डॉ.
योगेन्द्रनाथ मिश्र
क्ष त्र ज्ञ श्र
हिंदी व्याकरण की किताबों में क्ष त्र ज्ञ ये तीन व्यंजन वर्ण वर्णमाला के अंत
में अनिवार्य रूप से दिए गए होते हैं।
कुछ व्याकरण लेखक इनके साथ श्र को भी जोड़ देते हैं।
इन चार वर्णों पर विचार होना चाहिए।
व्याकरण की किताबों में इन वर्णों को संयुक्त वर्ण कहा जाता है।
यदि मैं कहूँ कि ये ‘चारों’ वर्ण संयुक्त वर्ण नहीं हैं,
तो बहुत सारे लोग इसका तुरंत विरोध करेंगे।
इनमें दो यानी क्ष तथा ज्ञ एकल (सिंगल या सिंपल) वर्ण हैं तथा बाकी के दो यानी
त्र तथा श्र संयुक्त वर्ण हैं।
संयुक्त वर्ण उन वर्णों को कहते हैं जो दो वर्णों की आकृतियों के अंशों को
लेकर बने होते हैं। उनकी अपनी कोई स्वतंत्र आकृति नहीं होती।
त्र संयुक्त वर्ण त तथा र वर्णों की आकृतियों के अंशों को लेकर बना है। श्र संयुक्त वर्ण श तथा र की आकृतियों के अंशों को लेकर बना है।
परंतु क्ष तथा ज्ञ वर्णों में किन्ही दो व्यंजन वर्णों की आकृतियों के अंश
नहीं हैं। इसलिए ये एकल वर्ण हैं।आप कहेंगे -
क्ष में क तथा ष वर्ण हैं।
ज्ञ में ज तथ ञ वर्ण हैं।
ऐसा नहीं है। यही तो समझना है।
यह कठिनाई/उलझन ध्वनि तथा वर्ण को एक मान लेने के कारण है। ध्वनि तथा वर्ण दो
अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। ध्वनि मौखिक भाषा की सबसे छोटी इकाई है तथा वर्ण लिखित
भाषा की सबसे छोटी इकाई है।
1. त्र तथा श्र संयुक्त व्यंजन ध्वनि तथा संयुक्त व्यंजन वर्ण दोनों हैं।
संयुक्त व्यंजन वर्ण के रूप में त्र में
त तथा र दोनों वर्णों की आकृतियों के अंश हैं तथा संयुक्त व्यंजन ध्वनि के
रूप में त्र में त तथ र दोनों व्यंजन
ध्वनियों का एक साथ उच्चारण होता है।
ऐसा ही श्र के संबंध में भी समझना
चाहिए।
परंतु क्ष तथ ज्ञ में दो व्यंजन वर्णों की आकृतियों के अंश नहीं हैं। ये एकल वर्ण हैं अर्थात ये
दोनों संयुक्त व्यंजन ध्वनियां हैं, परंतु संयुक्त व्यंजन वर्ण नहीं हैं। इन दोनों एकल वर्णों
का उच्चारण संयुक्त व्यंजन के रूप में होता है। जैसे अंग्रेजी में X
एक यानी सिंगल वर्ण है। परंतु इसका उच्चारण संयुक्त व्यंजन
(क्स) के रूप में होता है।
वर्णमाला के सभी वर्ण एकल (सिंगल) वर्ण होते हैं। इसलिए त्र तथा श्र वर्णमाला
में नहीं रखे जा सकते। अगर ऐसा होने लगे तो सभी संयुक्त वर्ण वर्णमाला में आ
जाएंगे।
त्र तथा श्र यदि वर्णमाला में आएँगे, तो द्र, प्र, म्र स्र आदि क्यों नहीं?
