक्षरात्मक है अत: इस लिपि को क्लिष्ट माना जाता है। अर्थात इसके वर्णों में स्वर और व्यंजन मिले हुए हैं। इसीलिए संयुक्त व्यंजन बनाते समय व्यंजनों को आध लिखा जाता है। उदाहरण के लिए 'कर्म में 'र अपने मूल रूप में नहीं है। अत: इसका ध्वनि विश्लेषण सरलता से नहीं हो सकता। जबकि रोमन लिपि में वर्णों का मूल रूप बना रहा है।

सरलीकरण और अनुवाद के आयाम :-

    अंग्रेजी में ‘Herculean Task’ किसी दुष्कर और लगभग असंभव जैसे दिखने वाले कार्य के लिए किया जाता हैं। यह मुहावरा प्राचीन रोमन नरेश हरक्यूलियन की शूरवीरता और आत्मबल के सन्दर्भ में होता था। भारत के सन्दर्भ में ऐसी रूपकपूर्ण अभिव्यक्ति को हम भगीरथ परिश्रम कहते हैं। हम जानते हैं की इच्छवाकु वंश के सम्राट दिलीप के पुत्र थे और उनकी ही घोर तपस्या से गंगा वसुधा पर अवतरित हुई थी।

    इसी प्रकार ‘रोम वास् नॉट बिल्ट इन अ डे’ यदि हूबहू रख देंगे तो अर्थ को भारतीय परिवेश में समझना कठिन होगा। अनुवाद करते समय इसे यह कार्य एक दिन में सम्भव नहीं होते को लिखे तो सरल अर्थ में पाठकों को समझ में आएगा।

राजभाषा के सरलीकरण की प्रक्रिया के आधार :-

Ø वह नवीन आवश्यकताओं के अनुरूप निरन्तर विकसित होती रहती है।

Ø वह व्याकरण सम्मत होती है।

Ø वह सर्वमान्य होती है।

Ø उससे क्षेत्रीय अथवा स्थानीय प्रयोगों से बचने की प्रवृत्ति होती है, अर्थात् वह एकरूप होती है।

Ø वह हमारे सांस्कृतिक, शैक्षिक, प्रशासनिक, संवैधानिक क्षेत्रों का कार्य सम्पादित करने में सक्षम होती है।

Ø वह सुस्पष्ट, सुनिर्धारित एवं सुनिश्चित होती है। उसके सम्प्रेषण से कोर्इ भ्रान्ति नहीं होती।

Ø नये शब्दों के ग्रहण और निर्माण में वह समर्थ होती है।

Ø वैयक्तिक प्रयोगों की विशिष्टता, क्षेत्रीय विशेषता अथवा शैलीगत विभिन्नता के बावजूद उसका ढाँचा सुदृढ़ एवं स्थिर होता है।

Ø उसमें किसी प्रकार की त्रुटि दोष मानी जाती है।

राजभाषा और देवनागरी लिपि

राजभाषा के सरलीकरण की दिशा में देवनागरी को भी कंप्यूटर के भी मित्रवत बनाया जा सकता है। तकनीक आने के  बाद देखा गया  हिंदी के प्रयोग में  अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु में कई बार भेद मिट गया। पूर्ण विराम की जगह फुल स्टॉप का प्रयोग होने लगा। इसके साथ ही कुछ कठिन अक्षरों को भी सरल बनाया गया है ।

भाषावैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक लिपि मानी जाती है। कई तरह के फॉण्ट की उपलब्धता से हिंदीतर लोगों के लिए देवनागरी की सरलता में वृद्धि हुई है।

भाषा की अर्थात उसके शब्द भंडार की, व्याकरण की एक विकास परंपरा होती है, जो बहुत कुछ जैव (आर्गेनिक) विकास से मिलती जुलती है। जैसे किसी मनुष्य का सरलीकरण उसके हाथ, पैर या सिर काट कर नहीं कर सकते, वैसे ही भाषा का सरलीकरण भी बिना विकलांग किए संभव है। अंग्रेजी की कठिनाइयाँ हिन्दी की तुलना में कहीं अधिक है वर्तनी की अवैज्ञानिकता और अस्वाभाविकता तो सर्वसम्मत है

