1
दोहे
डॉ.
ज्योत्स्ना शर्मा
मात-पिता
शिक्षक प्रथम, दूजे
शिक्षाधाम
तीजे
जड़-जंगम जगत, सबको
करूँ प्रणाम ।।
नन्हें
पौधों को दिया, स्नेह
सींच विस्तार ।
माली
बनकर आपने, सबको
दिया सँवार ।।
भ्रम
के अँधियारे घिरें, सूझे
आर न पार ।
देकर
दीपक ज्ञान का, करते
पथ उजियार ।।
उच्च
लक्ष्य सन्धान कर, करें
राष्ट्र निर्माण ।
महिमा
गुरुवर आपकी, गाते
वेद-पुराण।।
दुर्गुण
सारे हर, करें
सद्गुण का आगार ।
नत
मस्तक उनके प्रति, रहे
सकल संसार ।।
कृपा
दृष्टि गुरु आपकी, दे
विद्या का दान ।
विकसे
ज्ञान- सरोज फिर, मिटे
सकल अज्ञान ।।
लोभ,
मोह,
छल
छद्म का, सागर
है संसार ।
जीवन
नैया बढ़ चले, शिक्षक
खेवनहार ।।
निर्माता
हैं राष्ट्र के, रविकर-निकर
समान ।
सदा
हृदय से कीजिए, शिक्षक
का सम्मान ।।
व्यस्त
रहें शिक्षक सदा, हो
कोई अभियान ।
अध्यापन
का दीजिए, समय
इन्हें श्रीमान ।।
कविता
2
है सुन्दर
उपहार ज़िंदगी
सुख-दुख
का भण्डार ज़िंदगी ।
तेरा-
मेरा प्यार ज़िंदगी
मीठी-
सी तकरार ज़िंदगी ।
खो
बैठे धन अमर-प्रेम का
तब
तो केवल हार ज़िंदगी ।
देती
जो मुसकान, धरा
का-
करती
है शृंगार ज़िंदगी ।
काँटे-कलियाँ
बीन-बीनकर
रचे
सुगुम्फित हार ज़िंदगी।
इधर
कुआँ है उधर है खाई
दोधारी
तलवार ज़िंदगी ।
खूब
मनाए मन का उत्सव
बन
जाए त्योहार ज़िंदगी ।
3
जग
में खूब हँसाई होगी
फिर
तेरी रुसवाई होगी ।
नासमझी
की बात न करना
कह
दी बात पराई होगी ।
चर्चा
है बस तेरी-मेरी
किसने
बात चलाई होगी ।
सारी
संगत मौन खड़ी थी
तूने
बात उठाई होगी ।
किसकी
बातों में सच होगा
किसने
रस्म निभाई होगी ।
मन
के हारे हार मिलेगी
जीते,
जीत
मिलाई होगी ।
उसका
पलड़ा भारी , जिसके-
दिल
में राम-रसाई होगी ।
4
तुम
मुझको समझाया करते अच्छा था
थोड़ी
प्रीत जताया करते अच्छा था ।
यादों
में अक्सर रहते हो यूँ लेकिन
ख्वाबों
में भी आया करते अच्छा था ।
माथे
पर कुछ उलझी मेरी जुल्फों को
धीरे
से सुलझाया करते अच्छा था ।
नदी
किनारे टहला करते साथ ज़रा
कुछ
पल संग बिताया करते अच्छा था ।
आँखें
मूँदे तुमको सोचूँ तब मुझको
आँखों
से पी जाया करते अच्छा था ।
डॉ.ज्योत्स्ना
शर्मा
वापी (गुजरात)
सभी रचनाओं की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई ज्योत्सना जी। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंआपके शब्द नव लेखन की प्रेरणा हैं दीदी , बहुत आभार , सदैव स्नेह और आशीर्वाद रहे आपका🙏
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