समास और संधि
(एक अन्य व्यक्ति के साथ हुए संवाद का अंश)
समास और संधि में अंतर बताने के लिए आपने बड़ी तत्परता दिखाई। अच्छा लगा।
अब बात को आगे बढ़ाते हैं -
पहली बात यह कि मैंने यह तो कहा नहीं कि समास और संधि दोनों एक ही हैं। आपने
अपने मन से ही मुझे बताया कि समास और संधि में बहुत अंतर है। तब मैंने कहा कि एक
दो अंतर बता दीजिए।
क्या मुझे समास और संधि का अंतर नहीं मालूम है! मैंने आपसे इसलिए पूछा था कि
आप जो बताएँगे उसी के आधार पर हमारी चर्चा आगे बढ़ेगी।
लेकिन आपने तो मुझे किताब का एक पन्ना भेज दिया।
दूसरी बात यह कि समास और संधि में अंतर जरूर है। परंतु बहुत बड़ा अंतर नहीं
है। बहुत बारीक अंतर है।
दोनों शब्द रचना की दो प्रक्रियाएँ हैं। परंतु एक दूसरे से एकदम भिन्न नहीं
हैं। दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे में समाई हुई हैं। विच्छेद और विग्रह से दोनों
प्रक्रियाएं अलग-अलग मालूम पड़ती हैं। जैसे -
विद्यालय शब्द में संधि भी है और समास भी है -
विद्या+आलय (संधि)
विद्या का आलय (समास)
दो शब्दों के मिलने पर,
उनके संधि स्थल पर, जहाँ दोनों की
ध्वनियों में कोई परिवर्तन नहीं होता, वहाँ सिर्फ समास
होता है - घोड़ागाड़ी, डाकघर, त्रिनेत्र, नीलकमल आदि।
परंतु जहाँ दो शब्दों के संधि स्थल पर, उनकी ध्वनियों में थोड़ा बहुत परिवर्तन होता है,
वहाँ संधि और समास
दोनों होते हैं और दोनों का अंतर विच्छेद और विग्रह से पता चलता है। एक उदाहरण ऊपर
दे दिया है।
मैं समझता हूँ इतना पर्याप्त है
ए ओ ऐ औ
इन चार स्वरों को पं. कामतप्रसाद गुरु ने संयुक्त स्वर कहा है। ऐसा कहने के
लिए उन्होंने संधि का आधार लिया है।
उन्हीं के शब्दों में -
भिन्न-भिन्न स्वरों के मेल से जो स्वर बनता है, उसे संयुक्त स्वर कहते हैं। जैसे - अ+इ=ए,
अ+उ=ओ, आ+ए=ऐ, आ+ओ=औ।
इसी मान्यता को आ. किशोरीदास वाजपेयी सहित आगे के व्याकरण लेखकों ने अपनाया।
परंतु यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि ध्वनियों के स्वरूप का निर्धारण उनकी
उच्चारण प्रक्रिया के आधार पर होता है, संधि की प्रक्रिया से नहीं।
अगर यह मान लें कि ए स्वर अ तथा इ स्वरों के मेल से बना है,
तब तो यह भी मानना पड़ेगा कि ग् व्यंजन क् व्यंजन तथा ई स्वर
के मेल से बना है - वाक्+ईश=वागीश।
द् व्यंजन त् व्यंजन तथा ई स्वर के मेल से बना है - जगत्+ईश=जगदीश।
य् व्यंजन इ तथा आ स्वरों के मेल से बना है - इति+आदि=इत्यादि।
(व्यंजन संधि से ऐसे ही दूसरी ध्वनियों के लिए बहुत सारे
उदाहरण दिए जा सकते हैं।)
परंतु क्या हम ऐसा मान सकते हैं?
या हमें मान लेना चाहिए?
संभवतः कोई इसके लिए तैयार नहीं होगा।
फिर भी मैं पं. कामतप्रसाद गुरु की गलती नहीं निकाल सकता।
कारण कि यह उनका प्रथम प्रयास था। उनके समय तक आधुनिक भाषाचिंतन की
निष्पत्तियाँ हमारे यहाँ नहीं आई थीं। जो उनकी समझ में आया,
वह उन्होंने किया।
आगे के लोगों की जिम्मेदारी थी कि वे उन असंगतियों को दूर करते। लेकिन ऐसा
प्रयास नहीं किया गया। बल्कि गुरु जी की मान्यताओं को ब्रह्मवाक्य मानकर उनकी
असंगतियों को आगे बढ़ाया गया।
निष्कर्ष यह कि हिन्दी के सभी स्वर मूल स्वर हैं।
कोई भी ऐसा स्वर नहीं है, जिसका उच्चारण दो स्वरों के रूप में होता हो।
हाँ,
संस्कृत में ऐ तथा औ का उच्चारण संयुक्त स्वर के रूप में
होता है - ऐ का उच्चारण अइ (कैलाश का उच्चारण कइलाश) तथा औ का उच्चारण अउ (कौशल का
उच्चारण कउशल) होता है। यह संस्कृत की व्यवस्था है।
परंतु हिन्दी में ऐसा नहीं होता।
हम है को हइ नहीं बोलते।
कैसा को कइसा नहीं बोलते।
और को अउर नहीं बोलते।
अर्थात् हिन्दी में संयुक्त स्वर नहीं हैं। सभी मूल स्वर हैं।
डॉ.
योगेन्द्रनाथ मिश्र
40,
साईं पार्क सोसाइटी
बाकरोल
– 388315
जिला
आणंद (गुजरात)
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