भारत के सरकारी कार्यालयों में राजभाषा  हिंदी का सरलीकरण :

भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के वार्षिक कार्यक्रम के आधार पर वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवाएँ विभाग के सचिव ने राजभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए विशेषकर उन बैंकों को दिशानिर्देश दिया जिन बैंकों के कार्यालय या शाखाएँ विदेशों में स्थित हैं।

Ø हमारे संविधान निर्माताओं ने जब हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया तब उन्‍होंने संविधान के अनुच्‍छेद 351 में यह स्‍पष्‍ट रूप से लिखा कि संघ सरकार का यह कर्तव्‍य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की संस्‍कृति के तत्‍वों की अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम बन सके। इस अनुच्‍छेद में यह भी कहा गया कि हिंदी के विकास के लिए हिंदी में ‘हिंदुस्‍तानी’ और आठवीं अनुसूची में दी गई भारत की अन्‍य भाषाओं के रूप, शैली व पदों को अपनाया जाए।

Ø विदेशी शब्‍द जो हिंदी तथा भारतीय भाषाओं में प्रचलित हो गए हैं, जैसे-टिकट, सिग्‍नल, लिफ्ट, स्‍टेशन, रेल, पेंशन, पुलिस, ब्‍यूरो, रेल, मेट्रो, एयरपोर्ट, स्‍कूल, बटन, फीस, बिल, कमेटी, अपील, ऑफिस, कंपनी, बोर्ड गजट, तथा अरबी, फारसी, तुर्की के शब्‍द जैसे अदालत, कानून, मुकदमा, कागज, दफ्तर, जुर्म, जमानत, तनख्‍वाह, तबादला, फौज, बंदूक, मोहर को उसी रूप में अपनाने से भाषा में प्रवाह बना रहेगा।

Ø बहुचर्चित अंग्रेजी शब्‍दों का देवनागरी में लिप्‍यांतरण करना कभी-कभी ज्‍यादा अच्‍छा रहता है बजाय इसके कि किसी कठिन और बोझिल शब्‍द को गढ़कर लिखा जाए। ‘प्रत्‍याभूति’ के स्‍थान पर‘गारंटी’, परिदर्शक के स्‍थान पर ‘गाइड’, अनुच्‍छेद के स्‍थान पर ‘पैरा’, यंत्र के स्‍थान पर ‘मशीन,’मध्‍याह्र भोजन के स्‍थान पर ‘लंच’, व्‍यंजन सूची की जगह ‘मैन्‍यू,’ भंडार की जगह ‘स्‍टोर’, अभिलेख के स्‍थान पर ‘रिकार्ड’ आदि जैसे प्रचलित शब्‍दों को हिंदी में अपनाया जा सकता है।

Ø यदि कोई तकनीकी अथवा गैर-तकनीकी ऐसा शब्‍द है जिसका आपको हिंदी पर्याय नहीं पता तो उसे देवनागरी में जैसे का तैसा लिख सकते है जैसे इंटरनेट, वेबसाइट, पेनड्राइव, ब्लॉग आदि।

Ø राजभाषा हिंदी के सरलीकरण, हिंदी में तैयार किए गए हैंडआउट, बैंकिंग के विभिन्न विषयों पर हिंदी में लिखी पुस्तकों की माँग बढ़ने लगी। बैंकिंग के विभिन्न विषयों पर अंग्रेजी में जितनी पुस्तकें उपलब्ध हैं उसकी तुलना में हिंदी में लिखी पुस्तकें काफी कम है। इस दिशा में भारतीय रिज़र्व बैंक तथा भारतीय बैंक संघ द्वारा उठाए गए कदम उल्लेखनीय हैं। हिंदी में बैंकिंग की नई विधाओं पर पुस्तकें हिंदी में आनी शुरू हो गई हैं जो अनूदित नहीं हैं बल्कि मूल रूप से हिंदी में लिखी गई हैं।

राजभाषा के सरलीकरण की सीमाएँ और चुनौतियाँ और आगे की राह :-

सरलीकरण के मार्ग पर अग्रसर होते हुए कुछ  बातें ध्यान में रखनी होगी। भाषा को सरल करने के क्रम में कहीं उसकी मूल आत्मा के साथ छेड़छाड़ ना हो। जैसे कि हिंदी के शब्द ‘वनवास’ के पीछे एक लम्बी परम्परा और सांस्कृतिक बिम्ब है। यदि वनवास के स्थान पर  जंगल में निवास या जंगल के निवासी जैसे शब्दों का प्रयोग करेंगे तो अन्तर्निहित अर्थ को खो देंगे.   सरलीकरण के नाम पर विदेशज शब्दों की बहुलता भी स्वीकार्य नहीं है। जैसे कि  ट्रैन लेट है, स्कूल क्लोज्ड है , मार्केट ओपन हैं , इत्यादि वाक्यांश को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।

उसी प्रकार भाषाई शुद्धतावाद के नाम पर अधिकाधिक तत्सम शब्दों का प्रयोग न करके, भाषाई कट्टरता को तिलांजलि देकर अधिकाधिक सामयिक शब्दों को शामिल किया जाना चाहिए जैसे कि आजकल के प्रचलित शब्द सेल्फी , रिचार्ज , कूपन आदि चाहिए। यदि हिंदी में लिखा तकनीकी शब्‍द कठिन लगे, तो ‘ब्रेकेट’ में अंग्रेजी पर्याय देना चाहिए। आधुनिक यंत्रों, तरह-तरह के पुर्जों और नए जमाने की चीजों के जो अंग्रेजी नाम चलते हैं, उनका कठिन अनुवाद करने की बजाय उन्‍हें फिलहाल मूल रूप में ही देवनागरी लिपि में लिखना सभी के हित में होगा।

उपसंहार:-

 भाषा चाहे जो हो उसके आदर्श मानक किताबों से निर्धारित नहीं किये जा सकते हैं । भाषा का वास्तविक उद्गम और विकास जानने के लिए अनपढ़ लोगों के मध्य उनकी भाषा या बोलियों का सूक्ष्मता से अनुशीलन करना होगा। आप यदि समृद्ध भाषा की बात करते हैं तो जान लीजिये ऐसी भाषा केवल बोली जाती है लिखी नहीं जाती ।शब्दों को उसके जनप्रचलित रूप में ज्यों का त्यों लिख देना असंभव है। आम जनता में बोले जाने वाली भाषा या बोली को बेवजह साहित्यिक बनाने की कवायद हमें छोड़ देनी चाहिए और लेखन में सहज रूप से बोले जाने वाले शब्दों को स्वीकार करना चाहिए।

वर्तमान प्रधानमंत्री ने आधिकारिक उपयोग के लिए हिंदी के इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकारी कामकाज में सरल हिंदी का इस्तेमाल करने की जरूरत है। केंद्रीय हिंदी समिति की 31वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा कि हिंदी भाषा का प्रसार, आम बोलचाल की भाषा में ही होना चाहिए और सरकारी कामकाज में भी क्लिष्ट तकनीकी शब्दों का इस्तेमाल कम से कम किया जाना चाहिए।सरकारी और सामाजिक हिंदी के बीच फासला कम करने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि विभिन्न संस्थान इस अभियान की अगुवाई कर सकते हैं।

 

स्रोत एवं संदर्भ  :-

https://www.rajbhasha.nic.in             

https://astitva53.wordpress.com

https://navbharattimes.indiatimes.com

एवं विभिन्न पत्र –पत्रिकाएँ 

गौतम कुमार सागर

मुख्य प्रबंधक एवं संकाय

बैंक ऑफ़ बड़ौदा

वड़ोदरा (गुजरात)

 

 

 

 

 

 

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